रविवार, 28 फ़रवरी 2021

मौलाना अब्दुल कलाम भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री: कुछ तथ्य, इतिहास के पन्नो से।

क्या आप जानते हैं कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी आखिर कौन था.?
कृपया ध्यान से पढ़िये, पूरा पढ़िये।
सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी कांग्रेस का बहुत बड़ा नेता था। कांग्रेस ने उसे हिन्दू मुस्लिम एकता का पोस्टर बॉय और सेक्युलरिज्म का सबसे बड़ा ठेकेदार बना दिया था। 1947 में आजादी मिलने के तत्काल बाद सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी देश के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल से भिड़ गया था। उस समय दिल्ली में हो रहे भयानक दंगे के दंगाइयों से सख्ती से निपट रहे दिल्ली पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर जो कि एक सिक्ख थे, को उनके पद से हटा कर उन्हें दण्डित करने की मांग सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी ने देश के गृहमंत्री सरदार पटेल से की थी। सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी ने सरदार पटेल से कहा था कि दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से मुसलमान नाराज हैं और उसके खिलाफ आरोप लगा रहे हैं इसलिए उस पुलिस कमिश्नर को तत्काल हटा कर दण्डित किया जाए। लेकिन सरदार पटेल ने उसकी उस बेहूदी मांग को मानने से इनकार कर दिया था क्योंकि दिल्ली के दंगों को नियंत्रित करने के सफल प्रयासों के कारण उस सिक्ख पुलिस कमिश्नर की प्रशंसा पूरे देश में हो रही थी। इसके कुछ दिनों बाद सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी देश के गृहमंत्री सरदार पटेल के पास अपनी एक और मांग लेकर पहुंच गया था। उसने मांग की थी कि विभाजन के कारण पाकिस्तान चले गए मुसलमानों की जमीनों और घरों को हिन्दूस्तान में रह गए मुसलमानों को ही दे दिया जाए। 
सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी की उस मांग का सीधा सा अर्थ यही था कि पाकिस्तान भाग गए गद्दारों की जमीन मकान भी सरकार कब्जा नहीं करे और मुसलमानों को ही दे दे। उसकी इस बेतुकी बेहूदी मांग पर सरदार पटेल ने उसे जमकर डपटा था। अब आप यह भी जानिए कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी आखिर था कौन.?
उपरोक्त सवाल का जवाब यह है कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी नाम का नौजवान सऊदी अरब में जन्मा था और भारत में 1919 में शुरू हुए खिलाफत आंदोलन के सबसे बड़े नेताओं में से एक था। सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी की शिक्षा दीक्षा मदरसे में ही हुई थी। ज्ञान विज्ञान इतिहास भूगोल आदि औपचारिक शिक्षा देने वाले किसी स्कूल में वो नहीं पढ़ा था। लेकिन जब देश स्वतन्त्र हुआ उस समय देश में कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी और डॉक्टर राधाकृष्णन सरीखे महान विद्वानों के होते हुए भी जवाहरलाल नेहरू ने देश के पहले शिक्षा मंत्री की कुर्सी पर सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी को ही बैठा दिया था। 1958 में हुई उसकी मौत तक सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी देश की शिक्षा व्यवस्था का कर्ताधर्ता बना रहा। जरा कल्पना करिए कि जिस व्यक्ति ने ज्ञान विज्ञान इतिहास भूगोल आदि की औपचारिक शिक्षा देने वाले किसी स्कूल तक का मुंह नहीं देखा था उसे कांग्रेस ने देश की शिक्षा नीति की कमान सौंप दी थी।

सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी जिस खिलाफत आंदोलन के सबसे बड़े नेताओं में से एक रहा था। उस आंदोलन का एकमात्र मूल उद्देश्य तत्कालीन तुर्की में इस्लाम के खलीफा सुल्तान की गद्दी और उसके कट्टर इस्लामिक साम्राज्य को बचाना था। हास्यास्पद और शर्मनाक तथ्य यह है कि खुद तुर्की में ही उस इस्लाम के खलीफा सुल्तान की कट्टरपंथी रूढ़िवादी मजहबी सोच के खिलाफ भयंकर जनाक्रोश की आग भड़की हुई थी। परिणाम स्वरूप 1923 में इस्लाम के उस खलीफा और उसकी कट्टरपंथी रूढ़िवादी मजहबी नीतियों वाले शासन का हमेशा के लिए अंत हो गया था। कमाल अतातुर्क पाशा ने तुर्की की सत्ता सम्भाल ली थी।
लेकिन 1919 से 1923 तक सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी भारत के मुसलमानों को संगठित कर के तुर्की के उस इस्लामी खलीफा के इस्लामिक राज्य को बचाने के लिए हंगामा हुड़दंग कर रहा था।

सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी, नाम उसकी असलियत को उजागर कर देता इसलिए वामी हरामी इतिहासकारों ने उसे मौलाना अबुल कलाम आजाद ही लिखा। उसे महान शिक्षाविद, हिन्दू मुस्लिम एकता का पोस्टर बॉय और सेक्युलरिज्म का सबसे बड़ा ठेकेदार शिक्षाविद बना डाला।
लेकिन अब आप स्वयं ही यह तय करें कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी, आखिर क्या था, कौन था.? वो महान शिक्षाविद था या मदरसा छाप था.? वो सेक्युलरिज्म का सबसे बड़ा ठेकेदार था या घोर कट्टर साम्प्रदायिक तुर्की के खलीफा का भारतीय गुर्गा था।

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