रविवार, 28 फ़रवरी 2021

मौलाना अब्दुल कलाम भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री: कुछ तथ्य, इतिहास के पन्नो से।

क्या आप जानते हैं कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी आखिर कौन था.?
कृपया ध्यान से पढ़िये, पूरा पढ़िये।
सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी कांग्रेस का बहुत बड़ा नेता था। कांग्रेस ने उसे हिन्दू मुस्लिम एकता का पोस्टर बॉय और सेक्युलरिज्म का सबसे बड़ा ठेकेदार बना दिया था। 1947 में आजादी मिलने के तत्काल बाद सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी देश के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल से भिड़ गया था। उस समय दिल्ली में हो रहे भयानक दंगे के दंगाइयों से सख्ती से निपट रहे दिल्ली पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर जो कि एक सिक्ख थे, को उनके पद से हटा कर उन्हें दण्डित करने की मांग सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी ने देश के गृहमंत्री सरदार पटेल से की थी। सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी ने सरदार पटेल से कहा था कि दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से मुसलमान नाराज हैं और उसके खिलाफ आरोप लगा रहे हैं इसलिए उस पुलिस कमिश्नर को तत्काल हटा कर दण्डित किया जाए। लेकिन सरदार पटेल ने उसकी उस बेहूदी मांग को मानने से इनकार कर दिया था क्योंकि दिल्ली के दंगों को नियंत्रित करने के सफल प्रयासों के कारण उस सिक्ख पुलिस कमिश्नर की प्रशंसा पूरे देश में हो रही थी। इसके कुछ दिनों बाद सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी देश के गृहमंत्री सरदार पटेल के पास अपनी एक और मांग लेकर पहुंच गया था। उसने मांग की थी कि विभाजन के कारण पाकिस्तान चले गए मुसलमानों की जमीनों और घरों को हिन्दूस्तान में रह गए मुसलमानों को ही दे दिया जाए। 
सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी की उस मांग का सीधा सा अर्थ यही था कि पाकिस्तान भाग गए गद्दारों की जमीन मकान भी सरकार कब्जा नहीं करे और मुसलमानों को ही दे दे। उसकी इस बेतुकी बेहूदी मांग पर सरदार पटेल ने उसे जमकर डपटा था। अब आप यह भी जानिए कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी आखिर था कौन.?
उपरोक्त सवाल का जवाब यह है कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी नाम का नौजवान सऊदी अरब में जन्मा था और भारत में 1919 में शुरू हुए खिलाफत आंदोलन के सबसे बड़े नेताओं में से एक था। सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी की शिक्षा दीक्षा मदरसे में ही हुई थी। ज्ञान विज्ञान इतिहास भूगोल आदि औपचारिक शिक्षा देने वाले किसी स्कूल में वो नहीं पढ़ा था। लेकिन जब देश स्वतन्त्र हुआ उस समय देश में कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी और डॉक्टर राधाकृष्णन सरीखे महान विद्वानों के होते हुए भी जवाहरलाल नेहरू ने देश के पहले शिक्षा मंत्री की कुर्सी पर सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी को ही बैठा दिया था। 1958 में हुई उसकी मौत तक सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी देश की शिक्षा व्यवस्था का कर्ताधर्ता बना रहा। जरा कल्पना करिए कि जिस व्यक्ति ने ज्ञान विज्ञान इतिहास भूगोल आदि की औपचारिक शिक्षा देने वाले किसी स्कूल तक का मुंह नहीं देखा था उसे कांग्रेस ने देश की शिक्षा नीति की कमान सौंप दी थी।

सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी जिस खिलाफत आंदोलन के सबसे बड़े नेताओं में से एक रहा था। उस आंदोलन का एकमात्र मूल उद्देश्य तत्कालीन तुर्की में इस्लाम के खलीफा सुल्तान की गद्दी और उसके कट्टर इस्लामिक साम्राज्य को बचाना था। हास्यास्पद और शर्मनाक तथ्य यह है कि खुद तुर्की में ही उस इस्लाम के खलीफा सुल्तान की कट्टरपंथी रूढ़िवादी मजहबी सोच के खिलाफ भयंकर जनाक्रोश की आग भड़की हुई थी। परिणाम स्वरूप 1923 में इस्लाम के उस खलीफा और उसकी कट्टरपंथी रूढ़िवादी मजहबी नीतियों वाले शासन का हमेशा के लिए अंत हो गया था। कमाल अतातुर्क पाशा ने तुर्की की सत्ता सम्भाल ली थी।
लेकिन 1919 से 1923 तक सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी भारत के मुसलमानों को संगठित कर के तुर्की के उस इस्लामी खलीफा के इस्लामिक राज्य को बचाने के लिए हंगामा हुड़दंग कर रहा था।

सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी, नाम उसकी असलियत को उजागर कर देता इसलिए वामी हरामी इतिहासकारों ने उसे मौलाना अबुल कलाम आजाद ही लिखा। उसे महान शिक्षाविद, हिन्दू मुस्लिम एकता का पोस्टर बॉय और सेक्युलरिज्म का सबसे बड़ा ठेकेदार शिक्षाविद बना डाला।
लेकिन अब आप स्वयं ही यह तय करें कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी, आखिर क्या था, कौन था.? वो महान शिक्षाविद था या मदरसा छाप था.? वो सेक्युलरिज्म का सबसे बड़ा ठेकेदार था या घोर कट्टर साम्प्रदायिक तुर्की के खलीफा का भारतीय गुर्गा था।

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

गाँधी खानदान शरद पवार 22/02/1994 को खायी कसम भी काभि काभि जनता को बता दिया करो।

आआपको कोंग्रेस का कोई पप्पु या शरद पवार जैसा राजनेता 22 फरवरी 1994 में किया गया संकल्प काभि नही बताएगा, क्यो?

               22 फर. 1994 को भारतीय संसद में कश्मीर सम्बन्ध में एक संकल्प प्रस्तावित किया गया था जो कि सर्वसम्मति से पारित भी किया गया था. इस प्रस्ताव में कहा गया था कि कश्मीर के जो क्षेत्र चीन द्वारा 1962 में और पाकिस्तान द्वारा 1947 में कब्जा लिए गए थे उन क्षेत्रों को हम वापिस लेकर रहेंगे और इस बारे में किसी समझौते को स्वीकार नहीं करेंगे. इस संकल्प में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान को यह चेतावनी दी कि वह अवैध रूप से अतिक्रमण किये गए इस क्षेत्र को तुरंत खाली कर दे. वर्ष 1994 में लिए गए इस संकल्प का उद्देश्य जम्मू कश्मीर के साथ पूरे विश्व को यह सन्देश देना था कि प्रत्येक स्थिति में भारतीय सरकार जम्मू कश्मीर के साथ है. 22 फरवरी 1994 को पी वी नरसिम्हाराव के प्रधानमंत्रित्व काल में संसद नें जिस संकल्प को पारित किया था बाद के वर्षों में अन्य प्रधानमंत्रियों के काल में यह प्रस्ताव धूल तले दबता जा रहा है. बाद की सरकारों ने इस प्रस्ताव के सन्दर्भ में प्रतिवर्ष इसका स्मरण तक करनें का प्रयास नहीं किया. नरसिम्हाराव के बाद की कांग्रेस की सरकारों की अब्दुल्ला परिवार के साथ जिस प्रकार की संदेहास्पद और रहस्यमयी आपसी समझ बूझ है उसके कारण से इस कथित प्रस्ताव पर चर्चा-स्मरण न होना स्वाभाविक लगता है. कांग्रेस की सतत चली आ रही कश्मीर पर तदर्थवाद की नीति में तो यह ठीक लगता है किन्तु अन्य अटलजी की सरकार के समय भी इस प्रस्ताव पर गंभीर राजनयिक कदम नहीं बढ़ा पाई थी. आज आवश्यकता है कि देश इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव के सन्दर्भ में जानें और भारतीय संसद और सम्पूर्ण भारतीय राजनीति भी अपनें द्वारा पारित इस प्रस्ताव की आत्मा को समझकर इस अनुरूप आचरण करें. इस प्रस्ताव में निम्नानुसार तथ्य कहे गए थे –

यह सदन पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंकियों के शिविरों पर गंभीर चिंता जताता है.  इसका मानना है कि पाकिस्तान की तरफ से आतंकियों को हथियारों और धन की आपूर्ति के साथ-साथ भारत में घुसपैठ करने में मदद दी जा रही है. सदन भारत की जनता की ओर से घोषणा करता है-
(1) पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भारतीय गणराज्य का अभिन्न अंग है और रहेगा. भारत अपने इस भाग को पुनः भारत में विलय का हरसंभव प्रयास करेगा.
(2) भारत में इस बात की पर्याप्त क्षमता और संकल्प है कि वह उन अलगाववादी और आतंकवादी शक्तियों का मुंहतोड़ जवाब दे, जो देश की एकता, प्रभुसत्ता और क्षेत्रिय अखंडता के खिलाफ हों और मांग करता है कि –
(3) पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के उन क्षेत्रों को खाली करे, जिन्हें उसने कब्जाया और अतिक्रमण किया हुआ है.
(4) भारत के आंतरिक मामलों में किसी भी हस्तक्षेप का कठोर जवाब दिया जाएगा.
जम्मू कश्मीर से हमारा तात्पर्य केवल जम्मू, कश्मीर या लदाख तक सीमित नहीं है. जम्मू कश्मीर में इन तीनो क्षेत्रो के साथ वह क्षेत्र भी आता है जिस पर पाकिस्तान से अवैध रूप से कब्ज़ा किया हुआ है. यह क्षेत्र है मीरपुर मुजफराबाद और गिलगित बल्तिस्तान. गिलगित बल्तिस्तान इन दो क्षेत्रों के विषय में हमें जान लेना चाहिए कि विश्वविख्यात प्राचीन सिल्क रूट इस गिलगित बल्तिस्तान में ही पड़ता है. इसी सिल्क रूट के माध्यम से भारत शेष एशिया एवं यूरोप में व्यापार किया करता था. वर्तमान में यह क्षेत्र गिलगित बल्तिस्तान पाकिस्तान के अतिक्रमण किये हुए कब्जे में है और यहां के निवासी अब तक भी भी पाकिस्तानी शासन को नहीं मानते हैं. पिछले दशकों में इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की नागरिक सुविधाओं का विस्तार नहीं हुआ. यहां के नागरिक पाकिस्तानी सेना के द्वारा निरंतर नारकीय यातनाएं भोग रहें हैं और मनावाधिकारों की धज्जियां उड़ रही है. हत्याएं, अपहरण संपत्ति पर कब्जा इन क्षेत्रों में ठीक इसी प्रकार हो जाता है जैसे किसी कबीले में होता है.

              भारत की कश्मीर नीति में शिमला समझौते को पाकिस्तान और विश्व समुदाय एक मील पत्थर के रूप में लेता है और यही वह कोण है जहां आकर भारत फंस जाता है. राजनयिक दृष्टि से अति कुशाग्रता और हावी होते हुए यदि शिमला समझौते को व्यक्त किया जाए तब तो इस समझौते से भारत को लाभ मिल सकता है अन्यथा जिस प्रकार इस समझौते की ढूलमूल व्याख्या होती रही है उससे तो यह कश्मीर मुद्दा कण मात्र भी आगे नहीं बढ़ने वाला है. आवश्यकता है कश्मीर पर संकल्पशील और आक्रामक भारतीय नेतृत्व की और प्रतिबद्ध केंद्र सरकार की. भारत-पाकिस्तान ने 1972 में हुए शिमला समझौते में एलओसी को दोनों देशों के बीच सीमा के रूप में स्वीकार करनें की एतिहासिक भूल कर ली थी. इस समझौते में जब हमारी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के जुल्फिकार अली भट्टो ने शिमला समझौते पर हस्ताक्षर करके एलओसी को दोनों देशों की सीमा के रूप में स्वीकार कर लिया था. पाकिस्तान पक्ष के कश्मीर विशेषज्ञ प्रश्न करते हैं कि अब हम पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का भारत में विलय किस तरह से कर सकते हैं? पाकिस्तानी कश्मीरी विशेषज्ञ भारत-पाक के बीच कश्मीर के मुद्दे के सुलझ जानें का दावा करते हैं और भौगोलिक नक्शों के अपरिवर्तनीय होनें का दम भरते हैं.  भारतीय पक्ष से यहां यह स्मरणीय भी है और महत्वपूर्ण भी कि जिसे हम पीओके कहतें हैं एवं पाकिस्तान जिसे  आजाद कश्मीर कहता है, वह क्षेत्र जम्मू का हिस्सा था न कि कश्मीर का; अतः उसे कश्मीर कहा ही नहीं जा सकता. न तो वह कश्मीर का अंश था और न ही इस रूप में उसका समझौता हो सकता था. वहां की लोक भाषा भी कश्मीरी न होकर डोगरी और मीरपुरी का मिश्रण है. इतिहास को यदि हम क्रमवार देखें और इन तकनीकी भूलों को आलोकित करें तो शिमला समझौते की भी समीक्षा के उजले अवसर आभास होतें हैं. और यदि हम महाराजा हरिसिंग के विलय प्रस्ताव को और उसकी भारतीय गणराज्य की ओर से की गई स्वीकृति के दस्तावेज को देखें तो इनकें शब्दों में कही कोई विरोधाभास नहीं है. विलय के दस्तावेज कश्मीर के पूर्ण विलय के तथ्य को सुस्पष्ट घोषणा की स्थिति में दिखते  हैं. अब इन सब परिस्थितियों में से कौन सा भारतीय प्रधानमन्त्री और कौन सी सरकार राह बनाकर आगे बढ़ पाती है यही एक प्रश्न भी है और प्रतीक्षा भी !!

            दुखद यह तथ्य भी है कि भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर परिस्थितियां जो सहज कभी नहीं रही उनकी असहजता जस की तस नहीं है. परिस्थितियां निरंतर उलझ रही हैं और भारतीय पक्ष को कमजोर कर रही हैं. भारत कश्मीर में उस स्थिति में खड़ा है जहाँ उसके पास खोनें को बहुत कुछ है और तथ्य यह है कि हम निरंतर कश्मीर में कुछ न कुछ खो रहे हैं. पिछले दशकों की घटनाओं की समीक्षा करें तो यह दुखद तथ्य ही और पछतावा ही हमारें हाथ लग रहा है कोई उपलब्धि नहीं. पाक कब्जे वाले कश्मीर में चीन की नई उपस्थिति इस कड़ी में एक बड़ी और कठिन गाँठ के रूप में हम भारतीयों के समक्ष है. पाक और चीन के बीच पीओके में निर्माण कार्यों को लेकर आठ समझौते हो चुकें हैं जिन्हें न रोक पाना भारतीय राजनयिक विफलता की एक बड़ी कहानी है. चीन और पाकिस्तान पीओके से होते हुए एक 200 किमी लम्बी सुरंग का निर्माण कर रही है जिस पर 18 अरब डालर का भारी भरकम खर्च होना है. अब इस महत्वपूर्ण गलियारे में इस सुरंग के माध्यम से चीन की उपस्थिति भारत के लिए एक नई समस्या के रूप में है. इस सुरंग से चीन के कई दीर्घकालिक सैन्य,आर्थिक, और सामरिक लक्ष्य सिद्ध होंगे और इन सभी मोर्चों पर उसके हित भारतीय हितों की कीमत पर फलित होंगे यह भी सत्य है. चीन पहले से ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से इस क्षेत्र में हावी था, अब यह सुरंग अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन में काशगर से जोड़ेगी. इस सुरंग से चीन पश्चिम एशिया और स्टेट आफ हरमुज तक सहजता और सरलता से पहुंचेगा. यही वह मार्ग है जहाँ से जहां से दुनिया के एक तिहाई तेल उत्पादन का परिवहन होता है. केवल यही नहीं अपितु और भी दसियों चिंताएं हैं जो पिछले वर्षों में भारत-पाक के बीच पीओके को लेकर बढ़ गई हैं. अब इन चिंताओं का निवारण कैसे हो और नई चिंताओं का जन्म लेना किस प्रकार रुके यह एक यक्षप्रश्न है वर्तमान केंद्र सरकार के सामनें.

बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

जामुन की लकड़ी का महत्व

#जामुन_की_लकड़ी_का_महत्त्व
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अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल या हरी काई नहीं जमती और पानी सड़ता नहीं । टंकी को लम्बे समय तक साफ़ नहीं करना पड़ता ।

जामुन की एक खासियत है कि इसकी लकड़ी पानी में काफी समय तक सड़ता नही है।जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़ा पैमाने पर होता है।नाव का निचला सतह जो हमेशा पानी में रहता है वह जामून की लकड़ी होती है।

गांव देहात में जब कुंए की खुदाई होती तो उसके तलहटी में जामून की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जिसे जमोट कहते है। आजकल लोग जामुन का उपयोग घर बनाने में भी करने लगे है।
जामून के छाल का उपयोग श्वसन गलादर्द रक्तशुद्धि और अल्सर में किया जाता है।

दिल्ली के महरौली स्थित निजामुद्दीन बावड़ी का हाल ही में जीर्णोद्धार हुआ है । 700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहाँ पानी के सोते बंद नहीं हुए हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के.एन. श्रीवास्तव के अनुसार इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहाँ लकड़ी की वो तख्ती साबुत है जिसके ऊपर यह बावड़ी बनी थी। श्रीवास्तव जी के अनुसार उत्तर भारत के अधिकतर कुँओं व बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल आधार के रूप में किया जाता था।

इस बावड़ी में भी जामुन की लकड़ी इस्तेमाल की गई थी जो 700 साल बाद भी नहीं गली है। बावड़ी की सफाई करते समय बारीक से बारीक बातों का भी खयाल रखा गया। यहाँ तक कि सफाई के लिए पानी निकालते समय इस बात का खास खयाल रखा गया कि इसकी एक भी मछली न मरे। इस बावड़ी में 10 किलो से अधिक वजनी मछलियाँ भी मौजूद हैं।

इन सोतों का पानी अब भी काफी मीठा और शुद्ध है। इतना कि इसके संरक्षण के कार्य से जुड़े रतीश नंदा का कहना है कि इन सोतों का पानी आज भी इतना शुद्ध है कि इसे आप सीधे पी सकते हैं। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि पेट के कई रोगों में यह पानी फायदा करता है।

पर्वतीय क्षेत्र में आटा पीसने की पनचक्की का उपयोग अत्यन्त प्राचीन है। पानी से चलने के कारण इसे "घट' या "घराट' कहते हैं।घराट की गूलों से सिंचाई का कार्य भी होता है। यह एक प्रदूषण से रहित परम्परागत प्रौद्यौगिकी है। इसे जल संसाधन का एक प्राचीन एवं समुन्नत उपयोग कहा जा सकता है। आजकल बिजली या डीजल से चलने वाली चक्कियों के कारण कई घराट बंद हो गए हैं और कुछ बंद होने के कगार पर हैं।

पनचक्कियाँ प्राय: हमेशा बहते रहने वाली नदियों के तट पर बनाई जाती हैं। गूल द्वारा नदी से पानी लेकर उसे लकड़ी के पनाले में प्रवाहित किया जाता है जिससे पानी में तेज प्रवाह उत्पन्न हो जाता है। इस प्रवाह के नीचे पंखेदार चक्र (फितौड़ा) रखकर उसके ऊपर चक्की के दो पाट रखे जाते हैं। निचला चक्का भारी एवं स्थिर होता है। पंखे के चक्र का बीच का ऊपर उठा नुकीला भाग (बी) ऊपरी चक्के के खांचे में निहित लोहे की खपच्ची (क्वेलार) में फँसाया जाता है। पानी के वेग से ज्यों ही पंखेदार चक्र घूमने लगता है, चक्की का ऊपरी चक्का घूमने लगता है।पनाले में प्रायः जामुन की लकड़ी का भी इस्तेमाल होता है |फितौडा भी जामुन की लकड़ी से बनाया जाता है ।

जामुन की लकड़ी एक अच्छी दातुन है।

जलसुंघा ( ऐसे विशिष्ट प्रतिभा संपन्न व्यक्ति जो भूमिगत जल के स्त्रोत का पता लगाते है ) भी पानी सूंघने के लिए जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल करते । 

मुस्लिम और पारसी में क्या फर्क है?

हम भारतीयों को आप पारसियों पर बहुत गर्व है 

कोविड  वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम पारसी की है जिसका नाम है आदार पूनावाला 

आदार पूनावाला ने बॉम्बे पारसी पंचायत 60000 वैक्सीन ऑफर किया था कि पारसी लोगों को पहले वैक्सीन  लग जाए लेकिन बॉम्बे पारसी पंचायत के अध्यक्ष और उसके अलावा प्रख्यात उद्योगपति रतन टाटा ने यह कहा कि हम पहले भारतीय हैं बाद में पारसी हैं हमें वैक्सीन तभी चाहिए जब सभी भारतीयों को वैक्सीन मिलेगी

फैक्ट्री  से शुरू हो रही वैक्सीन   आगे कैसे बढ़ती है वह देखिए

 वैक्सीन जिस कांच की शीशी में यानी व्हाईल में पैक होती है उसे भी एक पारसी की कंपनी बनाती है इसका नाम स्कॉट्सलाइस है जिसके मालिक रीशाद दादाचन्दजी  हैं

वैक्सीन को पूरे भारत में ट्रांसपोर्टेशन के लिए रतन टाटा ने अपनी कंपनी की रेफ्रिजरेटेड वाहन मुफ्त में दिया है

यदि वैक्सीन को हवाई मार्ग द्वारा जेट से भेजना होता है तो उसके लिए एक दूसरे पारसी श्री जाल वाडिया ने अपने 5 जेट को दिया है

वैक्सीन को रखने के लिए जिस ड्राई आइस यानि लिक्विड कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग किया जा रहा है उसे भी एक पारसी फ़रोक दादाभोई दे रहे है

भारत में 25 जगहों पर वैक्सीनेशन के स्टोर के लिए एक दूसरे पारसी आदि गोदरेज ने अपने रेफ्रिजरेटेड यूनिट को सौंप दिया है

सोचिए इन पारसियों  को भारत की कोई सुविधा नहीं चाहिए यह खुद को कभी अल्पसंख्यक मानते ही नहीं और आज तक एक भी पारसी  अल्पसंख्यक कल्याण योजना का फायदा नहीं लेता बल्कि पारसी  खुद को अल्पसंख्यक नही बल्कि  भारतीय समझते हैं भारत के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं भारत की जीडीपी में सबसे ज्यादा योगदान दे रहे हैं भारत को सबसे ज्यादा टैक्स दे रहे हैं और जब भी भारत की मदद करनी होती है तो सबसे आगे पारसी आते हैं 

जबकि भारत में एक और कौम (मुस्लिम) भी हैं जिनका टैक्स में योगदान नगण्य के बराबर है। लेकिन उसे भारत की हर सुविधाएं मुफ्त में चाहिए हर सरकारी अस्पताल में उसे मुफ्त में इलाज चाहिए हर सरकारी योजना का उसे फायदा चाहिए।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

रोना नही।संतोष आनंद मशहूर गीतकार का जीवन।

नाम, पैसा, शोहरत, इबरत ... लेकिन किस्मत का पहिया ऐसा चला कि न पैसे बचे और न इब्राहत ... सबसे खास बात यह है कि बेटा नहीं बचा और न बहू ! .. बहुत अकेला जीवन उनके नसीब में आया। उन का पोता भगवान की एक छोटी सी कृपा के रूप में उसके साथ है! संतोष आनंद एक दुर्भाग्यशाली कलाकार हैं! इक प्यार का नगमा है ... मेघा रे मेघा रे ... मुझे क्या कमी है तुम्हारे पास ... प्रेम क्या है ... इतने सारे सार्थक और सुपरहिट गाने लिखना जैसे ... उस समय के प्रसिद्ध ... दो फिल्मफेयर और प्रतिष्ठित यश भारती पुरस्कार जीतना ... एक गीतकार जो कभी प्रसिद्ध और करीबी दोस्तों के घेरे में रहते थे ..! सब कुछ ठीक था .. केवल एक बेटा, बहू और एक प्यारी पोती .. लेकिन लड़का किसी तरह की धोखाधड़ी में फंस गया ... और उसने एक दिन उसने निर्णय लिया और अपनी पत्नी और केवल 4 वर्षीय बेटी के साथ, मैं एक चलती हुई ट्रेन के नीचे चला गया। वह और उसकी पत्नी का निधन हो गया, लेकिन बेटी, जो गंभीर रूप से घायल थी, बच गई। शायद संतोष आनंद की देखभाल के लिये। लड़के ने अपनी मौत से पहले 10 पेज का सुसाइड नोट लिखा .. बड़े पदाधिकारियों पर आरोप लगाया लेकिन उस पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है .. अगर ऐसा होता है, तो भी बेटे और बहू को वापस नहीं आएंगे। जो समय बीत चुका है वह फिर नहीं आएगा। तुम्हारे सिवा मेरे दिल में कोई नहीं आएगा,,,, हमने घर जला दिया, अब हमें राख चुननी है,,, ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है ... ये गीत उनकी ही देन है। लेकिन दुर्भाग्य का सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है .. गीतकार संतोष जआनंद विकलांग हो गए .. उन्होंने 3-4 बार पैर की सर्जरी कराई। व्हीलचेयर पे आगए अब। अंग बहुत कांपते हैं ... आवाज़ कट जाती है .. भले ही उनके पास रहने के लिए पैसे नहीं हैं, लेकिन लेखन सांस उतनी ही दिखाई देती है ..! कुछ हासिल करना है और कुछ खोना है,,,, जीवन का अर्थ है आना-जाना,,,, दो क्षणों के जीवन से,,,, एक उम्र चोरी करना है,,, ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है ... कल इंडियन आइडल पर संतोष आनंद की कहानी सुनकर मैं दर्द हुआ। नेहा कक्कर की सराहना। उन्हें देखकर वह फूट-फूट कर रोने लगीं .. उनके गले से लिपट गईं और रो पड़ीं .. प्यार से उनके सिर पर हाथ रखा .. उन्हें भावुक आश्वासन दिया .. मुख्य बात 5 लाख रुपये की आर्थिक मदद थी! .. स्वाभिमानी संतोष आनंद ने विनम्रता से! उस स्थिति में भी इसका खंडन किया .. 'मैं अभी भी काम कर रहा हूँ .. मैं यहाँ और वहाँ जाता हूँ ..' यह कहते हुए, उनकी आवाज़ भर गई और हमारी आँखें सुन रही थीं! नेहा ने उन्हें समान स्नेह के साथ उपहार स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। नेहा ने पहले भी फुटपाथ पर एक हारमोनियम बजाने वाले को 1 लाख रुपये का दान देने की घोषणा की थी। मैंने उसे रोते हुए नाटकीय नहीं पाया। वह 10 साल पहले इंडियन आइडल से आई है। गरीबी देखी गई है। वह उम्र में युवा है ... लेकिन उदार होने के लिए, किसी को सामाजिक जागरूकता होनी चाहिए, यह उसके अंदर है। किसी की समस्या सुनकर, उसका हाथ तुरंत मदद के लिए आगे आता है .. भले ही पैसा हो, कोई दान नहीं है! यह दूसरा संवेदनशील वाकया है। ईश्वर उसे बहुत खुशहाल जीवन और पूर्ण सफलता दे !! कल की इंडियन आइडल घटना बहुत खूबसूरत थी .. दिल को छू लेने वाली थी ... आइए इसे फिर से देखें! .. संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के एवीट गाने .. टोडी के प्रतियोगी .. सबसे महत्वपूर्ण बात एक असामान्य गीतकार की पहचान है जो ग .. फिर भी हम गाने सुनते हैं लेकिन उनके पीछे गीतकार संगीतकार के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं! संतोष आनंद को दुनिया के सामने लाने के लिए इंडियन आइडल का बहुत-बहुत धन्यवाद! .. उनके शब्दों 'किसी ने उन्हें याद किया ..' ने मुझे दुखी किया! इस शो को देखने वाले हर कोई रोया होगा ... आंखों में सागर है, आशा के आंसू हैं,,,, ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है ... भगवान संतोष आनंद को एक स्वस्थ जीवन दे सकते हैं, जो असामान्य शब्दों में समृद्ध है!

स्वतंत्रता संग्राम में दलितों का बलिदान जो आपको काभि बताया नही गया।

एक सोची-समझी साजिश के तहत बहुजनों के इतिहास को या तो नजर अंदाज कर दिया गया या फिर उसे मिटाने की कोशिश की गई. आजादी के आंदोलन में भी यही हुआ. लेखनी पर जिनका एकाधिकार रहा उन्होंने मनचाहे तरीके से इतिहास को दर्ज किया. लेकिन अब इतिहास की परतों में से तमाम बहुजन नायक बाहर आने लगे हैं. देश की आजादी की लड़ाई के दौरान तमाम बहुजन नायक ऐसे रहें जो अंग्रेजों के सामने चट्टान की तरह खड़े रहे. दलित दस्तक ऐसे दर्जन भर नायकों को सामने लेकर आया है।

वैसे तो देश की आजादी का पहला स्वतंत्रता संग्राम 1857 का माना जाता है लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल 1780-84 में ही बिहार के संथाल परगना में तिलका मांझी की अगुवाई में शुरू हो गया था. तिलका मांझी युद्ध कला में निपुण और एक अच्छे निशानेबाज थे. इस वीर सपूत ने ताड़ के पेड़ पर चढ़कर तीर से कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था. इसके बाद महाराष्ट्र, बंगाल और उड़ीसा प्रांत में दलित-आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू कर दी. इस विद्रोह में अंग्रेजों से कड़ा संघर्ष हुआ जिसमें अंग्रेजों को मुंह की खानी पड़ी. सिद्धु संथाल और गोची मांझी के साहस और वीरता से भी अंग्रेज कांपते थे. बाद में अंग्रेजों ने इन वीर सेनानियों को पकड़कर फांसी पर चढ़ा दिया.

इसके बाद अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल 1804 में बजा. छतारी के नवाब नाहर खां अंग्रेजी शासन के कट्टर विरोधी थे. 1804 और 1807 में उनके बेटों ने अंग्रेजों से घमासान युद्ध किया. इस युद्ध में जिस व्यक्ति ने उनका भरपूर साथ दिया वह उनका परम मित्र उदईया था, जिसने अकेले ही सैकड़ों अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा. बाद में उदईया पकड़ा गया और उसे फांसी दे दी गई. उदईया की गौरव गाथा आज भी क्षेत्र के लोगों में प्रचलित हैं.

चेतराम जाटव और बल्लू मेहतर
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाले दो प्रमुख नाम चेतराम जाटव और बल्लू मेहतर के भी थे। उन्होंने आजादी के लिए न केवल फिरंगियों से टक्कर ली बल्कि देश की आन-बान और शान के लिए कुर्बान हो गए. क्रांति का बिगुल बजते ही देश भक्त चेतराम जाटव और बल्लू मेहतर भी 26 मई 1857 को सोरों (एटा) की क्रांति की ज्वाला में कूद पड़े. वे इस क्रांति की अगली कतार में खड़े रहे. फिरंगियों ने दोनों दलित क्रांतिकारियों को पेड़ में बांधकर गोलियों से उड़ा दिया और बाकी लोगों को कासगंज में फांसी दे दी गई.

बांके चमार
इसी तरह 1857 की जौनपुर क्रांति के दौरान जिन 18 क्रांतिकारियों को बागी घोषित किया गया उनमें सबसे प्रमुख बांके चमार थे। बांके चमार को जिंदा या मुर्दा पकडऩे के लिए ब्रिटिश सरकार ने उस जमाने में 50 हजार का इनाम घोषित किया था. बांके को गिरफ्तार कर मृत्यु दंड दे दिया गया.

वीरा पासी

जलियांवाला बाग के बाद दूसरे सबसे बड़े सामूहिक नरसंहार की गवाह बनी थी रायबरेली की माटी, जहां अंग्रेजों ने सैकड़ों किसानों को घेरकर बर्बरतापूर्वक गोलियों से भून दिया था. उसी रायबरेली की धरती ने स्वाधीनता की लड़ाई में वीरा पासी जैसा नायक दिया. इस नायक ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए. इस योद्धा से खौफजदा अंग्रेजी सरकार ने वीरा पासी को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था. वीरा पासी रायबरेली क्षेत्र के राणा बेनी माधव के मुख्य सिपहसालार और अंगरक्षक थे. अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में उन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.

बुद्धु भगत
गुमनामी में खो गए जिन शहीदों का नाम आता है, उनमें वीर बुद्धु भगत भी थे। छोटा नागपुर के वे ऐसे जननायक थे, जिन्होंने न केवल अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए बल्कि उन्हें उरांव आदिवासी इलाका छोड़ने को मजबूर भी कर दिया। इस युद्ध में उनकी बेटियां रुनिया और झुनिया ने भी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में हि्स्सा लिया और शहीद हो गईं।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने भी न केवल बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया बल्कि प्राणों की आहुति भी दी.

वीरांगना झलकारी बाई
वीरांगना झलकारी बाई ऐसी ही एक वीरांगना थीं। यह चर्चित बात है कि झलकारी बाई और लक्ष्मीबाई की सकल-सूरत एक दूसरे से काफी मिलती जुलती थी, इसलिए अंग्रेज झलकारीबाई को ही रानी लक्ष्मीबाई समझकर काफी देर तक लड़ते रहे. बाद में झलकारीबाई शहीद हो गईं लेकिन इतिहासकारों ने झलकारीबाई के योगदान को हाशिए पर रखकर रानी लक्ष्मीबाई को ही वीरांगना का ताज दे दिया.

वीरांगना ऊदादेवी
वीरांगना ऊदादेवी का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। 16 नवम्बर 1857 को लखनऊ के सिकन्दरबाग चौराहे पर घटित इस अपने ढंग के अकेले बलिदान को इतिहास के पन्नों से दूर ही रखा गया. ऊदादेवी नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल की महिला सैनिक दस्ते की कप्तान थीं. इनके पति का नाम मक्का पासी था. जो लखनऊ के गांव उजरियांव के रहने वाले थे. अंग्रेजों ने लखनऊ के चिनहट में हुए संघर्ष में मक्का पासी और उनके तमाम साथियों को मौत के घाट उतार दिया था. पति की मौत का बदला लेने के लिए वीरांगना ऊदादेवी 16 नवंबर 1857 सिकंदर बाग (लखनऊ) में एक पीपल के पेड़ पर चढ़कर 36 अंग्रेज फौजियों को गोलियों से भून दिया था और बाद में खुद भी शहीद हो गईं थीं.

महाबीरी देवी वाल्मीकि
दलित समाज की महाबीरी देवी वाल्मीकि को तो आज भी बहुत कम लोग जानते हैं. मुजफ्फरपुर की रहने वाली महाबीरी को अंग्रेजों की नाइंसाफी बिलकुल पसंद नहीं थी. अपने अधिकारों के लिए लडऩे के लिए महाबीरी ने 22 महिलाओं की टोली बनाकर अंग्रेज सैनिकों पर हमला कर दिया. अंग्रेजों को गांव देहात में रहने वाली दलित महिलाओं की इस टोली से ऐसी उम्मीद नहीं थी. अंग्रेज महाबीरी के साहस को देखकर घबरा गए थे. महाबीरी ने दर्जनों अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया और उनसे घिरने के बाद खुद को भी शहीद कर लिया था.

उधमसिंह

भारत के स्वाधीनता संग्राम में उधमसिंह एक ऐसा नाम है, जिसने अपने देश और समाज के लोगों की मौत का बदला लंडन जाकर लिया. उन्होंने जालियांवाला बाग के वक्त पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ डायर को गोलियों से भून डाला. लेकिन इस पराक्रमी नायक को भी दलित होने की वजह से इतिहास के पन्नों में जो जगह मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिल सकी और महज खानपूर्ति की गई.

रामपति चमार
चौरी-चौरा का इतिहास खंगालने पर यह साफ हो जाता है कि स्वतंत्रता आंदोलन में रामपति चमार और उनके अन्य साथियों का भी उल्लेखनीय योगदान है.

सुभाष चंद्र बोस
जब सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश सरकार को खदेडऩे के लिए 26 जनवरी 1942 को आजाद हिन्द फौज बनाई और “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दुंगा” की अपील की तो कैप्टन मोहन लाल कुरील की अगुवाई में हजारों दलित भी फौज में शामिल हो गए. यहां तक की चमार रेजीमेंट पूरी तरह आजाद हिन्द फौज में विलीन हो गई.

इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए. उन तमाम बहुजन नायकों को दलित दस्तक की श्रद्धांजलि.

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

भारत मे पहली बार महिला को होगी फांसी।

भारत मे पहली बार महिला को फाँसी पर लटकाया जाएगा??


  क्या है ये मामला जानते है।
 बात है एप्रैल 2008 कि। यूपी के अमरोहा में एक ही परिवार के 8 सदस्यों की हत्या बड़े ही निर्ममता से के गयी थी। और हत्यारा निकली घर की  अकेली बेटी *शबनम*
 शबनम अपने माँ - बाप की लाडली बेटी थी। पिता प्रोफेसर, शबनम को बड़े लाड प्यार से पाला गया था। और उसने MA तक कि पढ़ाई भी की थी।
 बस शबनम को अपने प्यार में फसाया था एक अनपढ़ पंक्चर छाप लड़के मझहबी सोच वाले लड़के सलीम ने।
शबनम उसके बातो में इतनी आगयी के, जब उसके मा बाप ने इस प्यार का विरोध किया तो ओ पूरे परिवार को नींद की गोलियां खिलाकर अपने आशीष सलीम  के साथ, रंगरेलियां करती थी।
 एक दिन सलीम ने उसे कँहा तेरा परिवार हमारा दुश्मन है, सब को मार डाल, तो शबनम ने अपने घर आकर नींद में बेहोश सोए  अपने परिवार के 7 सदस्य को कुल्हाड़ी से बड़े निर्मार्ता से मार डाला। और शोर मचाया के घर मे किसी ने आकर हमला कर दिया। 
  पुलिस को भी पहले लगा कि इतनी निर्ममता से हत्य्या तो कोई हरामी ही कर सकता है। पर जब जाँच आगे बढ़ी तो, शबनम को गर्भवती पाया गया, जब के न तो उसकी शादी हुयी थी न निकाह। तब पुलिस ने जब डंडा चलाया तो, शबनम ने सब उगल दिया।
 हर कोर्ट ने शबनम की फांसी  को फाँसी की सजा ही सुनाई
 ओर अब राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका भी खारिज कर दी।
 अब एप्रैल 2021 को शबनम को फाँसी पर लटकाया जाएगा।
 ये भारत के स्वतंत्रता के इतिहास में किसी महिला को फाँसी पर लटकाने का पहला केस होगा
 यँहा ये याद रहे, के शबनम ने अपने माँ- बाप, दो सगे भाई, उनकी पत्नियां उनके बेटे, सबको एक मझहबी सलीम के चक्कर मे मौत के घाट उतार दिया था।

 शबनम में जेल के अंदर उसी सलीम का एक बेटा भी जना है।

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

पृथ्वीराज चौहान और उसका कवि:- इतिहास के पन्नो से

चौहान को याद करो…। 

 आज बसंत पंचमी का प्रेरक अवसर है।  यह मां सरस्वती के ज्ञान के साथ हमारे राष्ट्र की रक्षा   का चमकता प्रमाण है।

 अफगानिस्तान के काबुल में एक अंधेरे सेल में, एक नर शेर गुस्से में घूम रहा था।  जिन तलवारों से दुश्मन के टिड्डों का पीछा किया गया था, वे तलवारें जंजीरों से बंधी हुई थीं।  प्रतिशोध की लपटे अभी भी उसकी छीली हुई आँख के छेद में जल रही थी। ऐसे वीर सपूत का नाम "हिंदु शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" था!

 अजयमेरु (अजमेर) के राजपूत नायक ने विदेशी इस्लामी आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को सोलह बार हराया था और हर बार उदारता दिखाते हुए उसे जिंदा छोड़ दिया, लेकिन जब वह सत्रहवीं बार हार गया, तो मोहम्मद गौरी ने उसे जाने नहीं दिया।  वह उन्हें पकड़कर काबुल-अफगानिस्तान ले गया।  वही गौरी जो सोलह बार पराजित होने के बाद भीख मांगने वाले के रूप में दया की भीख माँगता था, ओ अब उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए लगातार प्रताड़ित कर रहा था।  
पृथ्वीराज ने कहा था, "मर जाना बेहतर है लेकिन इस्लाम कबूल नहीं करना"!

 पृथ्वीराज के वफादार शाही कवि "चाँद बरदाई" अपने राजा पृथ्वीराज से मिलने सीधे काबुल पहुँचे!  चंद बरदाई पृथ्वीराज की दयनीय स्थिति को देखकर हैरान रह गए, जबकि वह वहां एक कैदी थे। उन्होंने गौरी से बदला लेने का फैसला किया, जिन्होंने अपने राजा के साथ ऐसा किया था। उसने अपने राजाओं को अपनी योजना बताई और अनुरोध किया, उस  समय उसे मार दिया जाए।  ”

 चंद बरदाई गौरी के दरबार में आए।  उन्होंने गौरी से कहा, "हमारा राजा एक राजसी सम्राट है ... वह एक महान योद्धा है, लेकिन मेरे राजा की एक विशेषता यह है कि आप इस बात से अवगत नहीं हैं कि हमारे राजा ध्वनि-ध्यान-प्रवेश में पारंगत हैं!"  वे केवल एक ध्वनि अवरोध के साथ तीरों की शूटिंग करके सही निशाना चुनने में अच्छे हैं!  यदि आप चाहें, तो आप अपने लिए उसके भेदी तीरों का अद्भुत प्रदर्शन देख सकते हैं!

 इस पर विश्वास न करते हुए, गौरी ने कहा, "ओह, मैंने आपके राजा की दोनों आँखें तोड़ दी हैं ... तो एक अंधा आदमी धनुष कैसे मार सकता है?"
 
 चंद बरदाई ने विनम्रता से जवाब दिया, "खविंद, अगर आपको सच्चाई पर विश्वास नहीं है, तो आप वास्तव में इस विद्या को देख सकते हैं। ... मेरे राजाओं को यहाँ दरबार में बुलाएँ। यहाँ से कुछ दूरी पर सात लोहे के फ्राइंग पैन रखें ...!"

 गौरी ने धृष्टतापूर्वक मुस्कुराते हुए कहा, "आप अपने राजा के बहुत बड़े प्रशंसक हैं! लेकिन याद रखें ... यदि आपका राजा इस कला को नहीं दिखा सका, तो मैं आपके और आपके राजा के सिर को उसी दरबार में फूँक दूंगा!"

 चंद बरदाई गौरी की शर्त पर सहमत हो गए और जेल में अपने प्यारे राजा से मिलने आए।  वहाँ उन्होंने पृथ्वीराज से गौरी के साथ बातचीत के बारे में बताया, अदालत के विस्तृत लेआउट के बारे में बताया और उन दोनों ने मिलकर अपनी योजना बनाई ...

 जैसा कि योजना बनाई गई थी, गौरी ने अदालत को भर दिया और अपने राज्य के सभी शीर्ष अधिकारियों को इस कार्यक्रम को देखने के लिए आमंत्रित किया।  भल्लर चोपदार ने वर्दी दी कि मोहम्मद गौरी अदालत में आ रहा था।  और गौरी अपनी ऊँची सीट पर बैठ गया!

 चंद बरदाई के निर्देश के अनुसार, सात बड़े लोहे के तवों को एक निश्चित दिशा और दूरी में रखा गया था।  पृथ्वीराज की आंखें निकाली गईं थी और उन्हें अंधा कर दिया गया था, उन्हें चंद बरदाई की मदद से अदालत में लाया गया।  अपने उच्च स्थान के सामने खुले स्थान में, पृथ्वी  राजा को बैठाया गया था ताकि गौरी "भेदी तीर का शब्द" देख सकें।

 चंद बरदाई ने गौरी से कहा, "खविंद, मेरे राजाओं की जंजीरों और हथकड़ी को हटा दिया जाना चाहिए, ताकि वे उनकी इस अद्भुत कला को प्रदर्शित कर सकें।"
 गौरी को इसमें कोई ख़तरा महसूस नहीं हुआ, क्योंकि एक ओर, पृथ्वीराज को  अंधा कर दिया गया था, ओर चाँद बरदाई को छोड़ दिया, तो उसके पास कोई सैनिक नहीं है ... और मेरी सारी सेना मेरे साथ अदालत में मौजूद है  उन्होंने तुरंत पृथ्वीराज को रिहा करने का फरमान जारी किया।

 चंद बरदाई ने अपने प्यारे राजा के पैर छूकर सावधान रहने का अनुरोध किया ... उन्होंने कहा कि उपाधियां उनके राजा की प्रशंसा करती हैं ... और इसी पद के माध्यम से चंद बरदाई ने अपने राजा को संकेत दिया।

 * "चार बाँस, चौबीस गज, सबूत की आठ उंगलियाँ।"
 * ता ऊपर सुल्तान है, याद राखे चौहान। "*

  सुल्तान चार बांस, चौबीस गज और आठ फीट… की ऊंचाई पर बैठा है।  तो राजा चौहान कोई गलती न करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करें!

 इस प्रतीकात्मक डिग्री से, पृथ्वीराज को मोहम्मद गौरी के बैठने की दूरी का सटीक अनुमान लगा।
 
 चंद बरदाई ने फिर से गौरी से निवेदन किया, "सर, मेरे राजा आपके बंदी हैं, इसलिए वे  तब तक  तीर। नहीं चलाएंगे जब तक आप उन्हें आज्ञा नहीं देते, इसलिए आप मेरे राजाओं को इतनी जोर से तीर चलाने की आज्ञा दें कि ओ उन्हें स्वयं सुन सकें।"

 गौरी प्रशंसा से अभिभूत था और वह जोर से चिल्लाया, * "चौहान चललो तीर ... चौहान चालो तीर!!"

 जैसे ही पृथ्वीराज चौहान ने गौरी की आवाज़ सुनी, उन्होंने अपने धनुष पर तीर चढ़ाया और गौरी की आवाज़ की दिशा में तीर चलाया और तीर ने गौरी की छाती में छेद कर दिया!

 मोहम्मद गौरी का शरीर सिंहासन से नीचे गिर गया, और चिल्लाया "या अल्लाह! दाग हो गया"!

 कोर्ट में एक ही हंगामा शुरू हो गया।  सभी प्रमुख कांप उठे, उसी अवसर को लेते हुए, चंद बरदाई अपने प्यारे राजा के पास भागे ... उन्होंने अपने राजा को बताया कि गौरी की मृत्यु हो गई और उनका पतन हो गया ... उनके बहादुर राजा को प्रणाम किया ... वे दोनों एक दूसरे से गले मिले .उन्हें ये मालूम था के गौरी की सेना  अब अत्याचार करेगी और हमे मार डालेगी... इसलिए, जैसा कि योजना बनाई गई थी, दोनों ने एक-दूसरे पर हमला किया और वसंत पंचमी के शुभ दिन पर, उन्होंने मां सरस्वती के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया!

 पृथ्वीराज चौहान और कवि चंद बरदाई के आत्म-बलिदान की यह वीर गाथा हमारे भारतीय बच्चों को गर्व के साथ सुनाई जानी चाहिए, और उन तक पहुँचना आवश्यक है, इसलिए हम आज आपके सामने इसे लेकर आए हैं।

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

सैनिक की मृत्यु पर गाये जाने वाले द लास्ट पोस्ट गाने का इतिहास।

यदि आप में से कोई भी कभी एक सैन्य अंतिम संस्कार में गया है जिसमें द लास्ट पोस्ट खेला गया था;
 इससे इसका एक नया अर्थ निकलता है।

 यहां कुछ ऐसा है जो सभी को जानना चाहिए।

 जब तक मैंने इसे पढ़ा, मुझे नहीं पता था,
 

 हम सभी ने भूतिया गाना 'द लास्ट पोस्ट' सुना है।
 यह गीत है जो हमें हमारे गले में गांठ देता है और आमतौर पर हमारी आँखों में आँसू होता है।

 लेकिन, क्या आप गाने के पीछे की कहानी जानते हैं?
 यदि नहीं, तो मुझे लगता है कि आप इसकी विनम्र शुरुआत के बारे में जानने के लिए इच्छुक होंगे।

 कथित तौर पर, यह सब 1862 में अमेरिकी नागरिक युद्ध के दौरान शुरू हुआ, जब यूनियन आर्मी के कप्तान रॉबर्ट एलिकॉम्बे वर्जीनिया में हैरिसन की लैंडिंग के पास अपने लोगों के साथ थे ... कॉन्फेडरेट आर्मी जमीन की संकीर्ण पट्टी के दूसरी तरफ थी।

 रात के दौरान, कप्तान एलिकॉम्बे ने एक सैनिक के विलाप को सुना, जो मैदान पर गंभीर रूप से घायल था।  यह जानते हुए भी कि यह एक संघ या संघि सिपाही था, कैप्टन ने अपने जीवन को खतरे में डालने और घायल व्यक्ति को चिकित्सा के लिए वापस लाने का फैसला किया।  बन्दूक के जरिये उसके पेट  के बल रेंगते रेंगते  हुए, कैप्टन भटके हुए सिपाही के पास पहुँच गया और उसे अपने डेरा की ओर खींचने लगा।

 जब कैप्टन आखिरकार अपनी ही पंक्तियों में पहुँच गया, तो उसने पाया कि यह वास्तव में एक कॉन्फेडरेट सैनिक था, लेकिन सैनिक मर चुका था।

 कैप्टन ने एक लालटेन जलाई और अचानक उसकी सांस पकड़ी और झटके के साथ सुन्न हो गया।  मंद रोशनी में, उसने सिपाही का चेहरा देखा .. यह उसका अपना बेटा था।  युद्ध शुरू होने पर लड़का दक्षिण में संगीत का अध्ययन कर रहा था।  अपने पिता को बताए बिना, लड़का कॉन्फेडरेट आर्मी में भर्ती हो गया।

 अगली सुबह, दिल टूट गया, पिता ने अपने दुश्मनों की स्थिति के बावजूद, अपने वरिष्ठों को अपने बेटे को पूर्ण सैन्य दफनाने की अनुमति देने के लिए कहा।  उनका अनुरोध केवल आंशिक रूप से प्रदान किया गया था।

 कैप्टन ने पूछा था कि क्या वह आर्मी बैंड के सदस्यों के एक समूह के अंतिम संस्कार में अपने बेटे के लिए अंतिम संस्कार कर सकते हैं।

 सिपाही के कन्फेडरेट होने के बाद से अनुरोध ठुकरा दिया गया था।

 लेकिन, पिता के सम्मान से, उन्होंने कहा कि वे उन्हें केवल एक संगीतकार दे सकते हैं।

 कैप्टन ने एक बगलर को चुना।  उन्होंने मृतक युवक की वर्दी की जेब में कागज के एक टुकड़े पर पाए जाने वाले संगीत नोट्स की एक श्रृंखला खेलने के लिए बगलर से पूछा।

 यह इच्छा दी गई।

 भूतिया राग, जिसे अब हम सैन्य अंत्येष्टि में प्रयुक्त 'द लास्ट पोस्ट' के रूप में जानते हैं।

 शब्द हैं:

 दिन हो गया।
 सूरज हो गया ।।
 झीलों से
 पहाड़ियों से।
 आसमान से।
 सब ठीक हैं।
 आराम से।
 परमात्मा nigh है।

 धूंधली प्रकाश।
 दृष्टि को गिराता है।
 और एक तारा।
 आकाश देता है।
 चमचमाता हुआ चमकीला।
 दूर से..
 आह भरते हुए।
 रात गुजारो ।।

 धन्यवाद और प्रशंसा।
 हमारे दिनों के लिए।
 सूरज के नीचे
 तारों के नीचे।
 आकाश के नीचे
 जैसे ही हम जाएं।
 यह हम जानते हैं।
 परमात्मा nigh है

 मुझे भी 'द लास्ट पोस्ट' सुनते हुए ठंड लग रही है
 लेकिन मैंने अब तक गीत के सभी शब्दों को कभी नहीं देखा है।
 मुझे पता भी नहीं था कि एक से अधिक कविताएँ हैं।
 मैं भी कभी गाने के पीछे की कहानी नहीं जानता था और मुझे पता नहीं था कि नहीं
 आपके पास या तो मैंने सोचा था कि मैं इसे पास कर दूंगा।

 मेरे पास पहले के मुकाबले अब गीत के लिए और भी गहरा सम्मान है।

 अपने देश की सेवा करते हुए उन खोए और नुकसान को याद करें।

 उन लोगों को भी याद रखें जिन्होंने सेवा की है और लौट आए हैं;
 और वर्तमान में सशस्त्र बलों में सेवारत हैं।

 कृपया इसे भेजें।

 हमारे सैनिकों के लिए ... कृपया इसे न तोड़े।

English

If any of you have ever been to a military funeral in which The Last Post was played;
This brings out a new meaning of it.

Here is something everyone should know.

Until I read this, I didn't know,
 

We have all heard the haunting song, 'The Last Post.'
It's the song that gives us the lump in our throats and usually tears in our eyes.

But, do you know the story behind the song?
If not, I think you will be interested to find out about its humble beginnings.

Reportedly, it all began in 1862 during the American Civil War, when Union Army Captain Robert Ellicombe was with his men near Harrison's Landing in   Virginia   ...  The Confederate Army was on the other side of the narrow strip of land.

During the night, Captain Ellicombe heard the moans of a soldier who lay severely wounded on the field.  Not knowing if it was a   Union   or Confederate soldier, the Captain decided to risk his life and bring the stricken man back for medical attention. Crawling on his stomach through the gunfire, the Captain reached the stricken soldier and began pulling him toward his encampment.

When the Captain finally reached his own lines, he discovered it was actually a Confederate soldier, but the soldier was dead..

The Captain lit a lantern and suddenly caught his breath and went numb with shock.  In the dim light, he saw the face of the soldier.. It was his own son. The boy had been studying music in the South when the war broke out.  Without telling his father, the boy enlisted in the Confederate Army.

The following morning, heartbroken, the father asked permission of his superiors to give his son a full military burial, despite his enemy status. His request was only partially granted.

The Captain had asked if he could have a group of Army band members play a funeral dirge for his son at the funeral.

The request was turned down since the soldier was a Confederate.

But, out of respect for the father, they did say they could give him only one musician.

The Captain chose a bugler.  He asked the bugler to play a series of musical notes he had found on a piece of paper in the pocket of the dead youth's uniform.

This wish was granted.

The haunting melody, we now know as 'The Last Post' used at military funerals was born.

The words are: 

Day is done. 
Gone the sun.. 
From the lakes  
From the hills.   
From the sky. 
All is well.   
Safely rest.   
God is nigh. 

Fading light. 
Dims the sight. 
And a star. 
Gems the sky. 
Gleaming bright.   
From afar..   
Drawing nigh.   
Falls the night.. 

Thanks and praise.   
For our days.   
Neath the sun   
Neath the stars.   
Neath the sky 
As we go. 
This we know.   
God is nigh

I too have felt the chills while listening to 'The Last Post'
But I have never seen all the words to the song until now.
I didn't even know there was more than one verse . 
I also never knew the story behind the song and I didn't know if
You had either so I thought I'd pass it along.

I now have an even deeper respect for the song than I did before.

Remember Those Lost and Harmed While Serving Their Country.

Also Remember Those Who Have Served And Returned;
And for those presently serving in the Armed Forces.

Please send this on.

For our soldiers...please don't break it .


आढ़तियों का आंदोलन और किसान उत्पादन का अर्थशास्र:- भारत

INR 30,000 करोड़ हर साल पंजाब से भारत से पश्चिमी देशों में भेजा जाता है।
 सच्चा पुत्र धन को अपनी मातृभूमि में लाता है, गद्दारी उसे निकाल लेती है।

 पुरानी कहावत है, शायद गॉडफादर फिल्म में, "विश्वासघात के बारे में सबसे दुखद बात यह है कि यह दुश्मन से नहीं आता है"।

 * कृषि की मान्यता -: - *

 * कल रिपब्लिक टीवी पर एक बहस में, भाजपा के संजू वर्मा ने कहा कि एमएसपी आवंटन का 70% सिर्फ दो राज्यों में जाता है *: - पंजाब और हरियाणा। *

 * इसके लिए, प्रो। डी। के। गिरि ने प्रतिवाद किया, 'लेकिन वे देश के खाद्य उत्पादन में 70% का योगदान देते हैं। *

 *क्या वे..???*

 *चलो पता करते हैं:*

 * वर्ष 2017-18 के आंकड़े निम्नानुसार हैं: *

 * व्हाईट: - *

 * सबसे बड़ा योगदानकर्ता यू.पी.  (31.98%) *
 * (पंजाब # 2 (17.9%), * द्वारा फ़ॉलो किया गया)
 *एमपी।  # ३ (१५.९ ६%), हरियाणा # ४ (११.१ ९%)। * * राजस्थान, बिहार और गुजरात # ५, ६, और # पर एक साथ २१.० ९% के हिसाब से चलते हैं। *
 * इससे पता चलता है कि पंजाब और हरियाणा ने 2017-18 में कुल गेहूं उत्पादन में 28.28% का योगदान दिया। *

 *चावल के धान)*

 * पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ा योगदानकर्ता 13.26% इसी अवधि ('17 -18) के साथ था। *
 * पंजाब द्वारा पीछा # 2 (11.85%), यू.पी.  # 3 (11.75%), आंध्र # 4 (7.24%), बिहार # 5 (7.01%), तमिलनाडु # 6 (6.45%), उड़ीसा # 7 (5.78%), तेलंगाना # 8 (5.54%), असम (  9 (4.57%), Ch'garh # 10 (4.19%), हरियाणा # 11 (4.0%), MP  # 12 (3.65%)।  अन्य 14.71%

 * पंजाब (@ # 2) और हरियाणा (@ # 11) ने मिलकर देश के कुल चावल उत्पादन का 15.85% योगदान दिया। *

 * तो, 70% मिथक उड़ गया। "
 * और यह न केवल असंगठित प्राध्यापक है, बल्कि हम में से अधिकांश लोगों के बीच सामान्य धारणा यह है कि पंजाब और हरियाणा एक विशेष सहायक आपूर्तिकर्ता हैं। *
 * बहस के दौरान आंध्र के एक प्रसिद्ध किसान नेता श्री चेंगल रेड्डी ने कहा कि चावल और गेहूं उत्पादक किसान ही हैं। * *
 * "नोट करने के लिए एक बिंदु"। *
 * फल और सब्जी उत्पादक, मिर्च और मसालों के उत्पादक, दालें, तेल के बीज, कंद, रबड़, कपास, गन्ना और अन्य हैं। *
 * वे किसान भी हैं!  इसलिए, पंजाब के किसान देश को फिर से पकड़ नहीं सकते, यह संदेश है कि चेंगल रेड्डी, साथ ही ऊपर दिए गए आंकड़े, * वितरित करते हैं।

 *अस्वीकरण-:*
 * मैं पहले एक पंजाबी BUT एक भारतीय हूं। "

 * तो इस किसान आंदोलन की आर्थिक स्थिति पर देखें: - *

 1. "पंजाबी किसान एमएसपी प्रोक्योरमेंट पर पूरे देश के बजट का लगभग 55% भाग लेते हैं। * * देश का खाद्य अनाज की खरीद का बजट एक असीमित राशि नहीं है, सरकार पीडीएस और बफर स्टॉक की उतनी ही खरीद कर सकती है जितनी उसे चाहिए।  *
 * इसलिए पंजाब अनाज खरीद के लिए पूरे देश के बजट का 55% भाग निकाल रहा है, जबकि देश की कुल खेती का केवल 6% पंजाब में रहता है। *
 * इस प्रकार सरकार द्वारा अन्य सभी राज्यों से एकत्र किए गए आयकर और जीएसटी को प्रभावी रूप से केवल पंजाब के किसानों द्वारा लिया जा रहा है। *
 * उन राज्यों के किसानों के बारे में क्या ।???* * केंद्र सरकार को बाकी राज्यों में रहने वाले 94% किसानों से खरीद क्यों नहीं करनी चाहिए। *
 * यदि कुछ 'अन्नदाता' / 'आई एम विथ फार्मर' यह कहना चाहता है कि सरकार को अन्य राज्यों से भी एमएसपी की खरीद बढ़ानी चाहिए, तो वह एक इडियट है क्योंकि सरकार पीडीएस, सरकार, के लिए आवश्यक बजट के अनुसार सीमित मात्रा में ही खरीद सकती है।  भारत में उत्पादित प्रत्येक अनाज की खरीद की उम्मीद नहीं की जा सकती है। *

 2. "फैशनेबल मैं किसान के साथ हूं" / 'अन्नदता' प्रकार भी सरकार द्वारा एमएसपी के लिए किसान की खरीद के लिए असीमित खरीद करने के लिए आयकर और जीएसटी बढ़ाने के क्रम में आंदोलन शुरू करने के लिए आगे आना चाहिए, क्योंकि आप हैं  मंडियों में निजी क्षेत्र के प्रवेश के खिलाफ ... *
 * तो पंजाब के इन सभी उद्योग संघों जो बहुत ही फैशनेबल ढंग से कहते हैं कि मैं किसान के साथ हूं, इन फैशन स्टेटमेंट को निधि देने के लिए कर में भारी वृद्धि का प्रस्ताव देना चाहिए। *

 4. "पंजाबी किसान को गेहूं और धान चक्र के आदी होने के परिणामस्वरूप, ये वस्तुएं ग्लूट में हैं ..... *
 * करदाताओं के करोड़ों रुपए का पैसा हर साल बर्बाद हो जाता है क्योंकि पंजाबी किसानों से अत्यधिक खरीद के बाद जो कि सड़ने और चूहों द्वारा खाए जाने के लिए छोड़ दिया जाता है। *
 * इसलिए नहीं कि हमारे पास गोदाम नहीं हैं, बल्कि इसलिए कि पंजाबी किसान गेहूं और धान के आदी हैं और यह अधिक से अधिक उत्पादन करता है क्योंकि वह जानता है कि वह सरकार को एमएसपी खरीदने के लिए मजबूर करेगा। *

 4. * इस अत्यधिक उत्पादन को करने में, पंजाबी किसान न केवल खरीद के लिए पूरे देश का 55% (लगभग 75000 करोड़ रुपये) नकद निकाल रहा है, बल्कि रुपये के साथ राज्य सरकार पर भी बोझ डाल रहा है।  10000 बिजली सब्सिडी के करोड़ और इसके शीर्ष पर उर्वरक सब्सिडी लगभग।  रु।  40000 करोड़ और राज्य के शीर्ष पर 90% भू जल है। *
 * यही 'अन्नदाता' हमसे छीन रहा है। "
 * इस बारे में स्पष्ट रहें। *

 5. "पंजाबी किसान को इतनी बड़ी नकदी इनाम ने उसे पूरे देश में सबसे आलसी किसान बना दिया है। * * पंजाबी किसान फल और सब्जी की खेती में क्यों नहीं जाता है ..... क्योंकि उसे खेत पर डेली हार्डवर्क की आवश्यकता होती है, जहां  चूंकि गेहूं और धान की बुवाई के समय एक बार प्रयास करने की आवश्यकता होती है और फिर कीटनाशक / यूरिया की बौछार के लिए कुछ दौरे और इसे पूरा करना पड़ता है ..... अपने जिला परिषद / मंडी समिति की राजनीति 3 महीने के लिए मुफ्त में बैठे और आपकी फसल होगी  कप्तान के गन पॉइंट में CASH में परिवर्तित होने के लिए 4 महीने के बाद तैयार। "
 * मैं कप्तान के गनपॉइंट को बाद में समझाऊंगा। *

 6. "क्योंकि आपने राज्य के संसाधनों (10000 करोड़ रुपये की बिजली सब्सिडी) को भी छीन लिया है, राज्य और उद्योग की अन्य आबादी को रु।  9-रु।  10 प्रति यूनिट जो पूरे देश में सबसे महंगा है। ”
 * परिणामस्वरूप, उद्योग फलने-फूलने और बड़े पैमाने पर या राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने में असमर्थ है। *
 * इस राज्य के कितने उद्योग राष्ट्रीय खिलाड़ी बन गए हैं?

 7. "और इसलिए भी क्योंकि पंजाबी किसान पूरे देश के खाद्य खरीद बजट का 55% से कम करने में सक्षम है, पंजाब में भूमि की कीमतें देश में सबसे अधिक हैं। *
 * यह फिर से नए उद्योग की स्थापना करता है क्योंकि भूमि बहुत महंगी है। *

 8. "नो वंडर कि खालिस्तानी सिम्पेथाइज़र जस्टिन ट्रूडो को पंजाबी किसान विरोध के बारे में भौंकना होगा क्योंकि भारत का करदाता पैसा कनाडा की अर्थव्यवस्था वाया पंजाब रूट में बह रहा है। *
 * ऊपर सूचीबद्ध के रूप में भारी सब्सिडी को भुनाए जाने के बाद, पंजाबी किसान अपनी भूमि को घेरता है और पैसे को कनाडा ले जाता है। *
 * हर साल लाखो लोग पंजाब की यात्रा करते हैं।  रु।  विदेशों में आव्रजन के माध्यम से 30000 करोड़। *
 * जस्टिन डॉग ट्रूडो इन पंजाबियों से पैसा कमा रहे हैं, उन्हें उनके लिए भौंकना होगा। "

 9. "इस नकली किसान आंदोलन के बारे में ये सभी एनआरआई पंजाबी गीत और नृत्य बना रहे हैं।
 * कनाडा में एक भी पैसा योगदान किए बिना कनाडा में अपनी आरामदायक जीवन शैली से दूर रहना जहां से यह एमएसपी खरीद या मुफ्त बिजली होती है, और फिर अपने सोशल मीडिया हैंडल पर भारत के बारे में बकवास बात करते हैं। *

 10. "अंत में, मैं कैप्टन गनपॉइंट के लिए आता हूं .... जो वास्तव में एक अद्भुत विशेषता है .... *
 * तो मुद्दा यह है कि कैप्टन के अनुसार, अगर केंद्र सरकार किसानों की ILLEGAL मांगों के आगे नहीं झुकती है, तो पंजाबी सिख खालिस्तान विचारधारा की ओर रुख करेंगे। *
 * बंदूक तुम्हें इशारा करती है, समझ गया।

 11. "संक्षेप में, यह नकली किसान आंदोलन पिछले 40 वर्षों में स्थापित किए गए अपने निशुल्क लंच की रक्षा करने वाले लॉर्ड्स के बारे में है।"

 * मैं कम से कम 5 किसानों के साथ छोटे किसानों के लिए एक गारंटीकृत एमएसपी सौदा का समर्थन करता हूं।  बाकी सभी एक मुक्त सुरक्षा कार्यक्रम है, जो अन्य स्थानों के चुनावों के राजनीतिक समर्थन के साथ आता है। *
 * अगर यह पूरी तरह से 'ANNADATA' के बारे में है, जो कि PUNJABI किसानों को 55% साझा करने का प्रस्ताव देता है, तो वे अन्य राज्य के किसानों के MSP PROCUREMENTIN FAVOR पर राष्ट्रीय बॉडगेज से मिल रहे हैं। *

 * * ANNADATA ’TAGLINE ..... का प्रचार करें। *
 * मैं पैसे, हनी के बारे में सब कुछ !!

Engilsh:-

INR 30,000 crore every year is siphoned off from Punjab out of India to western countries.
The true son brings wealth into his motherland, the betrayer takes it out.

The old saying goes, probably in the Godfather movie, " the saddest thing about betrayal is that it doesn't come from the enemy".

*FARMER'S AGITATION-:-*

*In a debate on Republic TV yesterday, Sanju Varma of BJP said 70% of the MSP allocation goes to just two states *:-- Punjab and Haryana.* 

*To this, Prof. D K Giri retorted, 'but they also contribute 70% of the country's food production'.*

*DO THEY..???*

*Let's find out:*

*Statistics for the year 2017-18 show as follows:*

*WHEAT:-*

*The largest contributor was U.P. (31.98%).*
*(Followed by Punjab #2 (17.9%),*
*M.P. #3 (15.96%), Haryana #4 (11.19%).* *Rajasthan, Bihar and Gujarat follow at #5, 6 and 7 together accounting for 21.09%.*
*This shows that Punjab and Haryana together contributed  28.28% of the total wheat production in 2017-18.*

*RICE (PADDY)*

*The largest contributor was West Bengal, with 13.26% for the same period ('17-18).*
*Followed by Punjab #2 (11.85%), U.P. #3 (11.75%), Andhra #4 (7.24%), Bihar #5 (7.01%), Tamil Nadu #6 (6.45%), Orissa #7 (5.78%), Telengana #8 (5.54%), Assam #9 (4.57%), Ch'garh #10 (4.19%), Haryana #11 (4.0%), M.P. #12 (3.65%). Others 14.71%.*

*Punjab (@#2) and Haryana (@#11) together contributed 15.85% of the country's total rice production.*

*So, the 70% myth gets blown away.*
*And it is not only the uninformed professor, but the general impression among most of us is that Punjab and Haryana are our exclusive food suppliers.*
*During the debate, Shri, Chengal Reddy, a renowned farmer's leader from Andhra said that rice and wheat producers are not the only farmers.!* 
*"A POINT TO NOTE".*
*There are fruits and vegetable producers,  producers of chilli and spices, pulses, oil seeds, tubers, rubber, cotton, sugarcane and others.*
*They are farmers, too! Therefore, Punjab farmers cannot hold the country to ransom is the message that Chengal Reddy, as well as the statistics given above, delivers.*

*DISCLAIMER-:*
*I am a Punjabi BUT an Indian first.*

*SO LETS LOOK AT THE ECONOMICS OF THIS FAKE FARMER AGITATION:--*

1. *Punjabi Farmers take away approx, 55% of the Whole Country's Budget on MSP Procurement.* *Country's budget on Food Grain procurement is not an UNLIMITED amount, the Government can procure only as much as it needs for PDS and buffer stock.*
*So Punjab is cashing away 55% of the entire country's budget meant for grain procurement, while only 6% of the country's total farming population lives in Punjab.*
*Thus Income Tax & GST collected by Government from all other States is effectively being taken away by Punjab Farmers only.*
*What about Farmers of those states.???* *Why should the central government not purchase from rest of the 94% Farmers living in the other states.*
*If some 'Annadata' / 'I m with Farmer' wants to say that Govt should increase MSP procurement from other states also, then he is an Idiot because Govt can procure only a limited quantity within its budget as required for PDS, Govt, cannot be expected to procure each and every grain produced in India.*

2. *The fashionable 'I am with farmer'/ 'Annadata' types must also come forward to launch agitation asking Govt, to hugely increase Income Taxes and GST in order to raise money for making UNLIMITED purchases of farmer produce at MSP because you are against the entry of Private Sector into Mandis...*
*So all these Industry Associations of Punjab who very fashionably say I am with Farmer must offer to pay huge increase in Taxes also to fund these fashion statements.*

3. *As a result of Punjabi Farmer getting addicted to Wheat & Paddy cycle, these commodities are in glut.....*
*Lacs of Crores of TaxPayer money goes waste every year because of excessive procurement from Punjabi Farmers which is then left to rot and to be eaten by rats.*
*Not because we don't have godowns, but because Punjabi farmer is addicted to Wheat and Paddy and it producing more and more because he knows that he will force govt to purchase at MSP.*

4. *In doing this excessive production, Punjabi farmer is not only cashing away 55% of entire country's money (about Rs. 75000 Crore) for procurement but also burdening the State Govt with Rs. 10000 Crore of Electricity Subsidy and on top of it the Fertilizer Subsidy of approx. Rs. 40000 Crore AND ON TOP OF IT 90% OF THE STATES GROUND WATER.*
*This is what the 'Annadata' is taking away from us.*
*Be clear about this.*

5. *Such huge cash bounty to Punjabi Farmer has made him most lazy farmer out of the entire country.* *Why does not Punjabi farmer move to Fruits & Vegetable farming.....because it requires Daily Hardwork on the farm, where as Wheat & Paddy require a one time effort at time of sowing and then a couple of visits for Pesticide/ Urea shower and thats it.....do your Zila Parishad/ Mandi Committee politics sitting free for 3 months and your crop will be ready after 4 months for converting into CASH at Captain's Gunpoint.*
*I will explain the Captain's Gunpoint later.*

6. *Also because you have taken away the State resources also (electricity subsidy of Rs. 10000 Crore), the other population of the State and Industry have to pay Rs. 9-Rs. 10 per Unit which is most expensive in the whole country.* 
*As a result, the Industry is unable to flourish and become Large Scale or Nationally competitive.* 
*How many Industries from this State have become National Players.???*

7. *And also because Punjabi Farmer is able to CASH OFF 55% of the whole country's food procurement budget, the Land Prices in Punjab are the highest in the country.*
*This again makes setting up of new Industry UNVIABLE as land is too expensive.*

8. *No Wonder that Khalistani Sympathizer Justin Trudeau has to bark about the Punjabi Farmer protest because INDIA's taxpayer money is flowing into Canadian Economy Via Punjab Route.*
*After Cashing Off the huge subsidies as listed above, the Punjabi Farmer encashes his land and moves the money to Canada.*
*Every year lacs of Punjabis take away approx. Rs. 30000 Crore through Immigration to foreign countries.*
*Justin Dog Trudeau is making money out of these Punjabis, he has to bark for them.*

9. *All these NRI Punjabis making song and dance about this Fake Farmer Agitation are all WOKES.*
*Living off their comfortable lifestyles in Canada without contributing a single penny to TAXES from which this MSP Purchase or Free Electricity happens, and then talking bullshit about India on their Social Media handles.*

10. *Lastly, I come to Captains Gunpoint....which is really a wonderful feature....*
*So the point is that as per Captain, if the Central Government does not succumb to the ILLEGAL demands of the farmers, then the Punjabi Sikhs will turn to Khalistan ideology.*
*Thats the gun pointing at you, got it.???*

11. *In summary, this Fake Farmer Agitation is all about the LARGE LANDHOLDERS protecting their FREE LUNCH set up over the last 40 years.*

*I SUPPORT A GUARANTEED MSP DEAL FOR SMALL FARMERS WITH LANDHOLDING UPTO 5 ACRE. REST ALL IS A FREE LUNCH PROTECTION PROGRAMME COMING WITH POLITICAL SUPPORT OF THOSE WHO OTHERWISE LOOSE ELECTIONS.*
*IF IT REALLY WAS ABOUT 'ANNADATA' THEN PUNJABI FARMERS SHOULD OFFER TO DECREASE THE 55% SHARE THEY ARE CAPTURING FROM THE NATIONAL BUDGET ON MSP PROCUREMENTIN FAVOUR OF OTHER STATES' FARMERS.*

*SPARE THE 'ANNADATA' TAGLINE.....*
*ITS ALL ABOUT MONEY, HONEY!!*

सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड।इंदिरा गाँधी की उपज? क्या जानते हो?

आपने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का नाम तो सुना होगा, 

ट्रिपल तलाक इत्यादि के मौके पर इसका नाम कई बार टीवी पर आया, मीडिया में आया।

असल में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक NGO है जिसका मुख्य दफ्तर दिल्ली में है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आज हमारी संसद और यहाँ तक की सुप्रीम कोर्ट को भी कई मौकों पर धमकी देता है।

भारत के खिलाफ जंग की धमकी, जिहाद की धमकी,हिंसा की धमकी इत्यादि और अब जो हम आपको इस संस्था के बारे में बताने जा रहे है, कदाचित आपको ये जानकारियां कहीं 
मिले ही न।

ये संगठन कब बना किसने बनाया।

वैसे आपके मन में आता होगा कि चूँकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है तो इसे मुसलमानो ने ही बनाया होगा।

पर अब जानिए इसकी सच्चाई

1971 आते आते इंदिरा गाँधी की लोकप्रियता बहुत घटने लगी थी, 1975 में इंदिरा गाँधी ने आपातकाल भी लगाया था।

इंदिरा गाँधी को ये देश जैसे विरासत में जवाहर लाल नेहरू से मिला था।

इंदिरा इसे अपनी जागीर समझती थी, घटती लोकप्रियता,और विपक्ष की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान होकर,इंदिरा गाँधी ने सेक्युलर भारत में मुसलमानो के तुष्टिकरण के लिए स्वयं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की 1971 में स्थापना की।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए इंदिरा गाँधी ने विशेष नियम भी बनाया।

इस संस्था का आज तक कभी ऑडिट नहीं हुआ है, 
जबकि अन्य NGO का होता है पर इसे विशेष छूट मिली हुई है।

ये अरब के देशों से कितना पैसा पाती है, उस पैसे का क्या करती है, किसीको कुछ नहीं पता 

91% मुस्लिम महिलाएं ट्रिपल तलाक के खिलाफ है फिर भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट को हिंसा तक की धमकी देता है।

आपको जानकरआश्चर्य होगा की 95% मुसलमान महिलाओ को तो ये भी नहीं पता की मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड असल 
में है क्या

इस NGO में केवल कट्टरपंथी मुस्लिम 
ही है।

नरेंद्र मोदी के सर पर फतवा देने वाला इमाम बरकाती भी इस NGO का सदस्य है।

जिहादी किस्म के ही लोग इस संस्था में हैं।

इस संस्था में 1 भी महिला नहीं है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानो का नहीं बल्कि इंदिरा गाँधी का बनाया हुआ है।

वैसे आपको एक जानकारी दे दें कि 1930 में मुस्लिम लीग को पाकिस्तान बनाने का आईडिया मुसलमानो ने नहीं बल्कि मोतीलाल नेहरू ने दिया था।

इस परिवार ने भारत का इतना नाश किया है कि आज भारत की 99% समस्या इनके कारण ही है।...

  स्तोत्र विकिपीडिया

रविवार, 14 फ़रवरी 2021

खिलाफत आंदोलन और आरएसएस। इतिहास के पन्नो से

🙏*आखिर RSS की स्थापना क्यों हुई ?*
इस प्रश्न का उत्तर पूरा पढ़िए......

*संसद में मोदी जी ने हामिद मियां पर तंज कसते हुए कहा था कि आपके परिवार के लोगों ने खिलाफत आंदोलन में भाग लिया था , जिस पर हामिद मियां खींसे निपोरते रह गए !*

तो क्या था यह खिलाफत आंदोलन? जिसे सुनते ही हामिद मियां और कांग्रेस असहज हो उठी? जानने के लिए पूरी पोस्ट को अंत तक अवश्य पढ़ें।

*खिलाफत जानने से पहले आइए पहले जरा खलीफा को जान लें, खलीफा एक अरबी शब्द है जिसे अंग्रेज़ी में Caliph (खलीफ) या अरबी भाषा मे Khalifah (खलीफा) कहा जाता है, तो कौन होता है खलीफा? 

खलीफा मुसलमानों का वह धार्मिक शासक (सुल्तान) होता है जिसे मुसलमान मुहम्मद साहब का वारिस या successor मानते हैं, खलीफा का काम होता है युद्ध कर के पूरे विश्व पर इस्लाम का निज़ाम कायम करना (जो कश्मीर में बुरहान वानी करना चाहता था), यानी इस्लाम की ऐसी हुकूमत कायम करना जिसमे इस्लामिक यानी शरीया कानून चले और जिसमे इस्लाम के अलावा किसी और धर्म की इजाज़त नही होती है, जितने हिस्से या राज्य पर खलीफा राज करता है उसे Caliphate यानी अरबी भाषा में Khilafa (खिलाफा) कहते हैं, खलीफा यानी *इस्लामिक सुल्तान* और खिलाफा यानी इस्लामिक राज्य ।

1919-22 के दौरान Turkey यानी तुर्की में ओटोमन वंश के आखिरी सुन्नी खलीफा अब्दुल हमीद-2 का खिलाफा यानी शासन चल रहा था जो कि जल्दी ही धराशाई होने वाला था, इस आखिरी इस्लामिक खिलाफा (शासन) को बचाने के लिए अब्दुल हमीद-2 ने जिहाद का आवाहन किया ताकि विश्व के मुसलमान एक हो कर इस आखिरी खिलाफा यानी इस्लामिक शासन को बचाने आगे आएं,

*पूरे विश्व मे इसकी कोई प्रतिक्रिया नही हुई सिवाए भारत के, भारत के अलावा एशिया का कोई भी दूसरा देश इस मुहिम का हिस्सा नही बना, लेकिन भारत के कुछ मुट्ठी भर मुसलमान इस मुहिम से जुड़ गए और हजारों किलोमीटर दूर , सात समंदर पार तुर्की के खिलाफा यानी इस्लामिक शासन को बचाने और अंग्रेज़ों पर दबाव बनाने निकल पड़े, जबकि इस समय भारत खुद गुलाम था और अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था, लेकिन अंतः 1922 में तुर्की से सुलतान के इस्लामिक शासन को उखाड़ फेंका गया और वहाँ सेक्युलर लोकतंत्र राज्य की स्थापना हुई और कट्टर मुसलमानों का पूरे विश्व पर राज करने का सपना टूट गया, इसी सपने को संजोए आजकल ISIS काम कर रहा है ।*

भारत के चंद मुसलमानों ने अंग्रेज़ी हुकूमत पर दबाव बनाने के लिए बाकायदा एक आंदोलन खड़ा किया , जिसका नाम था खिलाफा आंदोलन (Caliphate movement) अब क्योंकि अंग्रेज़ी में लिखे जाने पर इसका हिन्दी उच्चारण खलिफत होता है (अरबी में caliphate को khilafa=खिलाफा लिखते है) तो *कांग्रेस ने बड़ी ही चतुराई से इसका नाम खिलाफत आंदोलन रख दिया ताकि देश की जनता को मूर्ख बनाया जा सके और लोगों को लगे कि यह खिलाफत आंदोलन अंग्रेज़ो के खिलाफ है, जबकि इसका असल मकसद purely religious यानी पूर्णतः धार्मिक था, इसका भारत की आज़ादी या उसके आंदोलन से कोई लेना देना नही था,*

कुछ समझ मे आया? कैसे शब्दों की बाज़ीगरी से जनता को मूर्ख बनाया जा रहा था, कैसे खलिफत को खिलाफत बताया जा रहा था, (ठीक वैसे ही जैसे Feroze Khan Ghandi (घांदी) को Feroze Gandhi (फ़िरोज़ गांधी) बना दिया गया) ।

*उस समय भारत मे इतने पढ़े लिखे लोग और नेता नही थे कि गांधी नेहरू की इस चाल को समझ सकें, लेकिन इन सब के बीच कांग्रेस में एक पढ़ा लिखा व्यक्तित्व उपस्थित था , जिनका नाम था डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार था ! इन्होंने इस आंदोलन का जम कर विरोध किया , क्योंकि खिलाफा सिर्फ तुर्की तक सीमित नही रहना था, इसका उद्देश्य तो पूरे विश्व पर इस्लाम की हुकूमत कायम करना था जिसमे गज़वा-ए-हिन्द यानी भारत भी शामिल था !*
*डॉ हेगड़ेवार ने कांग्रेस के गांधी और नेहरू को बहुत समझने की कोशिश की , लेकिन वे नही माने, अंतः डॉ हेगड़ेवार ने कांग्रेस के इस खिलाफत आंदोलन का विरोध किया और कांग्रेस छोड़ दी !*

तो अब समझ मे आया मित्रों की कांग्रेसी जो कहते हैं कि RSS ने आज़ादी के आंदोलन का विरोध किया था, तो वो असल मे किस आंदोलन का विरोध था? आप डॉ हेगड़ेवार के स्थान पर होते तो क्या करते? क्या आप भारत को गज़वा-ए-हिन्द यानी इस्लामिक देश बनते देखते? या फिर डॉ साहब की भांति इसका विरोध करते?

*1919 में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ था और 1920 में डॉ हेगड़ेवार ने कांग्रेस छोड़ दी और सभी को इस आंदोलन के बारे में जागरूक किया कि इस आंदोलन का भारत की स्वतंत्रता से कोई लेना देना नही है और यह एक इस्लामिक आंदोलन है ! जिसका परिणाम यह हुआ कि यह आंदोलन बुरी तरह फ्लॉप हुआ ! और 1922 में अंतिम इस्लामिक हुकूमत धराशाई हो गयी !*
मुस्लिम नेता इस से बौखला गए और मन ही मन हिन्दुओ और संघ को अपना शत्रु मानने लगे और इसका बदला उन्होंने 1922-23 में केरल के मालाबार में हिन्दुओ पर हमला कर के लिया ! 

और असहाय अनभिज्ञ हिन्दुओ को बेरहमी से काटा गया , हिन्दू लड़कियों की इज़्ज़त लूटी गई, जबकि इस आंदोलन का भारत या उसके पड़ोसी देशों तक से कोई लेना देना नही था ।

*1923 के दंगों में गांधी ने हिन्दुओ को ही दोषी ठहराते हुए हिन्दुओ को कायर और बुजदिल कहा था, गांधी ने कहा हिन्दू अपनी कायरता के लिए मुसलमानों को दोषी ठहरा रहे हैं, अगर हिन्दू अपने जान माल की सुरक्षा नही कर सकता , तो इसमें मुसलमानों का क्या दोष?

 हिन्दुओ की औरतों की इज़्ज़त लूटी जाती है तो इसमें हिन्दू दोषी है, कहां थे उसके रिश्तेदार जब उस लड़की की इज़्ज़त लूटी जा रही थी? कुलमिला कर गांधी ने सारा दोष दंगा प्रभावित हिन्दुओ पर मढ़ दिया और कहा कि उन्हें हिन्दू होने पर शर्म आती है, जब हिन्दू कायर होगा तो मुसलमान उस पर अत्याचार करेगा ही ।*

डॉ हेगड़ेवार को अब समझ आ चुका था कि सत्ता के भूखे भेड़िये भारत की जनता की बलि देने से नही चूकेंगे, इसलिए उन्होंने हिन्दुओ की रक्षा और उनको एकजुट करने के उद्देश्य से तत्काल एक नया संगठन बनाने का काम प्रारंभ कर दिया और अंततः 1925 में संघ (RSS) की स्थापना हुई !

*आज अगर हम होली और दीवाली मानते हैं, आज अगर हम हिन्दू हैं , तो केवल उसी खिलाफत आंदोलन के विरोध और संघ की स्थापना की कारण , अन्यथा तो जाने कब का गज़वा-ए-हिन्द बन चुक होता ।*

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

हिन्दुसंस्कृति के 24000 साल पुराने सबूत

जो लोग हिन्दू संस्कृति को जानते नहीं, या सनातन संस्कृति को जानते नहीं, जिन्हें हिन्दू सभ्यता महज कोरी कल्पना लगती है, ओ लोग ये वीडियो एक बार जरूर देख ले। साइंटिफिक स्टडी 25 साल करने के बाद

1950 -2002 तक आरएसएस तिरंगा क्यो नही फहराता था?

*क्या आप जानते हैं कि RSS ने ५२ वर्षों तक भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा नही फहराया ?*

*जी हां ये सच है कि १९५० से २००२ तक RSS ने तिरंगा नहीं फहराया!*

*तो इस राष्ट्रीय ध्वज के न फहराने का सच क्या है ?* 

*आइये जानते हैं-*

*ऐसा क्या हुआ कि १९५० के बाद RSS ने तिरंगा फहराना बंद कर दिया ?* 

*स्वतंत्रता के बाद संघ की शक्ति लगातार बढ़ती जा रही थी! और संघ ने राष्ट्रीय पर्व जैसे १५ अगस्त और २६ जनवरी जोर-शोर से मनाने आरंभ कर दिए थे!* 

*आम जनता ने भी इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना आरंभ कर दिया! इससे नेहरू को अपना सिंहासन डोलता नज़र आया, और बड़ी ही चालाकी से उन्होंने भारत के संविधान में एक अध्याय जुड़वा दिया- "National Flag Code"!*

*नेशनल फ्लैग कोड को संविधान की अन्य धाराओं के साथ १९५० में लागू कर दिया गया! और इसी के साथ "तिरंगा फहराना" अपराध की श्रेणी में आ गया!* 

*इस नियम के लागू होने के बाद राष्ट्रीय ध्वज केवल सरकारी भवनों पर, कुछ विशेष लोगों द्वारा ही फहराया जा सकता था! और यदि कोई व्यक्ति इसका उल्लंघन करता है, तो उसे सश्रम कारावास की सज़ा का प्रावधान था!*

*अर्थात, नियम के अनुसार, राष्ट्रीय ध्वज अब संघ की शाखाओं में नहीं फहराया जा सकता था, क्यों कि वे सरकारी भवन न होकर, निजी स्थान थे! संघ ने नियम का पालन किया, और तिरंगा फहराना बंद कर दिया!*

*यह नियम नेहरू के डर के कारण बनाया गया था!  वरना इसका कोई औचित्य नहीं था! क्यों कि स्वतंत्रता की लड़ाई में तो प्रत्येक आम आदमी तिरंगा हाथ में लेकर सड़कों पर होता था!*

*परन्तु अचानक उसी आम आदमी और समस्त भारत की जनता से उनके देश के  को फहराने का अधिकार छीन लिया गया! और जिस तिरंगे के लिए लाखों नागरिक बलिदान हो गए, वह तिरंगा फहराने का अधिकार अब केवल नेहरू-गांधी परिवार की संपत्ति बन चुका था!*

*कांग्रेस के सांसद (Member of Parliament) नवीन जिंदल ने अपनी फैक्ट्री 'जिंदल विजयनगर स्टील्स' में तिरंगा फहराया, तो उनके विरुद्ध FIR दर्ज करने के बाद, उन्हें गिरफ्तार किया गया!*

*इसके बाद उन्होंने न्यायालयों में लंबी लड़ाई लड़ी, और २००२ में उच्च न्यायालय ने यह आदेश घोषित किया, कि भारत का ध्वज प्रत्येक नागरिक फहरा सकता है! अपने निजी भवन पर भी फहरा सकता है! बशर्ते वे राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान का ध्यान रखें, और तिरंगे को Flag Code के अनुसार फहराए!*

*इसके बाद से आज तक निरंतर संघ की हर शाखा में तिरंगा फहराया जा रहा है!*

*है कोई कांग्रेसी, वामपंथी या आपिया जो इन तथ्यों को झुठला सके ?* 

*आज वही कांग्रेसी प्रश्न उठा रहे हैं! जो राष्ट्रगान के समय कुर्सी से उठते भी नहीं, बैठे रहते हैं, वे प्रश्न उठाते हैं!*

*आपको गूगल पर कई कांग्रेसी मुल्लों और वामपंथियों के ब्लॉग मिल जाएंगे, जिसमें तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया होगा। ओर आपसे सवाल पूछा गया होगा? के आरएसएस तिरंगा क्यो नही फहराते?!*

*परन्तु हर जगह एक बात जरूर मिलेगी, कि १९५० से पहले, और २००२ के बाद, संघ तिरंगा फहराता आ रहा है!*

*तो आज आपको पता चला कि तिरंगे का असली दोषी कौन था!*

*प्रश्न यह है कि आखिर भारतीयों से उनके अपने ही देश का ध्वज क्यो छीन लिया गया ?* 

*इस बात को आगे बढ़ाएं, सब तक पहुंचायें!*

*इस पोस्ट को निर्भीक होकर कॉपी, पेस्ट, शेयर कीजिये!*

*वंदे मातरम्!*

*भारत माता की जय!*
Making india

2030 के बाद का भारत

*2030 के बाद का भारत, मोदी सरकार की आज की प्लानिंग*


 कुछ समय के बाद, कार की मरम्मत कार्यशालाओं को बंद कर दिया जाएगा।

 एक पेट्रोल या डीजल कार में लगभग 20,000 छोटे हिस्से होते हैं जबकि एक इलेक्ट्रिक वाहन में 50 से कम हिस्से होते हैं।
 भविष्य में, इलेक्ट्रिक कारों को जीवन के लिए गारंटी दी जाएगी।  इसके अलावा, बैटरी से चलने वाले वाहनों को इलेक्ट्रिक मोटर को बदलने में केवल कुछ मिनट लगेंगे

  बिजली की मोटरों को टूटने के बाद नियमित वर्कशॉप में रिपेयर नहीं किया जाएगा, बल्कि उन्हें रोबोटिक वर्कशॉप में रिपेयर किया जाएगा।

 यदि आपका इलेक्ट्रिक वाहन टूट जाता है, तो एक दीपक लगातार चालू रहेगा।  वे आपकी कार को वर्कशॉप में ले जाएंगे और आपकी चाय पीने के बाद, मरम्मत की गई इलेक्ट्रिक कार बाहर आ जाएगी !!!

 पेट्रोल पंप नहीं होंगे।

 देश के हर रास्ते  के चौक पर बैटरी चार्ज करने के लिए दुकानें होंगी।  इसकी शुरुआत यूरोप के कुछ देशों में हुई है।

 स्मार्ट निर्माताओं, जैसे होंडा, टोयोटा, सैमसंग, ने इलेक्ट्रिक कार बनाने में अरबों डॉलर का निवेश किया है।

कोयला खदानें पूरी तरह से बंद हो जाएंगी।  पेट्रोल कंपनियां बंद करेंगी  साथ ही, भूमिगत तेल निकासी को रोक दिया जाएगा।  इसका मतलब है कि मध्य पूर्वखाड़ी के देश खतरे में है।  अरबों को एक बार फिर सिर्फ खजूर खाना होगा।

  घर में स्थापित सौर ऊर्जा से चलने वाली बिजली से बहुत सी बिजली प्राप्त की जाएगी।  इसे बिजली कंपनी को संग्रहीत और बेचा जा सकता है।  उस बिजली का उपयोग उच्च बिजली कंपनियां कर सकती हैं।  साथ ही, आपको बिजली का बिल भी नहीं मिलेगा।

 निजी कारें केवल संग्रहालय में दिखाई देंगी।  तेजी से नष्ट होने वाला भविष्य तेजी से आगे बढ़ रहा है।

 वर्ष २००० में, ऐसा नहीं लगता था कि पांच साल बाद, कोई भी फोटो रोल पर फोटो नहीं लेगा।  अब, बीस साल बाद, केवल स्मार्ट फोन पर तस्वीरें ली जा रही हैं।  केवल विशेषज्ञों ने एक बड़ा कैमरा पास में रखा।

  डिजिटल कैमरा का आविष्कार 1975 में हुआ था।  उस समय इसका रेजोल्यूशन केवल दस हजार पिक्सल था।  यह अब 100 मेगापिक्सल है।  और भविष्य की सभी प्रौद्योगिकी समान उड़ानें लेने जा रही हैं।

  अब से, कृत्रिम बुद्धि अधिक से अधिक तेजी से सुधरेगी।  यह चिकित्सा उपकरणों को समझदार और निदान करने में आसान बना देगा।  इलेक्ट्रिक कारें अपने आप चलेंगी।  ड्राइवर की आवश्यकता नहीं है।  सारी सीख कंप्यूटर पर होगी।  कृषि विज्ञान में 3 डी प्रिंटिंग और भारी प्रगति होगी।

 पुराने ज़माने के उपन्यास "फ्यूचर शॉक" को भूल जाओ।  चौथी औद्योगिक क्रांति आ रही है।  इसमें क्या होने वाला है?

 आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन मानव उद्योग, 3 डी प्रिंटिंग, सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रिक प्लेन, लंबी दूरी की बसों के बजाय इलेक्ट्रिक ड्रोन, सभी के लिए मुफ्त बिजली !!  मुफ्त बिजली प्लास्टिक को नष्ट कर सकती है, शायद प्लास्टिक को बदलने की तकनीक भी!  और क्या  बस कल्पना करते रहो !!

  2040 तक, इलेक्ट्रिक वाहन आम हो जाएंगे।  इसके माध्यम से यात्रा मुफ्त और सस्ती होगी।  इसलिए निजी वाहन नहीं होंगे।  तो कोई प्रदूषण नहीं।  वाहनों के लिए पार्किंग स्थल भी नहीं होगा।

  चूंकि सभी वाहन इलेक्ट्रिक हैं, इसलिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण साफ रहेगा, जहां प्रदूषण नहीं होगा।  स्वच्छ वायु होगी, स्वच्छ जल होगा।  चूंकि बिजली मुफ्त है, इसलिए प्लास्टिक कचरा नहीं होगा और इसे जलाया जाएगा।  क्योंकि इसमें कुछ खर्च नहीं होगा।  शारीरिक फिटनेस के लिए केवल साइकिल उपलब्ध होगी।  ऊंची इमारत में 24 घंटे लिफ्ट होगी।

 ऊर्जा के लिए दो स्रोत होंगे। एक वह सौर ऊर्जा है जो कभी खत्म नहीं होगी। सौर ऊर्जा पर पैनल सस्ता और अधिक शक्तिशाली हो जाएगा क्योंकि इसमें लगातार सुधार हो रहा है।  इसके अलावा, जैसे-जैसे बैटरी में सुधार होता जाता है, वैसे-वैसे उनमें संग्रहीत बिजली की मात्रा बढ़ती जाएगी, जो परिवार की किसी भी ज़रूरत से ज़्यादा होती है।

 एक अन्य स्रोत है: रिएक्टरों में प्रयुक्त परमाणु ईंधन।  अब नए शोध से बिजली पैदा करना संभव होगा।  यह बिजली सभी को एक और * पांच साल * में मिलेगी।  उस पर बनने वाली बैटरी लाइफ होगी ---- २ .... हजार साल .... हशश !!

 स्वास्थ्य - मोबाइल फोन की बैटरी जीवन भर चलेगी।  यह अधिक सेंसर के साथ भी आएगा, जो आपको अपनी शारीरिक फिटनेस के बारे में पूरी जानकारी देगा।  उसके आधार पर, हम एक चिकित्सा विशेषज्ञ से परामर्श कर सकते हैं।
 *एक नई दुनिया में आपका स्वागत है।*

English:-
* India after 2030, Modi government's planning today *


  After some time, the car repair workshops will be closed.

  A petrol or diesel car has around 20,000 small parts while an electric vehicle has less than 50 parts.
  In the future, electric cars will be guaranteed for life.  In addition, battery-powered vehicles will only take a few minutes to replace the electric motor

   Electric motors will not be repaired in regular workshops after breakdown, rather they will be repaired in robotic workshops.

  If your electric vehicle breaks down, a lamp will be on continuously.  They will take your car to the workshop and after drinking your tea, the repaired electric car will come out !!!

  There will be no petrol pumps.

  There will be shops for charging batteries at all the sidewalks of the country.  It has originated in some countries of Europe.

  Smart manufacturers, such as Honda, Toyota, Samsung, have invested billions of dollars in producing electric cars.

 Coal mines will be completely closed.  Petrol companies will stop as well, underground oil extraction will be stopped.  This means that the countries of the Middle East are in danger.  The Arabs will once again have to eat only dates.

   A lot of electricity will be obtained from solar powered electricity installed in the home.  It can be stored and sold to the electricity company.  High power companies can use that power.  Also, you will not get electricity bill.

  Private cars will only be visible in the museum.  The fast-destroying future is advancing rapidly.

  In the year 2000, it did not seem that after five years, no one would take a photo on a photo roll.  Now, twenty years later, pictures are being taken only on smart phones.  Only the experts placed a large camera nearby.

   The digital camera was invented in 1975.  At that time its resolution was only ten thousand pixels.  It is now 100 megapixels.  And all future technology is going to take similar flights.

   From now on, artificial intelligence will improve more and more rapidly.  This will make medical devices smarter and easier to diagnose.  Electric cars will run on their own.  No driver required.  All learning will be on computer.  There will be 3D printing and huge progress in agricultural science.

  Forget the old novel "Future Shock".  The fourth industrial revolution is coming.  What is going to happen in it?

  Artificial intelligence, machine human industry, 3D printing, solar power, electric plane, electric drones instead of long distance buses, free electricity for all !!  Free electricity can destroy plastic, perhaps even technology to replace plastic!  And what just keep imagining !!

   By 2040, electric vehicles will become common.  Travel through it will be free and affordable.  Therefore there will not be private vehicles.  So no pollution.  There will also be no parking lot for vehicles.

   Since all vehicles are electric, the environment will be clean in urban and rural areas, where there will be no pollution.  There will be clean air, clean water.  Since electricity is free, the plastic will not be garbage and will be burned.  Because it won't cost anything.  Only bicycles will be available for physical fitness.  The tall building will have a 24-hour lift.

  There will be two sources for energy.  One is the solar energy that will never end.  The panel on solar power will become cheaper and more powerful as it is constantly improving.  In addition, as the batteries improve, the amount of electricity stored in them will increase, which is more than any family needs.

  Another source is: nuclear fuel used in reactors.  Now it will be possible to generate electricity through new research.  Everyone will get this electricity in another * five years *.  The battery life that will be built on it will be… 2… thousand years….

  Health - Mobile phone batteries will last a lifetime.  It will also come with more sensors, which will give you complete information about your physical fitness.  Based on that, we can consult a medical expert.
 *Welcome to a new world.*

बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

डॉ गोवर्धन जोधपुर,राजस्थान। चमत्कार।

जोधपूरमधील त्या ‘दोन अंगठ्याची’ कमाल
मान, पाठ, कंबर यावर उपचार करणारे जादूगार

मधुकर भावे 

आॅगस्ट-सप्टेंबर २०२० च्या दोन महिन्यात माझी स्व.पत्नी मंगला तिची प्रकृती गंभीर झाल्यामुळे पिंपरी-चिंचवड येथील डॉ.डी.वाय.पाटील रुग्णालयात दाखल होती. त्या संस्थेचे प्रमुख डॉ.पी.डी.पाटील यांच्या तत्परतेने मंगलावर सुयोग्य उपचार चालू होते. या काळात किमान २०-२२ वेळा मुंबई-पिंपरी-चिंचवड अशा खेपा होत होत्या. पत्नीच्या आजारात या प्रवासाचा एक विपरीत परिणाम माझ्या कमरेच्या हाडांवर कधी झाला ते मला कळलेच नाही. कंबर दुखू लागली, पायापर्यंत चमक मारु लागली. मंगलाच्या आजारपणामुळे माझ दुखण महत्वाच नव्हतं, त्यामुळे ते अंगावर काढल. त्यानंतर चालण असह्य झालं. म्हणून प्रथम डॉ.सुबोध मेहता मग डॉक्टर कपिल अशा नामवंत वैद्यक शास्त्र्यांकडून तपासणी झाली, एम.आर.आय झाला, इंजेक्शन झाली, गोळ्या सुरु झाल्या. चालता येईना, दुखण थांबेना. वेदना असह्य झाल्यावर आणि दुखण बर होत नाही अस जाणवल्यावर निराशा येत गेली त्यातच मंगलाचे हृदयविकाराच्या तीव्र झटक्याने निधन झाले, निराशेत आणखी भर पडली. काय उपचार करावे सुचत नव्हते, डॉक्टरांनी मणक्याचे आॅपरेशन सुचवले, पण ते करणे धोक्याचे आहे, असे त्यांनीच मत दिले. आता काय करायचे?.. काही प्रश्नांची उत्तर नियती देत असते. एक दिवस अचानक माझे दोन मित्र श्री. किशोर अग्रहाळकर (नवी मुंबईचे माजी नगररचनाकार) आणि श्री. अशोक मुन्शी माझ्याकडे आले. माझ दुखण पाहून त्यांनी सुचवलं की, ‘जोधपुरला चला’ असं सांगायलाच आलो आहोत. दोन्ही जिव्हाळ्याचे मित्र. जोधपूरला उपाय काय माहित नाही, त्यांच्यावर विश्वास ठेऊन जोधपूरला जायचं ठरले. त्यांनी सांगितले की, डॉ. गोवर्धनलाल पाराशर हे विख्यात डॉक्टर दोन अंगठयांनी कंबर, मणका, मान, पाय याठिकाणी ज्या मांसपेशीमध्ये शीर दबलेली असते तिला बरोबर मार्गी लावतात आणि अवघी दहा मिनीटाची त्यांची जादू. करुन तर बघा.... चार डॉक्टर झाले होते, चार प्रयोग झाले होते. पाचवा प्रयोग करु या, असं समजून जोधपूरला निघालो, सोबत माझी सुविद्य कन्या डॉ. मृदूला (एम.एस. एफ.आर.सी.एस) हीसुध्दा होती. विमानात बसताना पायंड्या चढता आल्या नाहीत. व्हिलचेअरवरुन आत जावे लागले. उतरताना व्हिलचेअरची गरज लागली.... पुढे काय होणार माहित नव्हते. ४० मिनीटात
डॉ. पराशर यांच्या ‘आॅस्टियोपॅथी’ प्रयोगासाठी त्यांच्यासमोर उभा राहीलो. त्यांनी उपचार सुरु केले. त्यांच्या रुग्णालयात सकाळी ८ वाजल्यापासून संध्याकाळी ५ पर्यंत रोज ३०० लोकांवर, या सर्व व्याधींवर उपचार केले जातात. त्यांचे बंधू डॉक्टर नंदु, ज्येष्ठ चिरंजीव डॉ. गिरीराज, दुसरे चिरंजीव डॉ.महेश आणि अन्य डॉक्टर सहकारी अशा १२ जणांची टीम ३०० रुग्णांवर पाचवाजेपर्यंत उपचार करते. जे रुग्ण लंगडत आलेले असतात, ज्या रुग्णांना कमरेला विळखा घालून उचलून आणलेले असते... अशा अनेक व्याधी असलेले रुग्ण जवळपास रडत रडतच येतात आणि १० मिनीटाच्या उपचारानंतर टकाटक चालत, हसत आनंदाने परतताना दिसतात, ते सर्व मी बघत होतो. डॉक्टर गोवर्धनजी मला म्हणाले ‘आपका तो कुछ भी नही है। दो दिन मे ठीक होके मुंबई जाओगे।...’ मी ऐकत होतो. पाचवा प्रयोग आहे असच म्हणत होतो. डॉक्टरांच्या सोबत उपचाराच्या खोलीत गेलो. एका रुंद टेबलावर त्यांनी झोपवलं. दोन अंगठयांनी मणक्याची शीर दाबायला सुरुवात करुन कमरेपर्यंत दोन अंगठ्यात दुखरी शीर पकडत ते खालपर्यंत येत होते, पुन्हा वर जात होते... मला फरक जाणवू लागला. पायापर्यंत जाणारी चमक पहिल्या पाच मिनीटात कमी झाल्याच जाणवलं. पुढच्या पाच मिनिटानंतर डॉक्टर म्हणाले, ‘चलो उठो.... आप खुद चल के जा सकते हो।’... मी टेबलवरुन खाली उतरलो. माझी पावलं ताड-ताड पडू लागली. काय झालयं मलाच समजेना आवाजात एकदम फरक पडला, उत्साहात फरक पडला.  नियती काय घडवतं असते. त्याचा अनुभव करत होतो.  डॉक्टरसाहेबांजवळ येऊन बसलो.... कैसा महसूस कर रहे हो।... त्यांच्या प्रश्नावर इतकच म्हणालो की, ‘विश्वास बसत नाही असं काही तरी घडलं आहे. पुराणामध्ये एक कथा आहे की, भगवान श्रीकृष्णांन एका करंगळीवर अख्खा गोवर्धन पर्वत उचलला होता... मोठी रोचक कथा आहे. त्याचे मित्र असलेले पेंदे काठ्या टेकून उभे होते, पर्वत उचलला होता श्रीकृष्णाच्या करंगळीवर , ते बघायला कुणीच गेल नाही. पण माझ्या समोरच्या डॉक्टरांनी हाताच्या दोन अंगठयांवर हजारो रुग्णांची व्यथा आणि पिडा गोवर्धन पर्वतासारखीच उचलली आणि त्यांची पिडा दूर केली. विलक्षण योगायोग म्हणजे त्या वैद्यकशास्त्राच नाव डॉक्टर गोवर्धनच आहे. अंगठयाची कमाल आहे. सेवेची आणि ‘आॅस्टियोपॅथीच्या अभ्यासाची ही साधना आहे.
डॉक्टरांनी एक पुस्तक हातात दिलं. उलटून बघितलं, विश्वास बसला नसता. फोटोसकट सगळी सचित्र माहिती होती. मान, पाठ, मणका, पोटºया एवढेच नव्हेतर हाताची एकमेकांवर चढलेली बोटं अशा अनंत व्याधी घेऊन डॉक्टरसाहेबांकडे कोणकोण आले आणि हे जागतिक किर्तीचे लोक अंगठयाच्या जादूने बरे होऊन गेले. त्यांनी कोणत्या कोणत्या शब्दात डॉक्टरांचं वर्णन कसं केलं... सगळ वाचून थक्क झाले. या उपचारामध्ये आहेत, भारताच्या माजी पंतप्रधान इंदिरा गांधी, अमेरिकेचे माजी राष्टÑपती डॉ. जॉर्ज बुश, बराक ओबामा, भारताचे माजी राष्टÑपती डॉ. अब्दुल कलाम, प्रतिभाताई पाटील, पंतप्रधान अटलबिहारी वाजपेयी, गुजरातचे त्यावेळचे मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, आजचे राजस्थानचे मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत, सिनेतारकांमध्ये देवानंद, राजेश खन्ना, धर्मेद्र, मिथुन चक्रवर्ती, सलमान खान, सनी देओल आणि शेवटची दोन नाव.... लता मंगेशकर आणि सचिन तेंडुलकर या सर्वांचे या ना त्या रुपात डॉक्टरांनी उपचार केलेले आहेत आणि त्या सर्वांच्या व्याधी दूर केलेल्या आहेत. मध्यप्रदेशचे माजी मुख््यमंत्रीु अर्जुनसिंग चक्क सहा दिवस दाखलच झाले होते. या महारथींच्यापेक्षा सुध्दा सकाळी ८ ते  संध्याकाळी ५ वाजेपर्यंत जी सामान्य माणसं येतात त्यांच्या चेहºयावरचा आनंद विलक्षण आहे आणि प्रत्येकाची फी फक्त रुपये १००/-....
आणखी एका किस्सा सांगतो. ख्यातनाम उद्योगपती मुकेश अंबानी यांच्या मातोश्री श्रीमती कोकिलाबेन अंबानी यांच्या उपचारासाठी त्यांना जोधपुरात आणलं होतं. तो योग साधून त्यांचा वाढदिवस मुकेशजींनी जोधपूरमध्ये साजरा केला. ४०० मित्रांना वाढदिवसाला बोलावलं, १० चॅटर्ड विमान आणली, सगळी फाईव्हस्टार हॉटेल्स बुक केली, ५ कोटी रुपये खर्च केला म्हणतात आणि नंतर डॉक्टर गोवर्धनलालजींना ते म्हणाले, ‘मी मुंबईमध्ये ५-२५ कोटी रुपये लावून तुमच्या उपचारांसाठी फाईव्हस्टार रुग्णालय उभं करतो, तुम्ही तिथे या. मला डॉक्टर गोवर्धनलाल यांची विशेषता यातच वाटते की, त्यांनी काय सांगितलं?..
‘मुकेशभाई, आपका वह सेंटर तो फाईव्हस्टार हॉटेलसेभी उपर के लेवलका होगा, जाहीर है की ऐसे संस्थानमे मै गरीब तो क्या, मध्यमवर्ग का आदमी भी पहुंच नही सकता, मै विनम्रतापूर्वक इसे स्वीकार नही कर सकता, क्योंकी, जहा, गरीब रुग्ण की मेरे हाथसे सेवा नही हो सकती ऐसे हेल्थकेअर सेंटर मे  मेरी विद्या किस काम की?....’
डॉक्टर गोवर्धनलाल पराशर यांची प्रखर मानसिकता, त्यांची उच्च विचारसरणी, व्यावसायाची निष्ठा आणि सामाजिक धाडस या सर्व गोष्टीचा परिचय त्या एकाच घटनेत होऊ शकतो.
सहा दिवस उपचार घेतले, आज मी टकाटक पूर्वीप्रमाणे झपाटून कामाला लागलो आहे. जगात १६०० कोेटी लोक राहतात, त्यांचे ३२०० कोेटी अंगठे आहेत पण जोधपूरमधले डॉक्टर गोवर्धनलाल पाराशर यांचे दोन अंगठे जगातल्या ३२०० कोटी अंगठयांपेक्षा वेगळे अंगठे आहेत. ‘अंगठा दाखवला’ असा मराठीतला वाकप्रचार फार वाईट अर्थाने वापरला जातो. जोधपूरले हे दोन अंगठे कमाल करणारे अंगठे आहेत. मी मुंबईला परत निघताना डॉक्टरसाहेबांना सांगितलं की,....
‘डॉक्टरसाहब, आपका तहेदिलसे ऋणी हू। आज मुंबई जा रहा हू। जोधपूर के दोन अंगुठे का डंका मुंबई आणि पुरे महाराष्टÑ मे बजानेकी मेरी जिम्मेदारी, आप से मेरा इतनाही वादा....’
मुंबईला आल्यावर अनेक महिने थांबलेला व्यायाम पूर्ववत सुरु केला आहे. मंगलाच्या निधनाने दु:ख पचवून पुन्हा कामाला सुरुवात केली आहे. डॉक्टर गोवर्धन यांची ही यशस्वी गाथा महाराष्टÑभर सामान्य माणसाला उपयोगी पडेल यासाठी मुंबई, पुणे, नागपूर या दोन-तीन ठिकाणी डॉ. पाराशर यांची आरोग्य शिबीरे आयोजित करण्याचे काम सुरु केले आहे. नियती या कामात यश देते की नाही ते पाहूया..

Address: Shree Sanwar Lal Osteopath charitable sansthan 18 E, Chopasni Housing Board, Jodhpur, Rajasthan 342008

Phone: 0291 297 2777

भारत की राजनीति 1947 से 2021

कृषि कानून शरद पवार की राष्ट्रवादी पार्टी, ओर कोंग्रेस पार्टी 2006 से यही कृषि कानून लाना चाहते थे पूरे भारत मे, ओर तब पंजाब की सरकार, भी यही चाहती थी। पर जो काम हम 10 साल में सत्ता में रहकर नही कर पाए, ओ काम मोदी ने किसानों के लिए कर दिया, एक झटके में। ये एक ऐतिहासिक बिल है, जिससे किसान की आर्थिक हालात बदल जाएंगे, पर इसका क्रेडिड हम मोदी को काभि नही लेने देंगे। और हमारा नशीब अच्छा है, टिकेत, केजरीवाल, ममता, जैसे दोगले हमारे साथ है। भले ही हम पूरे भारत के किसानों को बेवकूफ न बना पाए, पर हमें पंजाब के आढ़तिये मिल ही गए। तो हम ये मौका क्यो छोड़े? ये है देशद्रोही राजनीति। देश जाए भाड़ में, पर हम चाहते है के हमारे परिवार अगले 70 साल इस देश पर राज करे। हम लोगो ने, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आझाद, भगतसिंग, सरदार वल्लभभाई पटेल, वीर सावरकर जैसे देशभक्तों का नामो निशान मिटा दिया इस देश से, यँहा तक के हमने महात्मा गाँधी को आझादी मिलते ही 6 महीने में निपटा दिया, ओर उनके खानदान का भी नामोनिशान मिटा दिया, तो मोदी क्या चीज है। बस भारत की जनता 2014 के बाद ज्यादया होशियार ओर देशभक्त हो गयी है। ये असली समस्या है। पर हम अब भी नही हारे। महाराष्ट्र के हिन्दू के शेर बालासाहेब ठाकरे के बेटे को हम गिधड़ बना सकते है, ओर उनकी शिवसेना खत्म कर दी, तो बीजेपी कौनसी बड़ी बात है। 70 साल से हमने इतना धन जमा कर रखा है, विदेशों में, के हम ओर 10 सालमें इस देश को तोड़ सकते है। हमे पहले भी काभि फ़र्क नही पड़ा, के पाकिस्थान हमारे भारत के हर राज्य में कितने लोगों को मारता है, या चीन कितने भूमि पर कब्जा करता है। या कश्मीर में मार मार कर हिन्दू खत्म किये जाते है, या देश की सेना बिना बुलेट प्रूफ जैकेट के मरती है,, या बॉर्डर पर बर्फ में दबकर मरे, या केदारनाथ जैसे आपदा में मरे, या भोपाल के गैस कांड में मरे, या लोकल ट्रेन में बम फटने से मरे। हमे बस एक ही ध्यान रहता है, जैसे हमने ओर हमारे परिवार ने 70 साल राज किया, उसी तरह हमारे अगली पीढियां 700 साल राज्य करे। फिर इसके लिए लाखों करोड़ों किसान आत्महत्या कर ले, या हिन्दू मुस्लिम आपस मे एक दूसरे को काटते फिर। 1947 में भी इसी तरह 30 लाख हिन्दू -मुस्लिम आपस मे कट कर मरे, पर हमारे परिवार को खरोच तक नही आयी। ये राजनीति है, ओर राज करने का अधिकार केवल ओर केवल, हमारे मतलब, शरद, राहुल, ममता,लालू, के परिवार को ही है। ये हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, ओर हम इसे वापस लाकर ही रहेंगे। इस देश मे पहले भी राजाओं और मोगलों के नवाबों का राज रहा है। अब आगे भी हमारा ओर हमारे परिवार का ही रहेगा।क्यो की भले ही भारत की जनता हमारे साथ न हो पर हमारे साथ चीन जैसा सशक्त देश खड़ा है, ओर पाकिस्थान जैसा आंतकवादी देश।हिन्दू मुस्लिम को आपस मे लड़ाने का, देश को गुमराह करने का, ये कला और ये तरीका बरसो से हमारा आजमाया हत्यार है, यही हमारा ब्रह्मास्त्र है, जो काभि खाली नहीं जाएगा। देश मे 70 साल से लोगो के दिमाग मे ये जो तोड़ फोड़, मार काट, अफवाओ का जहर हमने भर रखा है, इसे मोदी जैसे की 7 पीढियां को खपना पड़ेगा। ये शरद-राहुल-सोनिया-ममता- माया- केजरीवाल की नीति है। English Agricultural law Sharad Pawar's Nationalist Party and Congress Party had wanted to bring the same agricultural legislation since 2006 across India, and then the Government of Punjab also wanted the same. But the work that we could not do in 10 years in power, O work Modi did for the farmers, in one stroke. This is a historic bill, which will change the economic conditions of the farmer, but we will not allow Modi to get his credit. And our Naseeb is good, like Tiket, Kejriwal, Mamta, the bastards are with us. Even though we could not fool the farmers of the whole of India, but we have got the jobbers of Punjab. So why should we miss this chance? This is seditious politics. The country will go to hell, but we want our families to rule this country for the next 70 years. We have erased the names of patriots like Netaji Subhash Chandra Bose, Chandrashekhar Azhad, Bhagatsingh, Sardar Vallabhbhai Patel, Veer Savarkar from this country, till here we dealt with Mahatma Gandhi in 6 months as soon as he got freedom, and his family. If the erasure is erased, then what is Modi? Just after 2014, the people of India have become more intelligent and patriotic. This is the real problem. But we still do not lose. We can make the son of Balasaheb Thackeray, the lion of the Hindu of Maharashtra, a cow, and if his Shiv Sena is abolished, then BJP is a big deal For 70 years we have accumulated so much money, abroad, that we can break this country in 10 more years. We have never had a difference in the past, how many people kill Pakistan in every state of India, or how much land China occupies. Or Hindus are killed by killing in Kashmir, or the army of the country dies without a bullet proof jacket, or buried in snow on the border, or died in a disaster like Kedarnath, or in a gas scandal in Bhopal, or local The bomb died in the train. We have only one care, just as we and our family ruled for 70 years, similarly our next generations should rule for 700 years. Then millions of farmers would commit suicide for this, or Hindu Muslims would cut each other again. In 1947, similarly, 30 lakh Hindus and Muslims were cut off and killed, but our family did not even get to scratch. This is politics, and the right to rule only and only, we mean, the family of Sharad, Rahul, Mamta, Lalu. This is our birthright, and we will continue to bring it back. In this country even before, the kings and the Nawabs of the Moguls have ruled. Now our family will be on our side even further, because even if the people of India are not with us, but a strong country like China stands with us, and a terrorist country like Pakistan. Of, this art and this method has been our tried killer for years, this is our Brahmastra, which will never be empty. For 70 years in the country, we have kept this poison, destruction, poison of Afwao in the minds of people, it will have to consume 7 generations like Modi. This is the policy of Sharad-Rahul-Sonia-Mamta-Maya-Kejriwal.

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

महाराष्ट्र में मुस्लिम मोगल का राज शुरू हुआ।

*आज महाराष्ट्र शर्मिदा हुआ*

*क्या महाराष्ट्र में मोगलों का राज आगया?*

 नेशनल चैनल पर खबरे दिखाई जा रही है, कोंग्रेस के नेताओ ने , भारत रत्न सचिन तेन्दुलकर ओर लता मंगेशकर के ट्वीट की कंप्लेन  राष्ट्रवादी के गृहमंत्री से की जो शरद पवार के दाहिने हाथ है, ओर उन्होंने इन दोनों भारतरत्न के खिलाफ पुलिस को आदेश दे दिए। और इस आदेश का समर्थन शिवसेना ने भी कर दिया।
अब पोलिस इन दोनों के घर जाएगी, इनके मोबाइल जब्त किए जाएंगे,,, ओर पता नही क्या क्या करे।

 महाराष्ट्र का स्वभिमान, को इतनी बड़ी ठेस आज तक किसीने नही लगाई। 
राजनीति इतने निचले स्तर पर जाएगी शिवसेना, राष्ट्रवादी ओर कोंग्रेस की, किसीने सोचा भी न था।
 लगता है, अब महारष्ट्र में  सच मे निजामशाही / मोगल शाही आ गयी है।

इससे ज्यादा हद तो महाराष्ट्र के शकुनि मामा शरद पवार जी ने कर दी।

*शरद पवार शायद होश में नहीं है...*

अंतर्राष्ट्रीय वेश्याओं मियां खलीफा, रिहाना और अंतर्राष्ट्रीय दलाल थनबर्ग के भारत विरोधी अभियान के खिलाफ *सचिन तेंदुलकर के ट्वीट पर पता नहीं क्यों शरद पवार बहुत आगबबूला हो गया है.?* 

कल शरद पवार ने कहा कि _*"सचिन तेंदुलकर को किसानों के बारे में बोलने के दौरान काफी सावधानी बरतनी चाहिए।"*_  

शरद पवार ने यह भी कहा कि  *‘मैं सचिन तेंदुलकर को सुझाव दूंगा कि उन्हें अन्य क्षेत्रों से जुड़े मुद्दों पर बयान देने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए।*

सचिन तेंदुलकर को दी गयी शरद पवार की उपरोक्त नसीहत पढ़कर मुझे ध्यान आया कि देश के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में से एक तथा *1983 से 1986, लगातार 4 वर्षों तक ICC की वर्ल्ड रैंकिंग मेँ दुनिया के नंबर एक बल्लेबाज रहे दिलीप वेंगसरकर ने 2011 में जब मुम्बई क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बनने के लिए चुनाव लड़ा था तो उस समय शरद पवार ने दिलीप वेंगसरकर के खिलाफ महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख को चुनाव में खड़ा कर के दिलीप वेंगसरकर के खिलाफ अपनी पूरी ताक़त झोंक दी थी। परिणामस्वरूप दिलीप वेंगसरकर के बजाय विलासराव देशमुख को मुम्बई क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया था।*

2015 में दिलीप वेंगसरकर ने जब दोबारा चुनाव लड़ना चाहा तो उनके खिलाफ शरद पवार ने खुद चुनाव लड़ने के लिए ताल ठोंक दी थी और वेंगसरकर को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करा के शरद पवार को बिना चुनाव के ही निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया था।
*शरद पवार क्या देश को बताएगा कि क्रिकेट दिलीप वेंगसरकर का क्षेत्र था या उसका और विलास देशमुख का क्षेत्र था.?*

उपरोक्त सवाल केवल इसलिए ताकि जिस कसौटी के अनुसार शरद पवार ने कल सचिन तेंदुलकर को नसीहत दी उसी कसौटी के आधार पर शरद पवार के ढोंग पाखण्ड और धूर्तता की धज्जियां उड़ जाएं।
लेकिन सबसे गम्भीर और संवेदनशील सवाल यह है कि सचिन तेंदुलकर के बयान कि "भारत की संप्रभुता से समझौता नहीं किया जा सकता. बाहरी ताकत दर्शक हो सकते हैं, लेकिन भागीदार नहीं." में किसानों का तो कोई जिक्र तक नहीं है। इस बयान में ऐसा क्या है जो शरद पवार इतनी बुरी तरह तिलमिला गया.? 
शरद पवार शायद भूल गया है कि वो इस देश का रक्षामंत्री रह चुका है जिसका प्रथम दायित्व कर्तव्य देश की सम्प्रभुता को अक्षुण्ण रखना ही है। सचिन तेंदुलकर ने भी अपने बयान में भारत की सम्प्रभुता को अक्षुण्ण रखने की बात को ही कहा है। इस पर शरद पवार इतना आगबबूला क्यों हो गया.? इसीलिए अपनी इस पोस्ट की शुरूआत मैंने यह लिखते हुए की है कि... 

*शरद पवार शायद होश में नहीं है...*

English 

* Maharashtra is ashamed today *

 Did the Moguls rule Maharashtra? 

  The news is shown on the national channel, the leaders of the congress compiled the tweet of Bharat Ratna Sachin Tendulkar and Lata Mangeshkar with the Home Minister of the nationalist who is right hand of Sharad Pawar, and he ordered the police  enquiry against these two Bharatratnas.   And this order was also supported by Shiv Sena. Shamefull.

 Now the police will go to these two houses, their mobiles will be confiscated ,, and do not know what  they will do further,,, it's really insulting all .

  Nobody has ever hurt Maharashtra's self-esteem till today.

 Politics will go to such a low level that the Shiv Sena, the nationalist congress and the Congress, are do such, nonsense.  
no one even think.

  It seems that now Nizamshahi / Mogal Shahi has come to Maharashtra.

 Shakuni maternal uncle of Maharashtra Sharad Pawar did more than this.

 * Sharad Pawar is probably not conscious ... *

 Against the anti-India campaign of international prostitutes Mian Khalifa, Rihanna and international broker Thanberg * Don't know why Sachin Tendulkar's tweet has become so furious. *

 Yesterday Sharad Pawar said that _ * "Sachin Tendulkar should be very careful while speaking about farmers." * _

 Sharad Pawar also said that * "I would suggest to Sachin Tendulkar that he should be cautious before making a statement on issues related to other areas."

 After reading the above edict of Sharad Pawar given to Sachin Tendulkar, I came to notice that Dilip Vengsarkar, one of the best batsmen in the country and * world number one batsman in ICC world rankings for 4 consecutive years from 1983 to 1986, when Mumbai in 2011  When he contested to become the President of the Cricket Association, at that time, Sharad Pawar had put his full power against Dilip Vengsarkar by putting the then Chief Minister of Maharashtra Vilasrao Deshmukh in the election.  As a result, Vilasrao Deshmukh was chosen as the President of Mumbai Cricket Association instead of Dilip Vengsarkar. *

 In 2015, when Dilip Vengsarkar wanted to contest again, Sharad Pawar himself was pitted against him and Vengsarkar was disqualified from contesting elections and Sharad Pawar was elected unopposed.
 * Will Sharad Pawar tell the country that cricket was the territory of Dilip Vengsarkar or his and Vilas Deshmukh's territory. *

 The above question is only so that the criterion according to which Sharad Pawar had instructed Sachin Tendulkar on the basis of the same criterion, flies to the hypocrisy and deceit of Sharad Pawar.
 But the most serious and sensitive question is that Sachin Tendulkar's statement that "India's sovereignty cannot be compromised. External forces can be spectators, but not partners."  There is no mention of farmers in India.  What is it in this statement that Sharad Pawar was so badly stung?
 Sharad Pawar has probably forgotten that he has been the defense minister of this country whose first duty is to keep the sovereignty of the country intact.  Sachin Tendulkar has also said in his statement that the sovereignty of India is intact.  Why did Sharad Pawar get so hot on this?  That's why I started this post by writing that ...

 * Sharad Pawar is probably not conscious ... *