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शुक्रवार, 26 मई 2023

क्या मुस्लिम देशभक्त होते है?*

 *क्या मुस्लिम देशभक्त होते है?*


*9 मई काला दिवस जाहिर पाकिस्तान में*


 अब हम ऊपर के दोनो मुद्दे को एक दूसरे से जोड़कर निर्णय ले सकते है


 1947 में मुसलमानों ने मजहब के नाम पर अपना अलग मुस्लिम देश बनाया पाकिस्थान। ओर निर्णय लिया के 1500 साल पुरानी किताब कुरान  में लिखी बातो से ही देश निर्माण होगा ओर देश चलेगा।

 अब मुसलमानों में काफिर ( मतलब जो मुस्लिम नही) को मारने का रिवाज है,, तो इन्होंने 1947 से लेकर आजतक वही किया। ओर अब कई  75 सालो बाद शायद ही  75 हजार भी काफिर इस देश में बचे हो। 

 अब दूसरी बात 1500 साल पुरानी किताब में न तो विज्ञान है,, न परिवर्तन का कोई नियम है,, तो जाहिर है के ये कोई वैज्ञानिक खोज अपने बलबूते कर के कोई आधुनिक खोज कर पाए। ये तो धरती को अब भी गोल नही चपटी ही पढ़ाते हे और समझते है। नतीजा क्या हुआ अलग *मुस्लिम देश बनाने का?*

 आज पूरा पाकिस्तान आटे की भीख मांग रहा है,, इनके राजनेता  1500 पुराना वही कटोरा लेकर पूरी दुनियां में भीख मांगते फिर रहे है,,, *ये तो देशभक्ति नही होसकती*

 *अब आते है 9 मई 2023 की घटना पर*

 इस दिन इन मदरसों में कुरान की पढ़ाई किए मुसलमानों ने अपने ही देश के सैनिकों पर हमले किए। सेना के बड़े बड़े अधिकारियों के घर में घुसकर लूट पाट मार धाड़ की,, आग लगा दी। बड़े बड़ी सैनिकों की छावनी पर हमला किया,, उसे तहस नहस किया,, लूट पाट की। पाकिस्तानी सेना के शाहिद सैनिकों की मूर्तियां उखाड़ डाली ( वैसे भी मूर्तियां हराम ही होती है ,, मुस्लिम मजहब में)

 

 *पाकिस्थान मुस्लिम देश है ,, पिछले 75 साल से कुरान की शिक्षा नुसार ही लोग पढ़ाई कर के आज है। ओर अगर मुसलमान  अपने ही मुस्लिम देश के  मुसलमान सेना का ये हाल करते है।*

*तो आप बताओ क्या मुसलमान देशभक्त होते है?*

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शनिवार, 1 मई 2021

1 मैं महाराष्ट्र दिन का कोंग्रेस का काला इतिहास

 शिवसैनिक ओर ठाकरे परिवार न देखे🙏 क्यो के इसलिए आदरणीय बालासाहेब जी ने अपने जीते जी कभी भी कोंग्रेस से समझौता नही किया था।  आज उनका पुत्र उसी कोंग्रेस के साथ महज कुर्सी के लिए बिक गया है।


रविवार, 18 अप्रैल 2021

हरामी नेहरू ओर देशभक्त डालमिया :-इतिहास के पन्नो से


 डालडा और नेहरू

आप सोच रहे होंगे डालडा और नेहरू का क्या सम्बन्ध है? उत्तर है, बहुत गहरा। डालडा हिन्दुस्तान लिवर का देश का पहला वनस्पति घी था जिसके मालिक थे स्वतन्त्र भारत के उस समय के सबसे धनी सेठ रामकृष्ण डालमिया और यह लेख आपको अवगत कराता है कि नेहरू कितना दम्भी, कमीना , हिन्दू विरोधी और बदले के दुर्भाव और मनोविकार से ग्रसित इन्सान था।

#टाटा #बिड़ला और #डालमिया ये तीन नाम बचपन से सुनते आए है। मगर डालमिया घराना अब न कही व्यापार में नजर आया और न ही कहीं इसका नाम सुनाई देता है। 

#डालमिया घराने के बारे में जानने की बहुत इच्छा थी -

लीजिए आप भी पढ़िए की #नेहरू के जमाने मे भी १ लाख करोड़ के मालिक डालमिया को साजिशो में फंसा के #नेहरू ने कैसे बर्बाद कर दिया।

ये तस्वीर है राष्ट्रवादी खरबपति सेठ रामकृष्ण डालमिया की , जिसे नेहरू ने झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया तथा कौड़ी-कौड़ी का मोहताज़ बना दिया।

 वास्तव में डालमिया जी ने स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ मिलकर गौहत्या एवम हिंदू कोड बिल पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर नेहरू से कड़ी टक्कर ले ली थी। लेकिन नेहरू ने हिन्दू भावनाओं का दमन करते हुए गौहत्या पर प्रतिबंध भी नही लगाई तथा हिन्दू कोड बिल भी पास कर दिया और प्रतिशोध स्वरूप हिंदूवादी सेठ डालमिया को जेल में भी डाल दिया तथा उनके उद्योग धंधों को बर्बाद कर दिया।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस व्यक्ति ने नेहरू के सामने सिर उठाया उसी को नेहरू ने मिट्टी में मिला दिया।

देशवासी प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और सुभाष बाबू के साथ उनके निर्मम व्यवहार के बारे में वाकिफ होंगे मगर इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने अपनी ज़िद के कारण देश के उस समय के सबसे बड़े उद्योगपति सेठ रामकृष्ण डालमिया को बड़ी बेरहमी से मुकदमों में फंसाकर न केवल कई वर्षों तक जेल में सड़ा दिया बल्कि उन्हें कौड़ी-कौड़ी का मोहताज कर दिया।

जहां तक रामकृष्ण डालमिया का संबंध है, वे राजस्थान के एक कस्बा चिड़ावा में एक गरीब अग्रवाल घर में पैदा हुए थे और मामूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने मामा के पास कोलकाता चले गए थे।

वहां पर बुलियन मार्केट में एक salesman के रूप में उन्होंने अपने व्यापारिक जीवन का शुरुआत किया था। भाग्य ने डटकर डालमिया का साथ दिया और कुछ ही वर्षों के बाद वे देश के सबसे बड़े उद्योगपति बन गए।

उनका औद्योगिक साम्राज्य देशभर में फैला हुआ था जिसमें समाचारपत्र, बैंक, बीमा कम्पनियां, विमान सेवाएं, सीमेंट, वस्त्र उद्योग, खाद्य पदार्थ आदि सैकड़ों उद्योग शामिल थे।

डालमिया सेठ के दोस्ताना रिश्ते देश के सभी बड़े-बड़े नेताओं से थी और वे उनकी खुले हाथ से आर्थिक सहायता किया करते थे।

इसके बाद एक घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया। कहा जाता है कि डालमिया एक कट्टर सनातनी हिन्दू थे और उनके विख्यात हिन्दू संत स्वामी करपात्री जी महाराज से घनिष्ट संबंध थे।

करपात्री जी महाराज ने १९४८ में एक राजनीतिक पार्टी 'राम राज्य परिषद' स्थापित की थी। १९५२ के चुनाव में यह पार्टी लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी और उसने १८ सीटों पर विजय प्राप्त की।

हिन्दू कोड बिल और गोवध पर प्रतिबंध लगाने के प्रश्न पर डालमिया से नेहरू की ठन गई. पंडित नेहरू हिन्दू कोड बिल पारित करवाना चाहते थे जबकि स्वामी करपात्री जी महाराज और डालमिया सेठ इसके खिलाफ थे।

हिन्दू कोड बिल और गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए स्वामी करपात्रीजी महाराज ने देशव्यापी आंदोलन चलाया जिसे डालमिया जी ने डटकर आर्थिक सहायता दी।

नेहरू के दबाव पर लोकसभा में हिन्दू कोड बिल पारित हुआ जिसमें हिन्दू महिलाओं के लिए तलाक की व्यवस्था की गई थी। कहा जाता है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद हिन्दू कोड बिल के सख्त खिलाफ थे इसलिए उन्होंने इसे स्वीकृति देने से इनकार कर दिया।

ज़िद्दी नेहरू ने इसे अपना अपमान समझा और इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पुनः पारित करवाकर राष्ट्रपति के पास भिजवाया। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति को इसकी स्वीकृति देनी पड़ी।

इस घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया। कहा जाता है कि नेहरू ने अपने विरोधी सेठ राम कृष्ण डालमिया को निपटाने की एक योजना बनाई।

नेहरू के इशारे पर डालमिया के खिलाफ कंपनियों में घोटाले के आरोपों को लोकसभा में जोरदार ढंग से उछाला गया। इन आरोपों के जांच के लिए एक विविन आयोग बना। बाद में यह मामला स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिसमेंट (जिसे आज सी बी आई कहा जाता है) को जांच के लिए सौंप दिया गया।

नेहरू ने अपनी पूरी सरकार को डालमिया के खिलाफ लगा दिया। उन्हें हर सरकारी विभाग में प्रधानमंत्री के इशारे पर परेशान और प्रताड़ित करना शुरू किया। उन्हें अनेक बेबुनियाद मामलों में फंसाया गया।

नेहरू की कोप दृष्टि ने एक लाख करोड़ के मालिक डालमिया को दिवालिया बनाकर रख दिया। उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिन्दुस्तान लिवर और अनेक उद्योगों को औने-पौने दामों पर बेचना पड़ा। अदालत में मुकदमा चला और डालमिया को तीन वर्ष कैद की सज़ा सुनाई गई।

तबाह हाल और अपने समय के सबसे धनवान व्यक्ति डालमिया को नेहरू की वक्र दृष्टि के कारण जेल की कालकोठरी में दिन व्यतीत करने पड़े।

व्यक्तिगत जीवन में डालमिया बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उन्होंने अच्छे दिनों में करोड़ों रुपये धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए दान में दिये। इसके अतिरिक्त उन्होंने यह संकल्प भी लिया था कि जबतक इस देश में गोवध पर कानूनन प्रतिबंध नहीं लगेगा वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। उन्होंने इस संकल्प को अंतिम सांस तक निभाया। गौवंश हत्या विरोध में १९७८ में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।


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जागो हिन्दू जागो 

धर्म की जय हो अधर्म का नाश हों ,नेहरु गाँधी परिवार का नाश हों।

शनिवार, 17 अप्रैल 2021

दो दिनार

 


नीलाम_ए_दो_दीनार 👆👆


“नीलाम ए दो दीनार”

हिन्दू महिलाओं का दुखद कङवा इतिहास!

जबरदस्ती की धर्मनिरपेक्षता, भाईचारे को ढोते अक्लमंद हिंदुओं के लिये (इतिहास) 

समय! 

ग्यारहवीं सदी (ईसा बाद)

भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर अभी-अभी राजा जयपाल की पराजय हुई।

पराजय के पश्चात अफगानिस्तान के एक शहर ‘गजनी’ का एक बाज़ार,

ऊँचे से एक चबूतरे पर खड़ी कम उम्र की सैंकड़ों हिन्दू स्त्रियों की भीङ,

जिनके सामने वहशी से दीखते, हज़ारों बदसूरत किस्म के लोगों की भीड़,

जिसमें अधिकतर अधेड़ या उम्र के उससे अगले दौर में थे।

कम उम्र की उन स्त्रियों की स्थिति देखने से ही अत्यंत दयनीय प्रतीत हो रही थी।

उनमें अधिकाँश के गालों पर आंसुओं की सूखी लकीरें खिंची हुई थी।

मानों आंसुओं को स्याही बनाकर हाल ही में उनके द्वारा झेले गए भीषण यातनाओं के दौर की दास्तान को प्रारब्ध ने उनके कोमल गालों पर लिखने का प्रयास किया हो।

एक बात जो उन सबमें समान थी।

किसी के भी शरीर पर, वस्त्र का एक छोटा सा टुकड़ा, नाममात्र को भी नहीं था। 

सभी सम्पूर्ण निर्वसना थी।


सभी के पैरों में छाले थे, मानो सैंकड़ों मील की दूरी पैदल तय की हो।

सामने खङी वहशियों की भीड़, वासनामयी आँखों से उनके अंगों की नाप-जोख कर रही थी।

कुछ मनबढ़ आंखों के स्थान पर हाथों का प्रयोग भी कर रहे थे।

सूनी आँखों से अजनबी शहर, और अनजान लोगों की भीड़, को निहारती उन स्त्रियों के समक्ष हाथ में चाबुक लिए, क्रूर चेहरे वाला, घिनौने व्यक्तित्व का, एक गंजा व्यक्ति खड़ा था।

सफाचट मूंछ, बेतरतीब दाढ़ी, उसकी प्रकृतिजन्य कुटिलता को चार चाँद लगा रही थी।


दो दीनार, दो दीनार, दो दीनार...

हिन्दुओं की खूबसूरत औरतें, शाही लडकियां, कीमत सिर्फ दो दीनार,

ले जाओ, ले जाओ, बांदी बनाओ,

एक लौंडी, सिर्फ दो दीनार,

दुख्तरे हिन्दोस्तां, दो दीनार,

भारत की बेटी का मोल, सिर्फ दो दीनार.. 

उस स्थान पर आज एक मीनार है।

जिस पर लिखे शब्द आज भी मौजूद हैं - दुख्तरे हिन्दोस्तान, नीलामे दो दीनार  

अर्थात वो स्थान - जहाँ हिन्दू औरतें दो-दो दीनार में नीलाम हुईं।


महमूद गजनवी हिन्दुओं के मुँह पर अफगानी जूता मारने, उनको अपमानित करने के लिये अपने सत्रह हमलों में लगभग चार लाख हिन्दू स्त्रियों को पकड़ कर घोड़ों के पीछे, रस्सी से बांध कर गजनी उठा ले गया।

महमूद गजनवी जब इन औरतों को गजनी ले जा रहा था।

वे अपने पिता, भाई, पतियों को निरीह, कातर, दारुण स्वर में पुकार कर बिलख-बिलख कर रो रही थीं। अपनी रक्षा के लिए पुकार रही थीं। लेकिन करोङों हिन्दुओं के बीच से उनकी आँखों के सामने वो निरीह असहाय स्त्रियाँ मुठ्ठी भर निर्दयी कामांध मुसलमान सैनिकों द्वारा घसीट कर भेड़ बकरियों की तरह ले जाई गईं।

रोती बिलखती इन लाखों हिन्दू नारियों को बचाने न उनके पिता बढ़े, न पति उठे, न भाई।

और न ही इस विशाल भारत के करोड़ों जन-सामान्य लोगों का विशाल हिन्दू समाज।

महमूद गजनी ने इन हिन्दू लड़कियों, औरतों को ले जाकर गजनवी के बाजार में भेङ बकरियों के समान बेच ड़ाला।

विश्व के किसी भी धर्म के साथ ऐसा अपमानजनक व्यवहार नही हुआ।

जैसा हिन्दुओं के साथ हुआ।

और ऐसा इसलिये हुआ, क्योंकि इन्होंने तलवार को हाथ से छोड़ दिया।

इनको बताया गया कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ेगा। 

तब भगवान स्वयं उन्हें बचाने आयेंगे, अवतरित होंगे।

हिन्दुओं! भारत के गद्दार सेकुलर आपको मिटाने की साजिश रच रहे हैं।

आजादी के बाद यह षङयंत्र धर्म-परिवर्तन कराने के नाम पर हुआ।

आज भारत में, आठ राज्यों में, हिन्दुओं की संख्या 2-5% बची है।

हिन्दुओं को समझना चाहिये कि,

भगवान भी अव्यवहारिक अहिंसा व अतिसहिष्णुता को नपुसंकता करार देते हैं।

भगवान भी उन्हीं की मदद करते हैं।

जो अपनी मदद खुद करते हैं।

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रविवार, 4 अप्रैल 2021

जागो पुलिस वालों एक होजाओ ओर 170 दुष्टों का संहार करो:-महाराष्ट्रा

 नेता और पुलिस


महारष्ट्र की राजनीति में आज जो भी चल रहा है, ओ केवल दो समुदाय के बीच की लड़ाई है।


 एक समुदाय मात्र 288 लोगो का है,ओर दूसरा समुदाय हजारो में है। पर जीत 288 की ??? क्यो???


  जबकि ये 288 सबसे कमजोर समुदाय है, इनकी उम्र भी केवल 5 साल की है। वही दूसरी तरफ  हजारो की तादात वाला समुदाय जिसकी उम्र लगभग 33 साल । फिर भी ये कमजोर, जानते हो क्यो?


 वही एकता का अभाव, 288 हर हाल में एक रहते है, ओर हजारो वाले बिखरे रहते है।और इन हजारो की तादात  वाले समुदाय में से 90% तो इन 288 के पालतू कुते होने मेही अपनी शान समझते है।

 ये इनके सामने दुम हिलाने में अपने आप को गौरव की बात समझते है। चंद बिस्कुट ये 288 वाले फेखे तो ये हजारो वाले में 90% उसको खाकर दुम हिलाने लग जाते है।


  अगर ये हजारो वाला समुदाय एक हो जाये, ओर देश के प्रति ,जनता के प्रति अपने कर्तव्य के प्रति वफादार हो जाये ,,तो यकीन मानो 288 मिनिट में ये 288 को नंगा कर दे,,, ओर विदा कर दे।


 ये हजारो वाले समुदाय को आदरणीय डॉ आंबेडकर जी ने इतनी शक्तियां प्रदान कर रखी है,, के पूछो मत। पर ये उन शक्तियों से अनजान है। ये 288 लोग इनका केवल तबादला कर सकते है, ओ भी केवल महाराष्ट्र के भीतर,,, या ज्यादा से ज्यादा 6 महीने के लिए निलंबन,, इसके खिलाफ अदालत भी है, जंहा ये जा कर अपनी जीत पक्की कर सकते है, बशर्ते कि ये खुद *सत्यमेव जयते हो*

 

 वही दूसरी तरफ अगर ये हजारो वाले एक हो जाये तो ये 288 वालो का जीना हराम कर सकते है। 5 साल का जीवन तो दूर 5 दिन में इनको नानी याद दिला दे। 

 इन 288 के हर गलत काम का लेखा जोखा इन हजारो के समुदाय के पास होता ही होता है। अगर ये 30 मिनिट में हर पाकिट मार को पकड़ने की क्षमता रखते है,,, तो क्या इनके पास इन 288 की जन्मकुंडली नही होगी??


 बस इन  हजारो पुलिस वालों का ज़मीर एक बार जग जाए,,, तो इस राज्य में बदलाव 30 दिन में आजायेगा।  भाई जनता की छोड़ो पर अपने ही पुलिस की भाई यो की तो सोचो,,, आपस मे ईमानदारी से एक होजाओ,, ओर रच डालो एक नया इतिहास। वरना ये 288  बड़े बड़े पदों वाले पुलिस अधिकारी झुका रहे,, तोड़ रहे,, बर्बाद कर रहे है,, तो बाकी की क्या ओकाद

 

 एक वझे जैसा हरामी हजारो ईमानदार पुलिस की पहचान काभि नहीं हो सकता, न होना चाहिए,, ओर दरअसल ये वझे पुलिस वाला था ही नही,, ये इन्ही 288 की जात वाला था,,, ओर इन्ही 288 वालो ने इसे पुलिस की वर्दी में आपके बीच, आपको बदनांम करने के लिए छोड़ा था।


सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय’’ हे महाराष्ट्र पोलीसांचे ब्रीदवाक्य आहे. याचा अर्थ असा की, महाराष्ट्र पोलीस सज्जनांचे रक्षण करण्यास आणि दुर्जनांवर नियंत्रण ठेवून त्यांचा नायनाट करण्यास कटीबध्द आहेत

 करो इसको सार्थक


सोमवार, 29 मार्च 2021

शरद पवार का डर?

 *अहमदाबाद में मीटिंग*



ऐसी किसी मीटिंग या डील के अपने अधिकार को शरद पवार ने डेढ़ साल पहले अपनी करतूतों से अपने हाथ से जला कर रख कर दिया था....


अहमदाबाद में अमित शाह के साथ शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल की गुप्त भेंट की खबर परसों शाम तेजी से गर्म हुई और सोशल मीडिया में जंगल की आग की तरह फैल गयी। इसी के साथ "कउव्वा कान ले गया" वाली शैली में "डील हो गयी... डील हो गयी..." का हंगामा हुड़दंग शुरू हो गया है।


 यद्यपि खबर की पुष्टि या खंडन किसी ने नहीं किया है। सच क्या है, यह भी किसी को ज्ञात नहीं है। लेकिन मैं इस खबर को सच ही मान कर यह पोस्ट लिख रहा हूं।


 यदि ऐसी कोई मीटिंग और उसमें कोई तथाकथित डील हुई भी है तब भी मेरे अनुसार उस मीटिंग और उस तथाकथित डील का महत्व कचरे की टोकरी से अधिक नहीं है। क्योंकि,,


 ऐसी किसी मीटिंग या डील के अपने अधिकार को शरद पवार ने डेढ़ साल पहले अपनी  घिनोनी करतूतों से अपने हाथ से जला कर रख कर दिया था। आज शरद पवार की बात और वायदे की औकात दो कौड़ी की भी नहीं रह गयी है। विशेषकर प्रधानमंत्री मोदीं के दरबार में। सम्भवतः यही कारण है कि उस तथाकथित मीटिंग से लौटने के कुछ घंटों बाद ही शरद पवार की तबियत खराब होने और ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती होने की खबर गर्म हो गयी है। 


20 नवम्बर 2019 की दोपहर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से शरद पवार ने लगभग एक घण्टे की मुलाकात अकेले की थी। एनसीपी के किसी भी छोटे या बड़े नेता को वो अपने साथ लेकर नहीं गया था। उस मुलाकात के बाद बाहर निकले शरद पवार ने कहा था कि उसने महाराष्ट्र के किसानों की समस्या पर बात करने के लिए बंद कमरे में प्रधानमंत्री मोदी से एक घण्टे लम्बी मुलाकात की है। ,

शरद पवार की इस बात पर उन्हीं राजनीतिक विश्लेषकों ने विश्वास कर लिया था जिनकी बुद्धि वास्तव में घास चरने गई थी। इस मुलाकात के बाद शरद पवार 22 की सुबह मुम्बई लौटा था और 22 की रात को ही अजित पवार एनसीपी के समर्थन की चिट्ठी लेकर फणनवीस के पास पहुंच गया था। उसकी इस बात पर ज्यादा सोच विचार किए बिना उसको साथ ले जाकर देवेन्द्र फडणवीस ने वो चिट्ठी गवर्नर को सौंप दी थी। परिणामस्वरूप रात में ही कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन हटाने की संस्तुति की थी और राष्ट्रपति ने सवेरे के सूर्योदय के साथ ही उस संस्तुति को स्वीकार कर लिया था। अपने पेशाब से डैम भर देने की गाली देकर किसानों को भगा देने के लिए जग कुख्यात हुए भ्रष्टाचार के पुतले अजित पवार का राजनीतिक कद क्या इतना बड़ा और भारी है कि वो अचानक रंग बदल कर कुछ कहे और उसके कहे पर महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र का राज्यपाल, देश का प्रधानमंत्री, देश का राष्ट्रपति इतना विश्वास कर लें कि उसके कहे पर तत्काल फैसला लेकर त्वरित कार्रवाई कर डालें.?

इस बात पर भी वही राजनीतिक विश्लेषक विश्वास कर सकते हैं जिनकी बुद्धि वास्तव में घास चरने गई हो।

दरअसल इस पूरे घटनाक्रम में अजित पवार और देवेन्द्र फडणवीस की भूमिका मात्र एक डाकिए की ही थी। 

इस सनसनीखेज राजनीतिक थ्रिलर की पटकथा 20 नवम्बर की दोपहर प्रधानमंत्री से अकेले मिलने पहुंचे शरद पवार ने उस एक घण्टे की मुलाक़ात में लिख दी थी। राजनीति की दुनिया में शरद पवार सरीखे राजनीतिक कद और पद वाले व्यक्ति द्वारा एकांत में कही गयी बात को बहुत वजनदार माना जाता है। विशेषकर यह वजन तब और ज्यादा बढ़ जाता है जब ऐसा व्यक्ति देश के प्रधानमंत्री से बंद कमरे में अकेले में कोई बात कहता करता है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी शरद पवार की बातों पर विश्वास कर लिया था।

यही वह बिंदु था जहां प्रधानमंत्री मोदी बुरी तरह मात खा गए थे। वह यह समझ ही नहीं पाए कि उनके सामने बैठा एक कद्दावर राष्ट्रीय नेता उनके साथ सड़कछाप राजनीतिक मक्कारी का खेल खेलने आया है। 

यही कारण है कि उन्होंने देवेन्द्र फणनवीस को शपथ लेने के कुछ क्षणों बाद ही बधाई देने में कोई संकोच नहीं किया था। जबकि येदियुरप्पा ने जब जबरिया सरकार बनाई थी तो प्रधानमंत्री ने उस समय बधाई देने के बजाय मौन साधे रखा था।

जहां तक मैंने देखा जाना समझा है, उस हिसाब से नरेन्द्र मोदी से सम्भवतः पहली बार इतनी बड़ी राजनीतिक चूक हुई है। इसका कारण भी सम्भवतः यही है कि दो कद्दावर राष्ट्रीय नेताओं के मध्य हुई वार्ता और विश्वास का उपयोग दोनों में से एक नेता द्वारा इतने निम्न स्तर की राजनीतिक नंगई के लिए किया जाए, ऐसा घृणित राजनीतिक उदाहरण देश ने इससे पहले कभी देखा सुना नहीं था। 

इसीलिए कल मैंने लिखा था कि महाराष्ट्र का घटनाक्रम देवेन्द्र फणनवीस का राजनीतिक नौसिखियापन या उनकी अनुभवहीनता का परिणाम नहीं है। यह घटनाक्रम अजित पवार की भी किसी धूर्तता का परिणाम नहीं है। वह तो मात्र एक मोहरा था जिसे शरद पवार ने आगे बढ़ाया था। यह पूरा घटनाक्रम राजनीति के उच्चतम स्तर पर निम्नतम स्तर की सड़कछाप  राजनीति के घटिया हथकंडे आजमाने अपनाने की शरद पवार की घिनौनी करतूत का ही परिणाम था। अपनी इस करतूत से शरद पवार ने राजनीति की दुनिया मे व्यक्तिगत सम्बन्धों पर विश्वास की कितनी अनमोल पूंजी गंवा दी है। इसका अनुभव जब शरद पवार को होगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री मोदी ऐसे सबक कभी भूलते नहीं हैं। प्रतीक्षा करिये, शरद पवार द्वारा सिखाए गए इस सबक को प्रधानमंत्री मोदी चक्रवृद्धि ब्याज के साथ वापस शरद पवार को लौटाएंगे। अपनी करतूतों से शरद पवार प्रधानमंत्री मोदी को वह अवसर शीघ्र ही प्रदान करेगा।"

 मेरी पोस्ट का उपरोक्त अंश मेरे विचार से उन दुःखी आत्माओं को शांति प्रदान करेगा जो पिछले 2 दिनों से "डील हो गयी... डील हो गयी..." का हंगामा हुड़दंग कर रही हैं।


 शरद पवार को अब मोदी डर सता रहा है, ओ जानते है,, अब मोदी छोड़ने वाला नही है। अब पहले लोगो के सामने पूरे कपड़े उतार देगा, ओर अगले 15-20 साल तक पवार के खानदान का कोई भी नेता फिर न तो राजनीति ठीक ढंग से कर पायेगा, न काभि किसी के साथ इस तरह की नीच ,हरामी राजनीति कर पायेगा।

 बस यही डर अस्पताल ले गया शायद उन्हें अब।

गुरुवार, 25 मार्च 2021

POST BY MR PRABEER BASU,(IAS)


 *First and foremost, I do not write on 'political' issues. I write on 'national' issues. For example, I have no opinion on whether Rahul Gandhi should be President of his party or not. Similarly, I have no views whether BJP is a better party than Congress or vice versa.* 

*Even after 36 years in the IAS I have no MLA, MP or anyone involved in politics whom I can classify as my friend or even acquaintance. So, naturally I don't care which party wins or loses as long as the winning party runs an honest government doing good to my nation.*

*Now, why I speak in favour of Shri Modi:*

*1. Ever since the beginning of my service I realised that Planning Commission was not serving any useful purpose. I wanted it abolished. This PM did it.*

*2. I always felt that our tax structure is outdated. When I was posted as Commissioner, Commercial Tax in Bihar I understood the need for this even more. I tried my own for some rationalisation. But that was just local tinkering. I was happy when VAT came. But GST was the best thing that could happen. So, I was happy.*

*3. I could never digest from my childhood Nehru's decision to give a special status to J&K. Then as I grew up I heard the stories of corruption, then pogrom against Kashmiri brahmins by these netas in J&K. Crores of rupees were being drained in J&K for nothing. So when PM removed this special status and our MEA did an outstanding job in shutting up Pakistan and China on this issue, I was very very happy. बन्दे मे है दम I realised.*

*4. I used to feel extremely angry everytime Pakistan sent terrorists and killed our jawans. This PM taught those bastards a lesson by URI and Balakot mission and continued to kill these rats emerging from tunnels in Kashmir.*

*5. My family had suffered mentally, physically, psychologically, financially due to the partition of Bengal and subsequent ill treatment in east Pakistan. Those non-muslims left behind in Pakistan, Bangladesh, Afghanistan, parts of 'real' India, had and are continuing to have, a miserable time on a daily basis. PM brought CAA and gave them the loving assurance that India will take them back in the family. At last one man, Shri Narendra Modi understood our pain and suffering.*

*6. My constant worry was the weaknesses of our armed forces due to successive governments dilly-dallying in upgrading our defence technology, equipments, armaments. This PM put that on a fast track. Not only that, he focused on developing infrastructure - roads, bridges, tunnels- in our border areas. I feel safe now. Earlier I was not.*

*7. Amarjit my friend has told me the tremendous amount of rural development work that has been got done by this PM. Amarjit should know because he was the Secretary, Rural Development and now Advisor in the PMO.* 

*8. I always felt that it is a shame that in certain parts of the country women have to walk miles to get water. The Water mission has been introduced to address this issue and results are showing.*

*9. Most news channels and news papers carry on a constant diatribe against Shri Modi. He does not react. He showed extreme tolerance when for months together protestors blocked roads in Shahinbag. Same patience being shown in the farmers' agitation. That shows democratic spirit.*

*10. The officers he has chosen to assist him, Dr P K Mishra, Bhaskar Khulbe, P K Sinha, Amarjit Sinha in PMO, Rajiv Guaba as Cabinet Secretary, Bharat Lal for his Water Mission, Shakti Kant Das as Governor, RBI, and various other officers in key positions are known for their integrity, brilliance and delivering capacity. It can't get better than this.*

*11. He has chosen outstanding ex-civil servants as Ministers in his cabinet.* 
*My friend R K Singh is in independent charge of Power and MNRE. His contribution is visible to all. S Jaishankar, a brilliant career diplomat is Foreign minister. Another career diplomat has been made Civil Aviation minister. So, he is drawing the best talents to run government.*

*12. This PM avenged our humiliation of 1962 by giving a sound thrashing to the chinese soldiers at Galwan. Chinese soldiers are now shit scared to face the Indian army. Further proof of their humiliation came yesterday when Xi changed his army general which was obviously because the previous one got Xi and China humiliated by getting thrashed by our brave soldiers.*

*13. Shri Modi's slogan " न खाऊंगा न खाने दूँगा " is reality now. We civil servants have waited decades after Shashtriji left us in 1965, to have an honest PM. We have him now.*

*Now tell me.If whatever I have ever dreamt for my nation is being done by this PM what is my fault if I like and support him ? "*

*For the last 20 years we have been eating imported pulses.*
*Which Modi ji has cut 2 years ago and now has stopped completely due to Corona ..That is why it is now Rudali, agriculture movement is an excuse.*
*In 2005, the Manmohan government stopped subsidizing pulses in India according to a secret treaty.*
*Only two years later, a new government treaty was formed in which India would import pulses from Canada, Australia and the Netherlands.*

 *In 2005, Canada opened a large lentil growing farm in which most of the Punjabi Sikhs were kept…their organizations were first able to be Gurudwaras and then Khalistanis as managers.*

*So in 2007 there was so much production of pulses in Canada which was called Yellow Revolution.  Because their customers were agents of the mandis of India ..Some of whom are Congress Punjabi families, Maharaja Patiala family and Badal family.*

*Today, the Modi agricultural policy has surgically blocked the income of all these brokers.*

*Now if India is no longer their market, then the amount of money that Canada and other countries have put on these farms [in their countries .. It is not only wasted but unemployment and such a huge market of India went out of their hands.*

*The Congress is the biggest broker in this entire scam.*
*As we have seen CWC VP and CCP VP sign a deal in China for setting up trade, manufacturing in china. At the cost of Indian economy,  labor,  employment,  business just to share riches with its chamchas.* 

*Gave crumbs to the poor thru  NAREGA*

*Modi ji is exposing one of their scams.  They are closing every door to their income.  ....Hi Toba, that's about it.*

*That is why even Canada debates in its bill in Parliament and is threatening BJP to send its Khalistani villagers there to India.Khalistani is the creation of Congress and the favorite of Pakistan.*

*The Home Minister also does not want to raise them because the Congress and others have not been fully exposed yet.*

*spread this message to every citizen of India.*
*Because...* 

*I love India*🙏 🇮🇳 🙏
  
🙏🌹🌹❤🌹🌹🙏

बुधवार, 17 मार्च 2021

शरद पवार+ देवेन्द्र। फारुख+ महबूबा।

देवेन्द ओर शरद नीति? आजकल महाराष्ट्रा की राजनीति में सचिन वझे का केस बहुत हंगामा मचाये हुए है,,, क्या ये मामूली है? या इसमे कितने गुनाह छिपे है,, इसका पता तो NIA लगा ही लेगा। पर इसको में महबूबा मुफ़्ती ओर BJP की सरकार से जोड़कर राजनीति समझने की कोशिश कर रहा, हु। कश्मीर में,, BJP ने महबूबा मुफ्ती के साथ मिलकर सरकार बनाई,, तो बहुत लोगो को अचरज हुआ था। पर ये एक लंबी सोच थी,, ओर नतीजा 2 साल में आगया,, महबूबा मुफ्ती ओर फारुख अब्दुल्ला जैसी राजनीतिक पार्टियां हमेशा के लिए खत्म हो गयी,, हमेशा के लिए। अब आप सोच रहे होंगे, इसका महारष्ट्र के राजनीति से क्या वास्ता? आपको याद होगा 2014 में महाराष्ट्र के चुनाव के बाद, राष्ट्रवादी के शरद पवार ने BJP के बिना माँगने पर भी खुद ही एलान कर दिया था,, के अगर शिवसेना BJP को सरकार बनाने में अड़ंगा कर रही है,, तो हम बाहर से BJP को बिनाशर्त साथ देंगे??,,, क्यो? क्यो राष्ट्रवादी BJP को बिना किसी शर्त के सरकार बनाने में सहयोग के लिए तैयार थी??? केवल एक मकसद ,, के शिवसेना को सत्ता से बाहर रखा जाए,,, ,,,,पर क्यो?? 2014 के बाद भारत की राजनीति पूरी तरह से बदल चुकी है,, ओर 2019 ने तो इस बदली हुयी राजनीति पर मोहर लगा दी,, ओर सभी राजनीतिक पार्टियों को एक बात समझ मे आगयी के अगले 15-20 साल BJP को हराना अब नामुमकिन है। देश जग चुका है,, जनता सोशल मीडिया के माद्यम से ज्यादया जागृत ओर ज्यादया देशभक्त बंनगयीं ओर बनते जा रही है। शरद पवार राजनीति के शकुनि जैसे धुरंदर है। ओ जानते है सत्ता में आना तो दूर की बात,, पर कम से कम विपक्ष में बने रहना जरूरी है। और इसके लिए कोंग्रेस काम नही आने वाली,,, क्योंके अब कोंग्रेस युग समाप्त हो गया है,,,। अगर एक सशक्त विरोधी पक्ष के रूप में अगर राष्ट्रवादी पार्टी को महाराष्ट्र में अपना स्थान बनाये रखना है,, तो शिवसेना को खत्म करना होगा।। क्यो के शरद पवार ये भी जानते थे के शिवसेना को अब ज्यादया दिन BJP झेलने वाली नही,,, ओर फिर अगर BJP ओर शिवसेना एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में होंगे,,, तो शिवसेना विपक्ष के पार्टी के रूप में रहेगी। ( शरद पवार ये बात शायद अबतक समझ चुके थे,, के जनता भले अपक्ष को ओट दे,, पर कोंग्रेस या राष्ट्रवादी को अब काभि नही जिताएगी) अब मुद्दे पर आते है, आज के,,। आज का मुद्दा सबसे ज्यादा तब गरमाया जब देवेन्द्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के विधानसभा में सबूत के साथ सचिन वझे के साथ साथ शिवसेना को नंगा कर दिया। फडणवीस के पास इतने पक्के सबूत ओर इतने जल्द किसने पहुचाये???? बस यही से मामला साफ हो जाता है। मुख्यमंत्री तो शिवसेना के खुद ठाकरे है,,, पर गृहमंत्रालय शरद पवार के पार्टी के पास।,,, तो क्या ये सब सबूत खुद ग्रहमंत्री ने फडणवीस को दिए????? एक बात हमेशा याद रखे,, सामान्य स्तर के पोलिस अधिकारी की इतनी पहोच काभि नही हो सकती ,,के ओ उठे और सीधे सरकारी कागजात किसी पूर्व मुख्यमंत्री को जाकर दे आये। न ही कोई बड़ा पुलिस अधिकारी,,, क्योके उस के तो हर मूवमेंट पर सबकी नझर होती है। पर ये काम नेता आसानी से कर सकता है,, खास कर जो सत्ता पक्ष में हो और गृहमंत्रालय संभाल रहा हो,, ओर जो खुद विधानसभा में हाजिर हो🤣 अब आप कहोंगें शरद पवार ने सत्ता में रहते हुए आसानी से शिवसेना क्यो खत्म नहीं कि? इसकी दो वजह थी,,, उस समय इसकी जरूरत नही थी,, अगर उस समय करते तो,, BJP बड़ी पार्टी के रूप में महारष्ट्र में सामने आती,, ओर उस समय शिवसेना आदरणीय बालासाहेब ठाकरे जैसे सबसे सशक्त नेता के पास थी। अब एक बात पे ओर गौर करे। शिवसेना की स्थापना से लेकर 2019 तक,, शिवसेना के ठाकरे परिवार का सबसे स्ट्रांग पॉइंट क्या था? उनका ये वादा के हमारा परिवार काभि भी सत्ता में कोई पद नही लेगा। अगर खुद ही मुख्यमंत्री बनाना होता तो, आदरणीय बालासाहेब ठाकरे कई बार बन गए होते। शरद पवार ये बात भली भांति जानते थे, के अगर शिवसेना को नंगा करना है जनता के सामने या पूरी तरह से खत्म करना है,, तो जड़ से समाप्त करने के लिये खुद ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाना जरूरी है। और इसीलिए शिवसेने की माँग न होते हुए भी, खुद उद्धव ठाकरे की इच्छा न होते हुए भी शरद पवार ने यही माँग की के खुद ठाकरे मुख्यमंत्री बने,, ओर इसमे उनके सबसे ज्यादा काम आया नोसिखिया संजय रावुत।🤣 संजय रावुत को थोड़ी हवा क्या भर दी शरद पवार ने,, ये गुब्बारे की तरह फूल गया,, ओर बिना किसी दिशा के उड़ने लगा,,, इसे समझ मे काभि नही आया के इसके अंदर की हवा भी शरद पवार की है,, ओर इसे हवा में इधर उधर उड़ाने वाली हवा भी शरद पवार की है।🤣🤣 बस इसके चक्कर मे ठाकरे परिवार आगया। बाप मुख्यमंत्री और बेटा सीधा पर्यावरण मंत्री( जबके हैसियत ओर काबलियत नगर सेवक की भी नही) बेटे को यँहा ज्यादया दोष नहीं दे सकते,, उस बेचारे को राजनीति की इतनी परख ही नही,, कोई भी बेटा होता तो वही करता जो उसने किया* में हमेशा उसका पक्षधर ही रहूंगा) क्योके,, पवार जैसे शकुनि राज्यकर्ता को आजतक कोंग्रेस वाले काभि समझ न पाए,, जिसे शरद पवार ने खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी,,, जंहा रावुत जैसे शिखण्डी फस गए,,, वँहा आदित्य जैसे अभिमन्यु का फसना तय है। शिवसेना हिन्दू के खिलाफ करा कर,,, उनकी खण्डनी पार्टी को जनता के सामने लाकर,,,,, शरद पवार ने सचिन वझे नाम की कील शिवसेना के ताबूत पर ठोक दी है। देखना भविष्य में अब जब भी चुनाव होंगे,, महाराष्ट्रा में केवल दो पार्टियों के बीच होंगे,, राष्ट्रवादी ओर BJP। ओर विपक्ष का पद पवार खानदान के पास ही रहेगा,, ओर शिवसेना फारुख अब्दुल्ला ,, महबूब मुफ़्ती की तरह इतिहास में जमा होजाएगी,, क्योके हिंदुओ के लिए अब BJP पर्याय बहुत स्ट्रांग रूप में सामने उपलब्ध है। 🇮🇳🇮🇳जयहिंद🇮🇳🇮🇳

सोमवार, 15 मार्च 2021

मुम्बई: कौन कौन खत्म होगा???

मुम्बई केस में कई बड़े पुलिस अधिकारी और मंत्री जेल जा सकते है

 ये केस इतना छोटा नही, के पुलिस इंस्पेक्टर ने खुद अम्बानी के घर के सामने गाड़ी में विस्फोटक रखे,,, या किसी की हत्य्या कर दी,, ओर अम्बानी को महज 5000 करोड़ की खण्डनी( फिरौती) माँगी 
  ये केस है भारत में विश्व स्तर पर  बढ़ती हुयी अर्थव्यवस्था और प्रगति को रोकने का

 अब इस मामले में नागरे जैसे राष्ट्रवादी की पुलिस अधिकारी,, मुम्बई के कमिश्नर,,  कई सत्ता में बैठे मंत्री, ओर महारष्ट्रा के बड़े बड़े नेता के होश ठिकाने आजायेंगे जिन्होंने विदेशी ताकतों के साथ मिलकर अपने छोटे राजनीतिक फायदे के लिए देश को बेचने की कोशिश की।
 ये लोग ये भूल गए के केंद्र में अब न तो कोंग्रेस जैसी देशद्रोही पार्टी बैठी है,, जो चीन को देश बेच कर पैसे कमाए, या भारत का ग्रहमंत्री चिंदम्बरम जीसा कोई उल्लू का पट्ठा जो खुद नकली नोट छापकर देश बेच दे|
 केंद्र में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री है,, जो दूसरे देश की सीमा में घुसकर  ठोकता है,, ओर भारत का ग्रहमंत्री ओ मोटाभाई है जो हलक से कलेजा निकाल लेता है,,, ऊपर से NIA उस  डोभाल जैसे कि हात में है,, जो इजरायल के मौसाद को टक्कर दे।
  अब महाराष्ट्र के राजनीतिक और पुलिस प्रशाशन में बैठे गद्दारो की खैर नहीं।
 अब बहुत जल्दी ये माँग भी न उठे एक देश एक पुलिस, ताके राज्य के गद्दारो को कोई  ~पवार~ पावर  ही न रहे,,। अब देश को भी किसी भी गद्दार के प्रति न महबूबा बनकर ममता नही दिखानी चाहिए।

क्या मुस्लिम देशभक्त होते है?*

 *क्या मुस्लिम देशभक्त होते है?* *9 मई काला दिवस जाहिर पाकिस्तान में*  अब हम ऊपर के दोनो मुद्दे को एक दूसरे से जोड़कर निर्णय ले सकते है  194...