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गुरुवार, 21 जनवरी 2021
नेताजी सुभाषचंद्र बोस सर्वश्रेष्ठ महामानव
23 जनवरी को नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जयंती है। इस पावन पर्व पर इस बार पूरा भारत देश इस दिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने जा रहा है। हम भारतीयों कोंग्रेसियो ने नेताजी के विषय मे सिर्फ और सिर्फ 1945 तक ही बताया, या पढ़ाया है। पर क्या आप लोग जानते हो 1945 से 1985 तक का जीवन नेता जी ने कैसे गुजारा?
में लोगो के कई सवालों के जवाब व्हाट्सएप के माध्यम से कई सालों से दे रहा था। उनके कुछ अंश आपके जानकारी हेतु नीचे डाल रहा हु। यही एक तरीका है, भारत के उस महान, सर्वश्रेष्ठ सपूत के प्रति एक छोटासा योगदान
1) *नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु 18 ऑगस्ट 1945 को हुई ही नही*
नेताजी की मृत्यु का सच जानने के लिए कई कमीशन बैठे, पर कोई निर्णय नही,,
शाहनवाज कमीशन
,शाहा कमीशन, कोंग्रेस ने बिठाए थे,, जिन्होंने सरकार के हिसाब से रिपोर्ट पेश कर दी थी,, बिना कोई तथ्य के,, जिसे जनता ने नाकारा था।
बादमे मुखर्जी कमीशन ने की। जो भारत के बाहर भी गए,, ओर प्लैन क्रैश की कहानी झूठी है ये रिपोर्ट दी। ओर उस कमीशन ने ये कँहा गया है, के, प्लेन क्रैश थेरी झूठी ओर गढ़ी गयी हुयी है।
*वजह*
1) जिस प्लेन क्रैश की बात बताई गई और जिस देश मे हादसा हुआ,उसी देश ने अब हमें लिखित में दिया के ,उनके देश मे 18 ऑगस्ट तो क्या 1 ऑगस्ट से 30 सेप्टेंबर 1945 तक कोई प्लैन क्रश हुआ ही नही।
2) उस प्लैन में उस समय जितने भी पैसेंजर बताए गए थे,,ओ सब जीवित बचे थे/ है।
3) जो अस्थिया जापान के अंदर रखी है ओ दरअसल जपान के अधिकार में नही जपान में स्थित हमारे राजदूत के अधिकार में है, ओर रेन्कुजी मंदिर में रखी है,, पर सरकार ने आजतक उसका DNA टेस्ट नही किया। ओर दरअसल ओ अस्थिया एक जापानी सैनिक की है।
4) सुभाषचन्द्र बोस भारत मे आगये थे और गुमनामी का जीवन बिता रहे थे,, जिन्हें लोग भगवानजी या गुमनामी बाबा के नाम से जानते थे ,ओ कभी भी सामने नहीं आये, हमेशा से परदे के पीछे ही रहे, 16 सितंबर 1985 को उनकी मृत्यु हो गयी।
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2) एक कमीशन बिठाया गया था गुमनामी बाबा के मृत्यु के उपरांत के गुमनामी बाबा कौन थे,? ये जानने के लिए।
पर ओ कमीशन भी असफल रहा ,बताने में के गुमनामी बाबा कौन थे। पर उस के जज ने बादमे एक इंटरव्यू में कँहा के शतप्रतिशत गुमनामी बाबा, उर्फ भगवानजी ,,ही सुभाषचंद्र बोस थे। पर ये जांच के समय मेने महसूस किया। पर पक्के सबूत की न होने की वजह से,,
गुमनामी बाबा के घर से जो भी हजारो चीजे मिली जो अब अयोध्या के जिल्हा ट्रेझरी में रखी है, ओ सब सुभाभचन्द्र बोस की ही है, ये सिद्ध होगया है( ये वही ट्रेझरी है जिसमे राममंदिर के सारे सबूत रखे है,)
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3) मोदी सरकार ने ओर बंगाल की सरकार ने काफी गोपनीय दस्तावेज 2016 के बाद सार्वजनिक किए पर IB के पास की 77 फाइलें अभी भी सार्वजनिक नहीं कि,,
सरकार ने RTI के तहत जवाब दिया के अगर ओ फाइलें सार्वजनिक की तो देश मे ओर दुनिया मे बवाल मच जाएगा ( सरकार इसी लिए ओ अस्थियों का भी DNA टेस्ट नही कर रही)
पर लोग अब भी कोशिश कर ही रहे है,,
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4) अगर किसी को मुखर्जी कमीशन की रिपोर्ट चाहिए तो में दे दूंगा।
7 Nov 2007 को जस्टिस मुखर्जी ने अपनी ये रिपोर्ट भारत सरकार को सोप दी, जिसमे उन्होंने ये कँहा
1) *सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु हुई है, मतलब जब ये रिपोर्ट लिखी जा रही तबतक ( यँहा ये याद रहे के उनकी मृत्यु 16 sep 1985 को हुयी)*
2) *पर उनकी मृत्यु प्लेन क्रैश में नही हुयी( जैसा अबतक बताया जा रहा था)*
3) *जापान के रैंकोजी मंदिर में रखी अस्थिया सुभाषचन्द्र बोस की नही है*
4) *निश्चित मृत्यु के पक्के सबूत नहीं है*
5) *सरकार चाहे तो नेताजी के निश्चित मृत्यु के बारे में आगे जांच पड़ताल कर सकती है, क्यो के नेताजी की मृत्यु प्लेन क्रैश में नही हुयी*
*ये है सुप्रीमकोर्ट के जज का निर्णय( रिपोर्ट) जो उन्होंने 2007 में जब कोंग्रेस की सरकार थी ,सरकार को सौप दी थी*
उसके बाद भारत सरकार को अबतक समय नही मिला, उस इंसान के विषय मे जांच करने का, जिनके वजह से हमे आझादी मिली, जो आझाद भारत का असल मे पहला प्रधानमंत्री ,पहला राष्ट्र्पति ओर पहला भारतीय सेना का उच्चतम कमांडर था
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5) *नेताजी का जन्म 23 January 1897*
1945 से लेकर 16 सप्टेम्बर 1985 मृत्यु की समय तक नेताजी ने गुमनामी में उत्तर प्रदेश के अलग अलग शहरों में समय बिताया।
हमे पढ़ाया गया के रशिया की सीक्रेट सर्विस केजीबी, ब्रिटेन की एम आई अमेरिका की सीआइए सबसे श्रेष्ठ है, हर चीज का पता लगाने में। पर नेताजी की सीक्रेट सर्वीस उनसे कई आगे रही हमेशा,, नेताजी को जीते जी कोई भी न पकड़ पाए न जान पाए।
नेताजी ने अपने कार्यकाल में आझाद हिन्द की स्थापना की, ओर 80000 से 100000 संख्या वाली फ़ौज खड़ी कर दी थी। 1942 से 1943 तक,ओर इनमें अधिकतर ओ भारतीय सैनिक थे जो दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश आर्मी की तरफ से लड़ते लड़ते विश्व के अलग अलग देशो में, जैसे, फ्रांस, जर्मनी, जापान राशियां में पकड़े गए थे। जिन्हें युद्धबंदी कहा गया था,, नेताजी ने इन्हें जापान जर्मनी के तत्कालीन शाशको से मुक्त कराके , एक विशाल सेना अंग्रेजो के खिलाफ खड़ी कर दी,, जिनका नारा था,, चलो दिल्ली।
कई जगह अंग्रेजो को हराकर ये सेना ब्रह्मदेश तक अपनी विजय यात्रा तय कर रही थी, जिसका साथ, जपान- जर्मनी दे रहे थे।
नेताजी ने 1943 में आझाद भारत की घोषण कर दी थी, ओर ओ आझाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति, प्रथम प्रधानमंत्री, ओर प्रथम सेना प्रमुख बन गए थे, इस आझाद भारत को विश्व के कई देशों ने मान्यता भी दे दी थी
इसि आझाद भारत की, अपनी बैंक भी थी और करंसी भी थी और इसकी अपनी *सीक्रेट सर्विस भी,* ये विशेष है।
पर अचानक दूसरे विश्वयुद्ध के रुख 1945 को बदल गया जब अमेरिका ने जापान के दो शहरों ,हिरोशिमा ओर नागासाकी पर बम्ब गिराए
ओर तब जापान ने सरेंडर करने की बात कही,,, तब नेताजी को तत्कालीन जपान के प्रधानमंत्री ने बुलाकर उनके बारे में पूछा,, तो नेताजी ने कँहा ,हम सरेंडर नही करेंगे, हम अपनी लड़ाई जारी रखेंगे ,पर अब कुछ दिन के लिए हमे भूमिगत होना पड़ेगा।
ओर तब जापान की सरकार ने नेताजी की मदत की, प्लेन क्रैश की नकली थ्योरी रची गयी ओर फैलाई गयी। के सुभषचंद्र बोस की मृत्यु हो गयी।
पिछले 40 साल अमेरिका, ब्रिटेन और रशिया की सीक्रेट सर्विस खोज करती रही नेताजी की, के पकड़ में आजाये,, पर सब असफल रहे
अगर नेहरू की जगह नेताजी को भारत की बागडोर मिलती तो,, न जिन्ना की चलती, न नेहरू की,, ओर न भारत के टुकड़े होते
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6) कोंग्रेस ने जनता के दबाब में कई इंक्वायरी कमीशन अपने चमचो के अध्यक्षता में बिठाए जिन्होंने भारत मे ही बैठकर रिपोर्ट बनाई और कह दिया के प्लेन क्रैश में नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 को होगयी,, इन सारे कमीशन को जनता ने सिरे से नाकारा ओर कोंग्रेस सरकार ने स्वीकारा
पर देश मे तब ज्यादा हंगामा मचा जब गुमनामी बाबा,उर्फ भगवानजी,उर्फ नेताजी सुभाषचन्द बोस की मृत्यु 16 सितंबर 1985 में अयोध्या में हुई, ओर सरकार ने बड़े गोपनीय तरीके से सरयू नदी के घाट पर जल्द बाजी में उनका अन्तिमसंस्कार कर दिया
गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी उर्फ नेताजी के कमरे की जब तालाशी ली गयी तब उनके घर से बड़े बड़े 27 बक्से मिले और उसमे नेताजी का सारा सामान
👆👆 मुखर्जी कमीशन की रिपोर्ट
2007 में केंद्र को दी गयी जब फिर कोंग्रेस सरकार थी और शिवराज पाटिल जैसा निक्कमा चमचा गृहमंत्री था
ये ओहि शिवराज पाटिल है जब मुंबई में आतंकी हमला हुआ और कमांडो दिल्ली में प्लेन में सवार होकर बैठे थे तो इसने जानबूझकर 4 घंटे प्लेन को मुम्बई के लिए उड़ाने की इजाजत नहीं दी थी
ओर जानबूझकर मुम्बई में ओपरेशन को देरी कर दी थी।
इस कोंग्रेस के सरकार ने बिना पढ़े ,शिवराज पाटिल ने मुखर्जी कमीशन को नाकार दिया,
*पर भारत की जनता ने इसे स्वीकार किया है*
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7) दुनिया की सबसे बड़ी हैंडराइटिंग एजंसी जो भी अमेरिका में CIA के लिए काम करती है, उनके पास 1945 से पहले के सभाषचंद्र बोस के लेटर ओर 1975 के बाद गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी ने लिखे पत्र भेजे गए थे पिछले साल
उन्होंने रिपोर्ट दी के दोनों हस्ताक्षर एक ही आदमी के है
ये इस न्यूज़ का मतलब है।
मुखर्जी कमीशन को अटल बिहारी वाजपेयी ने सुभषचंद्र बोस से सम्भदित लगभग 700 गोपनीय फाइलें दी थी,, ऊपर से ये लिखा था, *कुछ बहुत महत्वपूर्ण फाइलें इंदिरा गाँधी ने अपने घर के आफिस पर ले गयी थी,, जो उन्होंने उनके सचिव महोम्मद यूसफ़ के घर भेजी, जो वापस नहीं आयी*
उस फाइलों मेसे एक फाइल में नेहरू के सचिव मथाई का 1954 में नेहरू को लिखा एक पत्र( नोट) भी था जिसमे ओ नेहरू को लिख रहे है,के हम तो पहले ही सुभाषचन्द बोस की अस्थिया लेकर आये, भारत मे,तो,,,??
जस्टिस मनोज मुखर्जी जांच पड़ताल के हेतु ब्रिटेन भी गए थे, नेताजी सुभाष जी की गोपनीय फाइलें देखने,पर तब के तत्कालीन चांसलर लेविन ने कहा ,नेताजी से सम्भदित फाइलें अत्यंत गोपनीय है, ओर ब्रिटेन सरकार ओ सिर्फ 2021 को ही डि-क्लासिफाई करेगी
जस्टिस मुखर्जी ने ताइवान ओर ताइहोकू भी विजिट की जंहा प्लेन क्रैश होने का ओर अस्पताल में मौत और वही अन्तिमसंस्कार की थेरी कोंग्रेस ने मानी थी, पर वहां की सरकार ने लिखित में दे दिया उस महीने हमारे देश मे कोई प्लेन क्रैश ही नही हुआ,, ओर जब उन्होंने उस अस्पताल में उस क्रिरियशन मे विजिट की( ओ अस्पताल आज भी है) तो उन्होंने बताया उस महीने में सिर्फ एक ही आदमी मरा था जिसका नाम ओचिरो अंकुरा है जो एक जापानी सैनिक था, ओर उसका ही अन्तिमसंस्कार हुआ था
मुखर्जी ने आगे जांच पड़ताल के लिए उस समय के डॉ सरुता को बुलाया ,ओर उनसे पूछा के , आपने सुभाषचंद्र बोस का डेथ सर्टिफिकेट कैसे issu किया ,,तो पहले उसने आनाकानी की फिर जब जस्टिस मुखर्जी ने पूछा के अगर सुभाष की मौत 1945 में हुई तो आपने 1988 को डेथ सार्टिफिकेट कैसे दिया, ओ भी 13 Aug की तारीख डालकर,, उसने कमीशन के सामने तो कुछ भी सफाई नहीं दी,, पर रात में जस्टिस मुखर्जी को होटल में मिलकर कँहा,,, सर उस समय मतलब 1988 में मुझपर आपकी सरकार से बहुत दबाब। डाला गया और एक मोटी रक्कम मुझे दी गयी,, थी,, मैंने उसे स्वीकार कर के,,,,
जस्टिस मुखर्जी रशिया भी गए,, पर उस वक्त कोर्लिस नीरो जो असल मे मदत कर सकते थे इस केस में उनका तबादला टर्की के अंकारा शहर में हो गया था,, ओर रशिया ने अपने गोपनीय दस्तावेज दिखाने से मना किया( सरकार के लेवल पर ही ये हो सकता है) कारलोस नीरो वही अधिकारी है जिसने रशिया के अलेक्झण्डर के मिल्ट्री हेड क्वर्टर में गोपनीय दसतावेज पढ़कर ये बयान दिया था के 1946 में *रशिया के प्रमुख स्टॅलिन अपने मिल्ट्री कमांडर से वार्तालाप कर रहे थे के, सुभाषचन्द्र बोस को कँहा रखा जाय*
कोर्लिस नीरो 2015 में जब रशिया वापस आये तो डिस्कवरी चैनल वालो ने उनसे पूछा था तो ओ अपने बयान पर कायम है
सिर्फ भारत के लोग ही नही रशिया के लोग भी चाहते है भारत सरकार और रशिया सरकार नेताजी सुभाषचंद्र बोस की सत्य जानकारी अब दे दे, सेंट पीटर्सबर्ग में इसी मिशन के तहत एक बड़ा रेस्तरां खोला गया जिसका नाम *🇮🇳 जयहिंद 🇮🇳* है
लोग आते जाते एक दूसरे को जयहिंद कहते है वहाँ
जिनकी वजह से आझादी मिली ,उनके बारे में भारत की जनता ही जानती नही
15 ऑगस्ट 1945 को जब भारत के आझादी के पेपर पर हस्ताक्षर किए जा रहे थे तो ब्रिटेन की तरफ से तत्तकालीन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लिमेण्ट रिचर्ड एट्ली ने किए थे,,
यही एटली ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जस्टिस पीबी चक्रबोर्ती के बीच 1956 में हुई साक्षत्कार में कँहा जब उनको पूछा गया,, के आप ने इतनी जल्दबाजी में भारत को आझादी देना का फैसला क्यो किया, तो उन्होंने कँहा था *सुभाषचन्द बोस की वजह से*
तो चक्रवर्ती ने उन्हें दूसरा सवाल पूछा था,, फिर आझादी में महात्मा गाँधी का योगदान?
उन्होंने कँहा था झिरो
अब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने इतना बड़ा सत्य क्यो कहा?।
क्यो डर गयी थी ब्रिटेन की इतनी बलाढ्य सरकार,,, नेताजी से,,,,,
आप को ये जानकर शर्मिदंगी होगी के पाकिस्तान ने आझाद हिन्द सेना के सभी सैनिक जो पाकिस्तान चले गए थे पूरे सन्मान के साथ अपनी सेना में भर्ती कर लिया
पर नेहरू ने मतलब भारत सरकार ने कभी नही किया।
इसमे से एक हबीब उल रेहमान जो पाकिस्तान चला गया था,, सेना में उच्च पद पर गया,, ओर ये वही कमांडर है जिसने POK लेने में पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पर जबतक ये नेताजी के साथ था, ओर भारत विभाजन नही हुआ था,, ये सच्चा सिपाही था,,
पाकिस्तान ने इसे कई अवार्ड से नवाजा।
पर हमने आझाद हिन्द सेना के सैनिको को बादमे भूखा मरने के लिए छोड़ दिया।
नेहरू ब्रिटेन का चमचा बन गया था, PM बनने के चक्कर मे
गाँधी 1942 में नेताजी की तरफ झुक गए थे,, इसलिए उन्होंने जीवन मे पहली बार अहिंसा छोड़कर नेताजी का रास्ता अपनाना चाहा, 1942 में भारत छोड़ो, पूर्ण स्वतंत्रता का नारा देकर कँहा था *करो या मरो* का नारा दिया ,,,पर चूंकि उनको एसे आंदोलन का अनुभव नहीं था,, तो अंग्रेजो ने 4 महीने के भीतर ये आंदोलन खत्म करवा दिया,, सारे कांग्रेस के नेताओ को जेल में डाल दिया था,, गाँधी जी को भी
4 महीने के भीतर ये आंदोलन अंग्रेजो ने समाप्त कर दिया।
नेहरू जी को, ओर बहोत से कोंग्रेस के नेता को तो जेल में रहने की आदत थी नही।
आप इस बात पर गौर करो 1942 के बाद किसी भी कोंग्रेस ने कभी भी न स्वतंत्रता की बात कही, न अंग्रेजो को भारत छोड़ने के लिए कँहा ( देख लो इतिहास के पन्ने 1942- 1947 तक)
मेरे खयाल से जेल से ये सब तभी बाहर छोड़े होंगे अंग्रेजो ने जब इनसे शपथ पत्र पर लिख लिया होगा, दोबारा अंग्रेजो के खिलाफ मुँह भी नही खोलेंगे😀
तभी तो इंगलड के प्रधानमंत्री ने 1956 में कँहा,, भारत को स्वतंत्रता दिलाने में गाँधी का योगदान 0%
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8) में लगातार कई सालों से नेताजी को जानने का प्रयन्त कर रहा था, क्योकि पता नही क्यो बचपन से ओ खून के बून्द बून्द में समा से गये थे,,,, ओर जब में खुद सेना में था तो स्वाभाविक हुआ के भारत के प्रथम सेनाध्यक्ष कहो सेनानायक कहो, महामानव कहो, महाकाल कहो, उस नेताजी के विषय मे जंहा से ज्ञान मिले लेने का प्रयास करता रहा
असली ज्ञान सबूतों के साथ मुखर्जी कमीशन की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद, ओर बाकी की जानकारी मोदी सरकार ने PMO कार्यालय में रखी सभी फाइलें डि क्लासिफाइड कर के 2016 में सार्वजनिक कर दी,,,( अभी भी इंटलॉजियन्स बिरों की फाइल, नही खोली जनता के लिए)
ओर फिर अचानक मुझे एहसास हुआ क्या मेरे कुछ देशभक्त मित्र, उनके बारे में पूरा तथ्य जानते है?
तब मैंने सोचा में कम से कम 15- 20 मित्रो को इससे अवगत करा दु,, तो भी थोड़ा उनके प्रति कुछ योगदान होगा,,,
पिछले 35 साल पूरे भारत मे कुछ देशभक्त इस काम मे लगे है,
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9) ये है विष्णु सहाय कमीशन की पूरी रिपोर्ट
गुमनामी बाबा कौन थे, ये पता करने के लिए
पर ये नाकामियाब रहे ये पता करने में, की कौन था ये शख्स,,
ये है भारत का आज का विज्ञान और शाशन का तंत्र
जिस भारत मे एक आदमी पिछले 30 साल से रहा और उसकी मृतु भी होगयी भारत मे ही,, ओ कौन था? इसका पता लगाने में भारत सरकार फेल होगयी??
ये थी उस आदमी की ताकद, जिसने विश्व की सारी सुरक्षा एजेंसी को पसीने छुड़ा दिए,, ओर उसने ये साबित कर दिया के ,, सीबीआई, आइबी, रॉ,, तो क्या,, ओ ,,, *सीआईए,, केजीबी,, मोसाद का भी बाप था*
योगी जी का एक समझ नही आया,, ओ भी जानते है के गुमनामी बाबा ही सुभाषचन्द्र बोस थे,, तो उन्हें अबतक केंद्र सरकार को क्यो नही कँहा के इसकी जांच सीबीआइ से हो???
सुशांत के चक्कर मे तो पूरे भारत की एजंसी लगा दी,, फिर गुमनामी बाबा के लिए क्यो नही???
आपको ये भी बता दु अब 2019 से गुमनामी बाबा का मामला फिर तूल पकड़ गया,, क्योकि उनके दांत की DNA रिपोर्ट ही गलत दी गयी ये देश के बड़े बड़े साइंटिस्ट ने साबित कर दिया है,,
तो क्या DNA रिपोर्ट देने वाली कलकत्ता ओर हैदराबाद की संस्था 2016 के बाद भी कोंग्रेस या विपक्ष के इशारे पर काम कर रही,,,
ओर अब ये DNA रिपोर्ट देने वाली लैब का झूठ सामने आ ही गया, ओर तो ओर अब DNA टेस्ट करने वाली भारत की उच्चतम लैब कह रही है के उससे सम्भदित रिपोर्ट भी गायब है तो up की वर्तमान सरकार और केंद्र की वर्तमान सरकार क्या कर रही है,
हमने kgb की जासूस इटली की बारबाला को भारत मे भारत की बहू कर के रखा,,, पर अफसोस है मुझे नेताजी की पत्नी Emilie Schenkl को जिसे भारत माता का संम्मान देना चाहिए था,, उसे भारत भी नही आने दिया
साले हरामी नेहरू खानदान
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चमचे जवाहर ने अपने ब्रिटेन के बाप को याने उस समय के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर ये कँहा था👇
प्रिय एटली
मुझे भरोसेमंद स्तोत्रों से ये खबर पता चली है के आपका *युद्ध गुनाहगार सुभाष चन्द्र बोस* को रशिया के स्टॅलिन ने रशिया में आने की इजाजत दी है, रशिया की ये हरकत ब्रिटेन और अमेरिका से किये गए संधि का सरासर भंग है, रशिया की हरकत सरासर गलत है,
आपसे अनुरोध है के, उचित कार्यवाही करें
आपका चमचा
जवाहरलाल नेहरू
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भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के नाते पंडित नेहरू का हम सम्मान करते हैं लेकिन क्या 1943 में स्थापित आज़ाद भारत की प्रथम अस्थायी एवं विदेशस्थ सरकार के राष्ट्राध्यक्ष के नाते सुभाष चंद्र बोस को माना जा सकता है ? इस पर विचार होना चाहिए। और आशा की जानी चाहिए कि इतिहास की भूल को सुधार कर संसद में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव लेकर सुभाष चंद्र बोस को भारत की प्रथम अस्थायी एवं विदेशस्थ सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री का स्थान दिया जायेगा।
सिंगापुर में ही उन्होंने आज़ाद हिन्द फौज की एक प्रकार से पुर्नस्थापना की, क्योंकि 1942 में मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिन्द फौज उसी वर्ष दिसम्बर में विघटित कर दी गयी थी। अब अनेक ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकारें सुभाष बोस के भारत स्वतंत्र कराने के अभियान को मदद देना चाहती थीं पर उनको इसके लिए आवश्यक था एक ऐसा सरकार का ढांचा जिसे वे मान्यता दे सकें। इसलिए सुभाष बोस ने 21 अक्टूबर को हुकूमत ए आज़ाद हिन्द की स्थापना कर स्वयं उसके राष्ट्राध्यक्ष का पद संभाला।
यह भारत की बाहर घोषित भारत की प्रथम स्वतंत्र सरकार थी जिसे ग्यारह देशों ने मान्यता दी- इनमें जर्मनी, इटली, नानकिंग चीन, थाईलैंड, बर्मा, क्रोएशिआ, फिलीपींस, मंचुटो और जापान शामिल थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को मिल रही अंतरराष्ट्रीय सहायता और मान्यता ब्रिटिश सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय थी और भारत को 1947 में मिली आज़ादी का कारण गाँधी जी का अहिंसावादी आंदोलन नहीं बल्कि सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज के बढ़ते कदम थे। 1943 में स्थापित आज़ाद भारत की प्रथम सरकार के राष्ट्राध्यक्ष के नाते भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू नहीं बल्कि सुभाष चंद्र बोस हैं और आशा की जानी चाहिए कि इतिहास की भूल को सुधार कर संसद में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव लेकर सुभाष चंद्र बोस को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का स्थान दिया जायेगा।
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1943 में आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के बाद उनकी सेना ने अंडमान निकोबार द्वीप आज़ाद कराया और उसका नाम शहीद और स्वराज रखा। उसके बाद आज़ाद हिन्द फौज ने मणिपुर में मोइरांग पर कब्ज़ा किया और कोहिमा से दिल्ली की और बढ़ना शुरू किया। 'चलो दिल्ली' का नारा इसी समय दिया गया था। आज भारत की सेना और हर देशभक्त जिस नारे के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं उस जय हिन्द का नारा भी सुभाष चंद्र बोस का दिया हुआ है न कि गाँधी के नकली कांग्रेसियों का। प्रसिद्ध इतिहासकार श्री आरसी मजूमदार ने अपने संस्मरणों में 1947 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमण्ट एटली का बयान उद्धृत किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि 1942 के आंदोलन की असफलता के बावजूद अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र इसलिए किया क्योंकि सुभाष चंद्र बोस के सैन्य अभियान से ब्रिटिश सरकार हिल गयी थी और नौसैनिकों के ब्रिटिश सरकार के खिलाफ होने के संकेत मिल गए थे। गाँधी नहीं, सुभाष थे भारत की आज़ादी के सबसे बड़े कारण। 21 अक्टूबर को प्रधानमंत्री=द्वारा सुभाष बोस द्वारा घोषित भारत की आज़ाद सरकार के 75वीं जयंती के पीछे वस्तुतः तृणमूल कांग्रेस के विद्वान और सुभाष-बोस भक्त नेता श्री सुखेंदु शेखर राय की बड़ी भूमिका है जिन्होंने 10 अगस्त को राज्य सभा में इस मांग को उठाया था और मांग की थी कि प्रधानमंत्री लाल किले से इस दिवस की घोषणा करें और नेताजी संग्रहालय का उद्घाटन इसी दिन करें। इस विषय पर सुधि पाठक जेएनयू के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री प्रियदर्शन मुखर्जी की पुस्तक 'नेताजी सुभाष बोस एंड इंडियन लिबरेशन मूवमेंट इन ईस्ट एशिया' का अध्ययन लाभदायक पाएंगे।
21 अक्टूबर 2018 को प्रधानमंत्री श्री मोदी उसी आरजी-ए- हुकूमत ए आज़ाद हिन्द की स्थापना की 75वीं जयंती लाल किले पर भव्यता से मनाएंगे। सोचिये अगर कांग्रेस का राज होता तो ऐसा हो पाता क्या ?
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पूरबी राय ने मुखर्जी कमीशन के दौरान ब्रिटेन में जाकर रिसर्च किया तो उसको एक ब्रिटेन के अधिकारी ने बताया के नेहरू ने ओर हमने ओ आधा आधा ले लिया था, उस समय उसकी कीमत 70,000 करोड़ थी
😡😡😡😡😡😡
कृपया हर वीडियो को हर msg को शांति से देखे, समझे, ओर पढ़े
ये ओ इतिहास है जो 70 साल छुपा कर रखा गद्दार कोंग्रेसियो ने
में किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थक नही,, पर में कोंग्रेस का बहुत विरोधक हु, ओ इसलिए क्यो के उन्होंने एक सच्चे देशभक्त को बहोत तकलीफ से जीवन जीने के लिए तो बाध्य ही किया पर,, उस देशभक्त का असली इतिहास कभी भी हमारे सामने नहीं आने दिया
*अगर नेताजी सुभाषचंद्र बोस के हात में भारत की बागडोर होती, तो यकीन मानो, भारत हमेशा अंखड भारत ही रहता,, कभी पाकिस्तान , बंगाल हमसे अलग न होता, न कभी भी हिन्दू- मुस्लिम की समस्या होती*
न जिन्ना न नेहरू न अब्दुला खानदान का कोई नामो निशान होता,, ओर भारत उसी समय से दुनिया का नम्बर एक देश होता,, बस यही अंग्रेज कभी नही चाहते थे
आपको ओर ज्यादा इतिहास की खोज करने पर पता चल जाएगा, के नेहरू, जिन्ना, ओर कश्मीर का अब्दुला खानदान एक ही है,, ओर सोची समझी नीति के तहत इन्होंने हिंदुस्थान को आपस मे बाट लिया, जिन्ना ने पाकिस्तान लिया, अब्दुल्ला ने कश्मीर और, नेहरू ने ये भारत
Pkd
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ये पवित्र मोहन राय के बेटे का इंटरव्यू है
जिसने कँहा के उसके पिजाजी ने उसे बता रखा था के भगवानजी ही नेताजी थे।
पवित्र मोहन राय नेताजी के जयहिंद सेना के IB के चीफ थे,,
उनके बेटे का ये कहना है मेरे पिताजी नेताजी के आदेश का मरते दम तक पालन कर गए,, क्यो के नेताजी ने उन्हें कँहा था, मेरे बारे में किसीको कुछ नही बताना
हालके उन्हें फांसी की सजा तक सुनाई गई( पर बादमे उनको छोड़ दिया) तब भी उन्होंने नेताजी के आदेश का ही पालन किया,, ओर किसीको भी नही बताया
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अयोध्या के लोगो ने नेताजी उर्फ गुमनामी बाबा की समाधि खुद बनायी
अफसोस होता है देखकर, जंहा नेहरू को, गांधी ने को, इंदिरा,, राजीव को दिल्ली के महंगे इलाके में कई एकर की जमीन मिली,, वँहा इस देश ने आजतक उस महान आझादी देने वाले शख्श को मरने के बाद भी सन्मान नही दिया जा रहा
ये है हमारे भारतीयों की देशभक्ति😡😡😡
देखो देश का ओ महान सपुत्र कँहा चिरनिंद्रा में लेटा है
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नेताजी का इषु अभी खत्म नहीं हुआ
मोदीजी आने के बाद शुरू हुआ
अगर मोदी सरकार न आती तो,, ओर कई पीढ़िया मर खप जाती पर उस सच्चे देशभक्त के बारे में पता भी न चलता
झूठी प्लेन क्रश थोरी ही हमे पढ़ाई जाती
आज भी भारत मे कई लोगो को कुछ भी पता नही
कितना दुर्भाग्य है,
आप लोग कई व्हाट्सएप ग्रुप में होंगे,, कई फेसबुक पर होंगे,, कई लोग समय समय पर Tv देखते होंगे,,,
सच बताओ तो, क्या आपने कभी सभाषचंद्र बोस के बारे में इतनी जानकारी देखी?
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DGP उत्तर प्रदेश विक्रम सिंग पूरे प्रूफ के साथ कबूल कर रहे है के गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे
ये उस समय मायावती के राज्य में वँहा के DGP थे
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