शनिवार, 1 मई 2021

1 मैं महाराष्ट्र दिन का कोंग्रेस का काला इतिहास

 शिवसैनिक ओर ठाकरे परिवार न देखे🙏 क्यो के इसलिए आदरणीय बालासाहेब जी ने अपने जीते जी कभी भी कोंग्रेस से समझौता नही किया था।  आज उनका पुत्र उसी कोंग्रेस के साथ महज कुर्सी के लिए बिक गया है।


रविवार, 18 अप्रैल 2021

हरामी नेहरू ओर देशभक्त डालमिया :-इतिहास के पन्नो से


 डालडा और नेहरू

आप सोच रहे होंगे डालडा और नेहरू का क्या सम्बन्ध है? उत्तर है, बहुत गहरा। डालडा हिन्दुस्तान लिवर का देश का पहला वनस्पति घी था जिसके मालिक थे स्वतन्त्र भारत के उस समय के सबसे धनी सेठ रामकृष्ण डालमिया और यह लेख आपको अवगत कराता है कि नेहरू कितना दम्भी, कमीना , हिन्दू विरोधी और बदले के दुर्भाव और मनोविकार से ग्रसित इन्सान था।

#टाटा #बिड़ला और #डालमिया ये तीन नाम बचपन से सुनते आए है। मगर डालमिया घराना अब न कही व्यापार में नजर आया और न ही कहीं इसका नाम सुनाई देता है। 

#डालमिया घराने के बारे में जानने की बहुत इच्छा थी -

लीजिए आप भी पढ़िए की #नेहरू के जमाने मे भी १ लाख करोड़ के मालिक डालमिया को साजिशो में फंसा के #नेहरू ने कैसे बर्बाद कर दिया।

ये तस्वीर है राष्ट्रवादी खरबपति सेठ रामकृष्ण डालमिया की , जिसे नेहरू ने झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया तथा कौड़ी-कौड़ी का मोहताज़ बना दिया।

 वास्तव में डालमिया जी ने स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ मिलकर गौहत्या एवम हिंदू कोड बिल पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर नेहरू से कड़ी टक्कर ले ली थी। लेकिन नेहरू ने हिन्दू भावनाओं का दमन करते हुए गौहत्या पर प्रतिबंध भी नही लगाई तथा हिन्दू कोड बिल भी पास कर दिया और प्रतिशोध स्वरूप हिंदूवादी सेठ डालमिया को जेल में भी डाल दिया तथा उनके उद्योग धंधों को बर्बाद कर दिया।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस व्यक्ति ने नेहरू के सामने सिर उठाया उसी को नेहरू ने मिट्टी में मिला दिया।

देशवासी प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और सुभाष बाबू के साथ उनके निर्मम व्यवहार के बारे में वाकिफ होंगे मगर इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने अपनी ज़िद के कारण देश के उस समय के सबसे बड़े उद्योगपति सेठ रामकृष्ण डालमिया को बड़ी बेरहमी से मुकदमों में फंसाकर न केवल कई वर्षों तक जेल में सड़ा दिया बल्कि उन्हें कौड़ी-कौड़ी का मोहताज कर दिया।

जहां तक रामकृष्ण डालमिया का संबंध है, वे राजस्थान के एक कस्बा चिड़ावा में एक गरीब अग्रवाल घर में पैदा हुए थे और मामूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने मामा के पास कोलकाता चले गए थे।

वहां पर बुलियन मार्केट में एक salesman के रूप में उन्होंने अपने व्यापारिक जीवन का शुरुआत किया था। भाग्य ने डटकर डालमिया का साथ दिया और कुछ ही वर्षों के बाद वे देश के सबसे बड़े उद्योगपति बन गए।

उनका औद्योगिक साम्राज्य देशभर में फैला हुआ था जिसमें समाचारपत्र, बैंक, बीमा कम्पनियां, विमान सेवाएं, सीमेंट, वस्त्र उद्योग, खाद्य पदार्थ आदि सैकड़ों उद्योग शामिल थे।

डालमिया सेठ के दोस्ताना रिश्ते देश के सभी बड़े-बड़े नेताओं से थी और वे उनकी खुले हाथ से आर्थिक सहायता किया करते थे।

इसके बाद एक घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया। कहा जाता है कि डालमिया एक कट्टर सनातनी हिन्दू थे और उनके विख्यात हिन्दू संत स्वामी करपात्री जी महाराज से घनिष्ट संबंध थे।

करपात्री जी महाराज ने १९४८ में एक राजनीतिक पार्टी 'राम राज्य परिषद' स्थापित की थी। १९५२ के चुनाव में यह पार्टी लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी और उसने १८ सीटों पर विजय प्राप्त की।

हिन्दू कोड बिल और गोवध पर प्रतिबंध लगाने के प्रश्न पर डालमिया से नेहरू की ठन गई. पंडित नेहरू हिन्दू कोड बिल पारित करवाना चाहते थे जबकि स्वामी करपात्री जी महाराज और डालमिया सेठ इसके खिलाफ थे।

हिन्दू कोड बिल और गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए स्वामी करपात्रीजी महाराज ने देशव्यापी आंदोलन चलाया जिसे डालमिया जी ने डटकर आर्थिक सहायता दी।

नेहरू के दबाव पर लोकसभा में हिन्दू कोड बिल पारित हुआ जिसमें हिन्दू महिलाओं के लिए तलाक की व्यवस्था की गई थी। कहा जाता है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद हिन्दू कोड बिल के सख्त खिलाफ थे इसलिए उन्होंने इसे स्वीकृति देने से इनकार कर दिया।

ज़िद्दी नेहरू ने इसे अपना अपमान समझा और इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पुनः पारित करवाकर राष्ट्रपति के पास भिजवाया। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति को इसकी स्वीकृति देनी पड़ी।

इस घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया। कहा जाता है कि नेहरू ने अपने विरोधी सेठ राम कृष्ण डालमिया को निपटाने की एक योजना बनाई।

नेहरू के इशारे पर डालमिया के खिलाफ कंपनियों में घोटाले के आरोपों को लोकसभा में जोरदार ढंग से उछाला गया। इन आरोपों के जांच के लिए एक विविन आयोग बना। बाद में यह मामला स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिसमेंट (जिसे आज सी बी आई कहा जाता है) को जांच के लिए सौंप दिया गया।

नेहरू ने अपनी पूरी सरकार को डालमिया के खिलाफ लगा दिया। उन्हें हर सरकारी विभाग में प्रधानमंत्री के इशारे पर परेशान और प्रताड़ित करना शुरू किया। उन्हें अनेक बेबुनियाद मामलों में फंसाया गया।

नेहरू की कोप दृष्टि ने एक लाख करोड़ के मालिक डालमिया को दिवालिया बनाकर रख दिया। उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिन्दुस्तान लिवर और अनेक उद्योगों को औने-पौने दामों पर बेचना पड़ा। अदालत में मुकदमा चला और डालमिया को तीन वर्ष कैद की सज़ा सुनाई गई।

तबाह हाल और अपने समय के सबसे धनवान व्यक्ति डालमिया को नेहरू की वक्र दृष्टि के कारण जेल की कालकोठरी में दिन व्यतीत करने पड़े।

व्यक्तिगत जीवन में डालमिया बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उन्होंने अच्छे दिनों में करोड़ों रुपये धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए दान में दिये। इसके अतिरिक्त उन्होंने यह संकल्प भी लिया था कि जबतक इस देश में गोवध पर कानूनन प्रतिबंध नहीं लगेगा वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। उन्होंने इस संकल्प को अंतिम सांस तक निभाया। गौवंश हत्या विरोध में १९७८ में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।


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जागो हिन्दू जागो 

धर्म की जय हो अधर्म का नाश हों ,नेहरु गाँधी परिवार का नाश हों।

शनिवार, 17 अप्रैल 2021

दो दिनार

 


नीलाम_ए_दो_दीनार 👆👆


“नीलाम ए दो दीनार”

हिन्दू महिलाओं का दुखद कङवा इतिहास!

जबरदस्ती की धर्मनिरपेक्षता, भाईचारे को ढोते अक्लमंद हिंदुओं के लिये (इतिहास) 

समय! 

ग्यारहवीं सदी (ईसा बाद)

भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर अभी-अभी राजा जयपाल की पराजय हुई।

पराजय के पश्चात अफगानिस्तान के एक शहर ‘गजनी’ का एक बाज़ार,

ऊँचे से एक चबूतरे पर खड़ी कम उम्र की सैंकड़ों हिन्दू स्त्रियों की भीङ,

जिनके सामने वहशी से दीखते, हज़ारों बदसूरत किस्म के लोगों की भीड़,

जिसमें अधिकतर अधेड़ या उम्र के उससे अगले दौर में थे।

कम उम्र की उन स्त्रियों की स्थिति देखने से ही अत्यंत दयनीय प्रतीत हो रही थी।

उनमें अधिकाँश के गालों पर आंसुओं की सूखी लकीरें खिंची हुई थी।

मानों आंसुओं को स्याही बनाकर हाल ही में उनके द्वारा झेले गए भीषण यातनाओं के दौर की दास्तान को प्रारब्ध ने उनके कोमल गालों पर लिखने का प्रयास किया हो।

एक बात जो उन सबमें समान थी।

किसी के भी शरीर पर, वस्त्र का एक छोटा सा टुकड़ा, नाममात्र को भी नहीं था। 

सभी सम्पूर्ण निर्वसना थी।


सभी के पैरों में छाले थे, मानो सैंकड़ों मील की दूरी पैदल तय की हो।

सामने खङी वहशियों की भीड़, वासनामयी आँखों से उनके अंगों की नाप-जोख कर रही थी।

कुछ मनबढ़ आंखों के स्थान पर हाथों का प्रयोग भी कर रहे थे।

सूनी आँखों से अजनबी शहर, और अनजान लोगों की भीड़, को निहारती उन स्त्रियों के समक्ष हाथ में चाबुक लिए, क्रूर चेहरे वाला, घिनौने व्यक्तित्व का, एक गंजा व्यक्ति खड़ा था।

सफाचट मूंछ, बेतरतीब दाढ़ी, उसकी प्रकृतिजन्य कुटिलता को चार चाँद लगा रही थी।


दो दीनार, दो दीनार, दो दीनार...

हिन्दुओं की खूबसूरत औरतें, शाही लडकियां, कीमत सिर्फ दो दीनार,

ले जाओ, ले जाओ, बांदी बनाओ,

एक लौंडी, सिर्फ दो दीनार,

दुख्तरे हिन्दोस्तां, दो दीनार,

भारत की बेटी का मोल, सिर्फ दो दीनार.. 

उस स्थान पर आज एक मीनार है।

जिस पर लिखे शब्द आज भी मौजूद हैं - दुख्तरे हिन्दोस्तान, नीलामे दो दीनार  

अर्थात वो स्थान - जहाँ हिन्दू औरतें दो-दो दीनार में नीलाम हुईं।


महमूद गजनवी हिन्दुओं के मुँह पर अफगानी जूता मारने, उनको अपमानित करने के लिये अपने सत्रह हमलों में लगभग चार लाख हिन्दू स्त्रियों को पकड़ कर घोड़ों के पीछे, रस्सी से बांध कर गजनी उठा ले गया।

महमूद गजनवी जब इन औरतों को गजनी ले जा रहा था।

वे अपने पिता, भाई, पतियों को निरीह, कातर, दारुण स्वर में पुकार कर बिलख-बिलख कर रो रही थीं। अपनी रक्षा के लिए पुकार रही थीं। लेकिन करोङों हिन्दुओं के बीच से उनकी आँखों के सामने वो निरीह असहाय स्त्रियाँ मुठ्ठी भर निर्दयी कामांध मुसलमान सैनिकों द्वारा घसीट कर भेड़ बकरियों की तरह ले जाई गईं।

रोती बिलखती इन लाखों हिन्दू नारियों को बचाने न उनके पिता बढ़े, न पति उठे, न भाई।

और न ही इस विशाल भारत के करोड़ों जन-सामान्य लोगों का विशाल हिन्दू समाज।

महमूद गजनी ने इन हिन्दू लड़कियों, औरतों को ले जाकर गजनवी के बाजार में भेङ बकरियों के समान बेच ड़ाला।

विश्व के किसी भी धर्म के साथ ऐसा अपमानजनक व्यवहार नही हुआ।

जैसा हिन्दुओं के साथ हुआ।

और ऐसा इसलिये हुआ, क्योंकि इन्होंने तलवार को हाथ से छोड़ दिया।

इनको बताया गया कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ेगा। 

तब भगवान स्वयं उन्हें बचाने आयेंगे, अवतरित होंगे।

हिन्दुओं! भारत के गद्दार सेकुलर आपको मिटाने की साजिश रच रहे हैं।

आजादी के बाद यह षङयंत्र धर्म-परिवर्तन कराने के नाम पर हुआ।

आज भारत में, आठ राज्यों में, हिन्दुओं की संख्या 2-5% बची है।

हिन्दुओं को समझना चाहिये कि,

भगवान भी अव्यवहारिक अहिंसा व अतिसहिष्णुता को नपुसंकता करार देते हैं।

भगवान भी उन्हीं की मदद करते हैं।

जो अपनी मदद खुद करते हैं।

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रविवार, 4 अप्रैल 2021

जागो पुलिस वालों एक होजाओ ओर 170 दुष्टों का संहार करो:-महाराष्ट्रा

 नेता और पुलिस


महारष्ट्र की राजनीति में आज जो भी चल रहा है, ओ केवल दो समुदाय के बीच की लड़ाई है।


 एक समुदाय मात्र 288 लोगो का है,ओर दूसरा समुदाय हजारो में है। पर जीत 288 की ??? क्यो???


  जबकि ये 288 सबसे कमजोर समुदाय है, इनकी उम्र भी केवल 5 साल की है। वही दूसरी तरफ  हजारो की तादात वाला समुदाय जिसकी उम्र लगभग 33 साल । फिर भी ये कमजोर, जानते हो क्यो?


 वही एकता का अभाव, 288 हर हाल में एक रहते है, ओर हजारो वाले बिखरे रहते है।और इन हजारो की तादात  वाले समुदाय में से 90% तो इन 288 के पालतू कुते होने मेही अपनी शान समझते है।

 ये इनके सामने दुम हिलाने में अपने आप को गौरव की बात समझते है। चंद बिस्कुट ये 288 वाले फेखे तो ये हजारो वाले में 90% उसको खाकर दुम हिलाने लग जाते है।


  अगर ये हजारो वाला समुदाय एक हो जाये, ओर देश के प्रति ,जनता के प्रति अपने कर्तव्य के प्रति वफादार हो जाये ,,तो यकीन मानो 288 मिनिट में ये 288 को नंगा कर दे,,, ओर विदा कर दे।


 ये हजारो वाले समुदाय को आदरणीय डॉ आंबेडकर जी ने इतनी शक्तियां प्रदान कर रखी है,, के पूछो मत। पर ये उन शक्तियों से अनजान है। ये 288 लोग इनका केवल तबादला कर सकते है, ओ भी केवल महाराष्ट्र के भीतर,,, या ज्यादा से ज्यादा 6 महीने के लिए निलंबन,, इसके खिलाफ अदालत भी है, जंहा ये जा कर अपनी जीत पक्की कर सकते है, बशर्ते कि ये खुद *सत्यमेव जयते हो*

 

 वही दूसरी तरफ अगर ये हजारो वाले एक हो जाये तो ये 288 वालो का जीना हराम कर सकते है। 5 साल का जीवन तो दूर 5 दिन में इनको नानी याद दिला दे। 

 इन 288 के हर गलत काम का लेखा जोखा इन हजारो के समुदाय के पास होता ही होता है। अगर ये 30 मिनिट में हर पाकिट मार को पकड़ने की क्षमता रखते है,,, तो क्या इनके पास इन 288 की जन्मकुंडली नही होगी??


 बस इन  हजारो पुलिस वालों का ज़मीर एक बार जग जाए,,, तो इस राज्य में बदलाव 30 दिन में आजायेगा।  भाई जनता की छोड़ो पर अपने ही पुलिस की भाई यो की तो सोचो,,, आपस मे ईमानदारी से एक होजाओ,, ओर रच डालो एक नया इतिहास। वरना ये 288  बड़े बड़े पदों वाले पुलिस अधिकारी झुका रहे,, तोड़ रहे,, बर्बाद कर रहे है,, तो बाकी की क्या ओकाद

 

 एक वझे जैसा हरामी हजारो ईमानदार पुलिस की पहचान काभि नहीं हो सकता, न होना चाहिए,, ओर दरअसल ये वझे पुलिस वाला था ही नही,, ये इन्ही 288 की जात वाला था,,, ओर इन्ही 288 वालो ने इसे पुलिस की वर्दी में आपके बीच, आपको बदनांम करने के लिए छोड़ा था।


सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय’’ हे महाराष्ट्र पोलीसांचे ब्रीदवाक्य आहे. याचा अर्थ असा की, महाराष्ट्र पोलीस सज्जनांचे रक्षण करण्यास आणि दुर्जनांवर नियंत्रण ठेवून त्यांचा नायनाट करण्यास कटीबध्द आहेत

 करो इसको सार्थक


सोमवार, 29 मार्च 2021

शरद पवार का डर?

 *अहमदाबाद में मीटिंग*



ऐसी किसी मीटिंग या डील के अपने अधिकार को शरद पवार ने डेढ़ साल पहले अपनी करतूतों से अपने हाथ से जला कर रख कर दिया था....


अहमदाबाद में अमित शाह के साथ शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल की गुप्त भेंट की खबर परसों शाम तेजी से गर्म हुई और सोशल मीडिया में जंगल की आग की तरह फैल गयी। इसी के साथ "कउव्वा कान ले गया" वाली शैली में "डील हो गयी... डील हो गयी..." का हंगामा हुड़दंग शुरू हो गया है।


 यद्यपि खबर की पुष्टि या खंडन किसी ने नहीं किया है। सच क्या है, यह भी किसी को ज्ञात नहीं है। लेकिन मैं इस खबर को सच ही मान कर यह पोस्ट लिख रहा हूं।


 यदि ऐसी कोई मीटिंग और उसमें कोई तथाकथित डील हुई भी है तब भी मेरे अनुसार उस मीटिंग और उस तथाकथित डील का महत्व कचरे की टोकरी से अधिक नहीं है। क्योंकि,,


 ऐसी किसी मीटिंग या डील के अपने अधिकार को शरद पवार ने डेढ़ साल पहले अपनी  घिनोनी करतूतों से अपने हाथ से जला कर रख कर दिया था। आज शरद पवार की बात और वायदे की औकात दो कौड़ी की भी नहीं रह गयी है। विशेषकर प्रधानमंत्री मोदीं के दरबार में। सम्भवतः यही कारण है कि उस तथाकथित मीटिंग से लौटने के कुछ घंटों बाद ही शरद पवार की तबियत खराब होने और ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती होने की खबर गर्म हो गयी है। 


20 नवम्बर 2019 की दोपहर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से शरद पवार ने लगभग एक घण्टे की मुलाकात अकेले की थी। एनसीपी के किसी भी छोटे या बड़े नेता को वो अपने साथ लेकर नहीं गया था। उस मुलाकात के बाद बाहर निकले शरद पवार ने कहा था कि उसने महाराष्ट्र के किसानों की समस्या पर बात करने के लिए बंद कमरे में प्रधानमंत्री मोदी से एक घण्टे लम्बी मुलाकात की है। ,

शरद पवार की इस बात पर उन्हीं राजनीतिक विश्लेषकों ने विश्वास कर लिया था जिनकी बुद्धि वास्तव में घास चरने गई थी। इस मुलाकात के बाद शरद पवार 22 की सुबह मुम्बई लौटा था और 22 की रात को ही अजित पवार एनसीपी के समर्थन की चिट्ठी लेकर फणनवीस के पास पहुंच गया था। उसकी इस बात पर ज्यादा सोच विचार किए बिना उसको साथ ले जाकर देवेन्द्र फडणवीस ने वो चिट्ठी गवर्नर को सौंप दी थी। परिणामस्वरूप रात में ही कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन हटाने की संस्तुति की थी और राष्ट्रपति ने सवेरे के सूर्योदय के साथ ही उस संस्तुति को स्वीकार कर लिया था। अपने पेशाब से डैम भर देने की गाली देकर किसानों को भगा देने के लिए जग कुख्यात हुए भ्रष्टाचार के पुतले अजित पवार का राजनीतिक कद क्या इतना बड़ा और भारी है कि वो अचानक रंग बदल कर कुछ कहे और उसके कहे पर महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र का राज्यपाल, देश का प्रधानमंत्री, देश का राष्ट्रपति इतना विश्वास कर लें कि उसके कहे पर तत्काल फैसला लेकर त्वरित कार्रवाई कर डालें.?

इस बात पर भी वही राजनीतिक विश्लेषक विश्वास कर सकते हैं जिनकी बुद्धि वास्तव में घास चरने गई हो।

दरअसल इस पूरे घटनाक्रम में अजित पवार और देवेन्द्र फडणवीस की भूमिका मात्र एक डाकिए की ही थी। 

इस सनसनीखेज राजनीतिक थ्रिलर की पटकथा 20 नवम्बर की दोपहर प्रधानमंत्री से अकेले मिलने पहुंचे शरद पवार ने उस एक घण्टे की मुलाक़ात में लिख दी थी। राजनीति की दुनिया में शरद पवार सरीखे राजनीतिक कद और पद वाले व्यक्ति द्वारा एकांत में कही गयी बात को बहुत वजनदार माना जाता है। विशेषकर यह वजन तब और ज्यादा बढ़ जाता है जब ऐसा व्यक्ति देश के प्रधानमंत्री से बंद कमरे में अकेले में कोई बात कहता करता है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी शरद पवार की बातों पर विश्वास कर लिया था।

यही वह बिंदु था जहां प्रधानमंत्री मोदी बुरी तरह मात खा गए थे। वह यह समझ ही नहीं पाए कि उनके सामने बैठा एक कद्दावर राष्ट्रीय नेता उनके साथ सड़कछाप राजनीतिक मक्कारी का खेल खेलने आया है। 

यही कारण है कि उन्होंने देवेन्द्र फणनवीस को शपथ लेने के कुछ क्षणों बाद ही बधाई देने में कोई संकोच नहीं किया था। जबकि येदियुरप्पा ने जब जबरिया सरकार बनाई थी तो प्रधानमंत्री ने उस समय बधाई देने के बजाय मौन साधे रखा था।

जहां तक मैंने देखा जाना समझा है, उस हिसाब से नरेन्द्र मोदी से सम्भवतः पहली बार इतनी बड़ी राजनीतिक चूक हुई है। इसका कारण भी सम्भवतः यही है कि दो कद्दावर राष्ट्रीय नेताओं के मध्य हुई वार्ता और विश्वास का उपयोग दोनों में से एक नेता द्वारा इतने निम्न स्तर की राजनीतिक नंगई के लिए किया जाए, ऐसा घृणित राजनीतिक उदाहरण देश ने इससे पहले कभी देखा सुना नहीं था। 

इसीलिए कल मैंने लिखा था कि महाराष्ट्र का घटनाक्रम देवेन्द्र फणनवीस का राजनीतिक नौसिखियापन या उनकी अनुभवहीनता का परिणाम नहीं है। यह घटनाक्रम अजित पवार की भी किसी धूर्तता का परिणाम नहीं है। वह तो मात्र एक मोहरा था जिसे शरद पवार ने आगे बढ़ाया था। यह पूरा घटनाक्रम राजनीति के उच्चतम स्तर पर निम्नतम स्तर की सड़कछाप  राजनीति के घटिया हथकंडे आजमाने अपनाने की शरद पवार की घिनौनी करतूत का ही परिणाम था। अपनी इस करतूत से शरद पवार ने राजनीति की दुनिया मे व्यक्तिगत सम्बन्धों पर विश्वास की कितनी अनमोल पूंजी गंवा दी है। इसका अनुभव जब शरद पवार को होगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री मोदी ऐसे सबक कभी भूलते नहीं हैं। प्रतीक्षा करिये, शरद पवार द्वारा सिखाए गए इस सबक को प्रधानमंत्री मोदी चक्रवृद्धि ब्याज के साथ वापस शरद पवार को लौटाएंगे। अपनी करतूतों से शरद पवार प्रधानमंत्री मोदी को वह अवसर शीघ्र ही प्रदान करेगा।"

 मेरी पोस्ट का उपरोक्त अंश मेरे विचार से उन दुःखी आत्माओं को शांति प्रदान करेगा जो पिछले 2 दिनों से "डील हो गयी... डील हो गयी..." का हंगामा हुड़दंग कर रही हैं।


 शरद पवार को अब मोदी डर सता रहा है, ओ जानते है,, अब मोदी छोड़ने वाला नही है। अब पहले लोगो के सामने पूरे कपड़े उतार देगा, ओर अगले 15-20 साल तक पवार के खानदान का कोई भी नेता फिर न तो राजनीति ठीक ढंग से कर पायेगा, न काभि किसी के साथ इस तरह की नीच ,हरामी राजनीति कर पायेगा।

 बस यही डर अस्पताल ले गया शायद उन्हें अब।

गुरुवार, 25 मार्च 2021

POST BY MR PRABEER BASU,(IAS)


 *First and foremost, I do not write on 'political' issues. I write on 'national' issues. For example, I have no opinion on whether Rahul Gandhi should be President of his party or not. Similarly, I have no views whether BJP is a better party than Congress or vice versa.* 

*Even after 36 years in the IAS I have no MLA, MP or anyone involved in politics whom I can classify as my friend or even acquaintance. So, naturally I don't care which party wins or loses as long as the winning party runs an honest government doing good to my nation.*

*Now, why I speak in favour of Shri Modi:*

*1. Ever since the beginning of my service I realised that Planning Commission was not serving any useful purpose. I wanted it abolished. This PM did it.*

*2. I always felt that our tax structure is outdated. When I was posted as Commissioner, Commercial Tax in Bihar I understood the need for this even more. I tried my own for some rationalisation. But that was just local tinkering. I was happy when VAT came. But GST was the best thing that could happen. So, I was happy.*

*3. I could never digest from my childhood Nehru's decision to give a special status to J&K. Then as I grew up I heard the stories of corruption, then pogrom against Kashmiri brahmins by these netas in J&K. Crores of rupees were being drained in J&K for nothing. So when PM removed this special status and our MEA did an outstanding job in shutting up Pakistan and China on this issue, I was very very happy. बन्दे मे है दम I realised.*

*4. I used to feel extremely angry everytime Pakistan sent terrorists and killed our jawans. This PM taught those bastards a lesson by URI and Balakot mission and continued to kill these rats emerging from tunnels in Kashmir.*

*5. My family had suffered mentally, physically, psychologically, financially due to the partition of Bengal and subsequent ill treatment in east Pakistan. Those non-muslims left behind in Pakistan, Bangladesh, Afghanistan, parts of 'real' India, had and are continuing to have, a miserable time on a daily basis. PM brought CAA and gave them the loving assurance that India will take them back in the family. At last one man, Shri Narendra Modi understood our pain and suffering.*

*6. My constant worry was the weaknesses of our armed forces due to successive governments dilly-dallying in upgrading our defence technology, equipments, armaments. This PM put that on a fast track. Not only that, he focused on developing infrastructure - roads, bridges, tunnels- in our border areas. I feel safe now. Earlier I was not.*

*7. Amarjit my friend has told me the tremendous amount of rural development work that has been got done by this PM. Amarjit should know because he was the Secretary, Rural Development and now Advisor in the PMO.* 

*8. I always felt that it is a shame that in certain parts of the country women have to walk miles to get water. The Water mission has been introduced to address this issue and results are showing.*

*9. Most news channels and news papers carry on a constant diatribe against Shri Modi. He does not react. He showed extreme tolerance when for months together protestors blocked roads in Shahinbag. Same patience being shown in the farmers' agitation. That shows democratic spirit.*

*10. The officers he has chosen to assist him, Dr P K Mishra, Bhaskar Khulbe, P K Sinha, Amarjit Sinha in PMO, Rajiv Guaba as Cabinet Secretary, Bharat Lal for his Water Mission, Shakti Kant Das as Governor, RBI, and various other officers in key positions are known for their integrity, brilliance and delivering capacity. It can't get better than this.*

*11. He has chosen outstanding ex-civil servants as Ministers in his cabinet.* 
*My friend R K Singh is in independent charge of Power and MNRE. His contribution is visible to all. S Jaishankar, a brilliant career diplomat is Foreign minister. Another career diplomat has been made Civil Aviation minister. So, he is drawing the best talents to run government.*

*12. This PM avenged our humiliation of 1962 by giving a sound thrashing to the chinese soldiers at Galwan. Chinese soldiers are now shit scared to face the Indian army. Further proof of their humiliation came yesterday when Xi changed his army general which was obviously because the previous one got Xi and China humiliated by getting thrashed by our brave soldiers.*

*13. Shri Modi's slogan " न खाऊंगा न खाने दूँगा " is reality now. We civil servants have waited decades after Shashtriji left us in 1965, to have an honest PM. We have him now.*

*Now tell me.If whatever I have ever dreamt for my nation is being done by this PM what is my fault if I like and support him ? "*

*For the last 20 years we have been eating imported pulses.*
*Which Modi ji has cut 2 years ago and now has stopped completely due to Corona ..That is why it is now Rudali, agriculture movement is an excuse.*
*In 2005, the Manmohan government stopped subsidizing pulses in India according to a secret treaty.*
*Only two years later, a new government treaty was formed in which India would import pulses from Canada, Australia and the Netherlands.*

 *In 2005, Canada opened a large lentil growing farm in which most of the Punjabi Sikhs were kept…their organizations were first able to be Gurudwaras and then Khalistanis as managers.*

*So in 2007 there was so much production of pulses in Canada which was called Yellow Revolution.  Because their customers were agents of the mandis of India ..Some of whom are Congress Punjabi families, Maharaja Patiala family and Badal family.*

*Today, the Modi agricultural policy has surgically blocked the income of all these brokers.*

*Now if India is no longer their market, then the amount of money that Canada and other countries have put on these farms [in their countries .. It is not only wasted but unemployment and such a huge market of India went out of their hands.*

*The Congress is the biggest broker in this entire scam.*
*As we have seen CWC VP and CCP VP sign a deal in China for setting up trade, manufacturing in china. At the cost of Indian economy,  labor,  employment,  business just to share riches with its chamchas.* 

*Gave crumbs to the poor thru  NAREGA*

*Modi ji is exposing one of their scams.  They are closing every door to their income.  ....Hi Toba, that's about it.*

*That is why even Canada debates in its bill in Parliament and is threatening BJP to send its Khalistani villagers there to India.Khalistani is the creation of Congress and the favorite of Pakistan.*

*The Home Minister also does not want to raise them because the Congress and others have not been fully exposed yet.*

*spread this message to every citizen of India.*
*Because...* 

*I love India*🙏 🇮🇳 🙏
  
🙏🌹🌹❤🌹🌹🙏

बुधवार, 17 मार्च 2021

शरद पवार+ देवेन्द्र। फारुख+ महबूबा।

देवेन्द ओर शरद नीति? आजकल महाराष्ट्रा की राजनीति में सचिन वझे का केस बहुत हंगामा मचाये हुए है,,, क्या ये मामूली है? या इसमे कितने गुनाह छिपे है,, इसका पता तो NIA लगा ही लेगा। पर इसको में महबूबा मुफ़्ती ओर BJP की सरकार से जोड़कर राजनीति समझने की कोशिश कर रहा, हु। कश्मीर में,, BJP ने महबूबा मुफ्ती के साथ मिलकर सरकार बनाई,, तो बहुत लोगो को अचरज हुआ था। पर ये एक लंबी सोच थी,, ओर नतीजा 2 साल में आगया,, महबूबा मुफ्ती ओर फारुख अब्दुल्ला जैसी राजनीतिक पार्टियां हमेशा के लिए खत्म हो गयी,, हमेशा के लिए। अब आप सोच रहे होंगे, इसका महारष्ट्र के राजनीति से क्या वास्ता? आपको याद होगा 2014 में महाराष्ट्र के चुनाव के बाद, राष्ट्रवादी के शरद पवार ने BJP के बिना माँगने पर भी खुद ही एलान कर दिया था,, के अगर शिवसेना BJP को सरकार बनाने में अड़ंगा कर रही है,, तो हम बाहर से BJP को बिनाशर्त साथ देंगे??,,, क्यो? क्यो राष्ट्रवादी BJP को बिना किसी शर्त के सरकार बनाने में सहयोग के लिए तैयार थी??? केवल एक मकसद ,, के शिवसेना को सत्ता से बाहर रखा जाए,,, ,,,,पर क्यो?? 2014 के बाद भारत की राजनीति पूरी तरह से बदल चुकी है,, ओर 2019 ने तो इस बदली हुयी राजनीति पर मोहर लगा दी,, ओर सभी राजनीतिक पार्टियों को एक बात समझ मे आगयी के अगले 15-20 साल BJP को हराना अब नामुमकिन है। देश जग चुका है,, जनता सोशल मीडिया के माद्यम से ज्यादया जागृत ओर ज्यादया देशभक्त बंनगयीं ओर बनते जा रही है। शरद पवार राजनीति के शकुनि जैसे धुरंदर है। ओ जानते है सत्ता में आना तो दूर की बात,, पर कम से कम विपक्ष में बने रहना जरूरी है। और इसके लिए कोंग्रेस काम नही आने वाली,,, क्योंके अब कोंग्रेस युग समाप्त हो गया है,,,। अगर एक सशक्त विरोधी पक्ष के रूप में अगर राष्ट्रवादी पार्टी को महाराष्ट्र में अपना स्थान बनाये रखना है,, तो शिवसेना को खत्म करना होगा।। क्यो के शरद पवार ये भी जानते थे के शिवसेना को अब ज्यादया दिन BJP झेलने वाली नही,,, ओर फिर अगर BJP ओर शिवसेना एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में होंगे,,, तो शिवसेना विपक्ष के पार्टी के रूप में रहेगी। ( शरद पवार ये बात शायद अबतक समझ चुके थे,, के जनता भले अपक्ष को ओट दे,, पर कोंग्रेस या राष्ट्रवादी को अब काभि नही जिताएगी) अब मुद्दे पर आते है, आज के,,। आज का मुद्दा सबसे ज्यादा तब गरमाया जब देवेन्द्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के विधानसभा में सबूत के साथ सचिन वझे के साथ साथ शिवसेना को नंगा कर दिया। फडणवीस के पास इतने पक्के सबूत ओर इतने जल्द किसने पहुचाये???? बस यही से मामला साफ हो जाता है। मुख्यमंत्री तो शिवसेना के खुद ठाकरे है,,, पर गृहमंत्रालय शरद पवार के पार्टी के पास।,,, तो क्या ये सब सबूत खुद ग्रहमंत्री ने फडणवीस को दिए????? एक बात हमेशा याद रखे,, सामान्य स्तर के पोलिस अधिकारी की इतनी पहोच काभि नही हो सकती ,,के ओ उठे और सीधे सरकारी कागजात किसी पूर्व मुख्यमंत्री को जाकर दे आये। न ही कोई बड़ा पुलिस अधिकारी,,, क्योके उस के तो हर मूवमेंट पर सबकी नझर होती है। पर ये काम नेता आसानी से कर सकता है,, खास कर जो सत्ता पक्ष में हो और गृहमंत्रालय संभाल रहा हो,, ओर जो खुद विधानसभा में हाजिर हो🤣 अब आप कहोंगें शरद पवार ने सत्ता में रहते हुए आसानी से शिवसेना क्यो खत्म नहीं कि? इसकी दो वजह थी,,, उस समय इसकी जरूरत नही थी,, अगर उस समय करते तो,, BJP बड़ी पार्टी के रूप में महारष्ट्र में सामने आती,, ओर उस समय शिवसेना आदरणीय बालासाहेब ठाकरे जैसे सबसे सशक्त नेता के पास थी। अब एक बात पे ओर गौर करे। शिवसेना की स्थापना से लेकर 2019 तक,, शिवसेना के ठाकरे परिवार का सबसे स्ट्रांग पॉइंट क्या था? उनका ये वादा के हमारा परिवार काभि भी सत्ता में कोई पद नही लेगा। अगर खुद ही मुख्यमंत्री बनाना होता तो, आदरणीय बालासाहेब ठाकरे कई बार बन गए होते। शरद पवार ये बात भली भांति जानते थे, के अगर शिवसेना को नंगा करना है जनता के सामने या पूरी तरह से खत्म करना है,, तो जड़ से समाप्त करने के लिये खुद ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाना जरूरी है। और इसीलिए शिवसेने की माँग न होते हुए भी, खुद उद्धव ठाकरे की इच्छा न होते हुए भी शरद पवार ने यही माँग की के खुद ठाकरे मुख्यमंत्री बने,, ओर इसमे उनके सबसे ज्यादा काम आया नोसिखिया संजय रावुत।🤣 संजय रावुत को थोड़ी हवा क्या भर दी शरद पवार ने,, ये गुब्बारे की तरह फूल गया,, ओर बिना किसी दिशा के उड़ने लगा,,, इसे समझ मे काभि नही आया के इसके अंदर की हवा भी शरद पवार की है,, ओर इसे हवा में इधर उधर उड़ाने वाली हवा भी शरद पवार की है।🤣🤣 बस इसके चक्कर मे ठाकरे परिवार आगया। बाप मुख्यमंत्री और बेटा सीधा पर्यावरण मंत्री( जबके हैसियत ओर काबलियत नगर सेवक की भी नही) बेटे को यँहा ज्यादया दोष नहीं दे सकते,, उस बेचारे को राजनीति की इतनी परख ही नही,, कोई भी बेटा होता तो वही करता जो उसने किया* में हमेशा उसका पक्षधर ही रहूंगा) क्योके,, पवार जैसे शकुनि राज्यकर्ता को आजतक कोंग्रेस वाले काभि समझ न पाए,, जिसे शरद पवार ने खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी,,, जंहा रावुत जैसे शिखण्डी फस गए,,, वँहा आदित्य जैसे अभिमन्यु का फसना तय है। शिवसेना हिन्दू के खिलाफ करा कर,,, उनकी खण्डनी पार्टी को जनता के सामने लाकर,,,,, शरद पवार ने सचिन वझे नाम की कील शिवसेना के ताबूत पर ठोक दी है। देखना भविष्य में अब जब भी चुनाव होंगे,, महाराष्ट्रा में केवल दो पार्टियों के बीच होंगे,, राष्ट्रवादी ओर BJP। ओर विपक्ष का पद पवार खानदान के पास ही रहेगा,, ओर शिवसेना फारुख अब्दुल्ला ,, महबूब मुफ़्ती की तरह इतिहास में जमा होजाएगी,, क्योके हिंदुओ के लिए अब BJP पर्याय बहुत स्ट्रांग रूप में सामने उपलब्ध है। 🇮🇳🇮🇳जयहिंद🇮🇳🇮🇳

सोमवार, 15 मार्च 2021

मुम्बई: कौन कौन खत्म होगा???

मुम्बई केस में कई बड़े पुलिस अधिकारी और मंत्री जेल जा सकते है

 ये केस इतना छोटा नही, के पुलिस इंस्पेक्टर ने खुद अम्बानी के घर के सामने गाड़ी में विस्फोटक रखे,,, या किसी की हत्य्या कर दी,, ओर अम्बानी को महज 5000 करोड़ की खण्डनी( फिरौती) माँगी 
  ये केस है भारत में विश्व स्तर पर  बढ़ती हुयी अर्थव्यवस्था और प्रगति को रोकने का

 अब इस मामले में नागरे जैसे राष्ट्रवादी की पुलिस अधिकारी,, मुम्बई के कमिश्नर,,  कई सत्ता में बैठे मंत्री, ओर महारष्ट्रा के बड़े बड़े नेता के होश ठिकाने आजायेंगे जिन्होंने विदेशी ताकतों के साथ मिलकर अपने छोटे राजनीतिक फायदे के लिए देश को बेचने की कोशिश की।
 ये लोग ये भूल गए के केंद्र में अब न तो कोंग्रेस जैसी देशद्रोही पार्टी बैठी है,, जो चीन को देश बेच कर पैसे कमाए, या भारत का ग्रहमंत्री चिंदम्बरम जीसा कोई उल्लू का पट्ठा जो खुद नकली नोट छापकर देश बेच दे|
 केंद्र में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री है,, जो दूसरे देश की सीमा में घुसकर  ठोकता है,, ओर भारत का ग्रहमंत्री ओ मोटाभाई है जो हलक से कलेजा निकाल लेता है,,, ऊपर से NIA उस  डोभाल जैसे कि हात में है,, जो इजरायल के मौसाद को टक्कर दे।
  अब महाराष्ट्र के राजनीतिक और पुलिस प्रशाशन में बैठे गद्दारो की खैर नहीं।
 अब बहुत जल्दी ये माँग भी न उठे एक देश एक पुलिस, ताके राज्य के गद्दारो को कोई  ~पवार~ पावर  ही न रहे,,। अब देश को भी किसी भी गद्दार के प्रति न महबूबा बनकर ममता नही दिखानी चाहिए।

रविवार, 7 मार्च 2021

मिशन गजवा ये सूडान

सूडान का इस्लामीकरण कैसे हुआ ? 

गजवा-ए-सूडान

- अफ्रीका महाद्वीप का देश सूडान 11वीं सदी से पहले तक एक ईसाई बहुल देश था

-लेकिन जब अरब से इस्लाम का जिहाद शुरू हुआ तो मिस्र ट्यूनीशिया वगैरह को फतेह करते हुए धीरे धीरे सूडान में भी इस्लामिक घुसपैठ शुरू हुई

- सूडान के कल्चर को जिहाद ने अपने दो जबड़ों से चबाना शुरू किया... पहला जबड़ा था तलवार से हमले का यानी लगातार अरबी हमलावरों ने सूडान को आंक्रांत करना शुरू किया 

- जिहादी का दूसरा जबड़ा था सूफिज्म और फकीरों का... इन लोगों ने इस्लाम को अच्छा बता कर सूडान में प्रचार शुरू किया

- सूडान में भी ठीक वैसा ही हुआ जैसा भारत में हुआ था... भारत की तरह सूडान में भी ईसाई और वहां की स्थानीय जातियां  आपस में लड़ती रहीं आखिरकार वहां भी मध्यकाल यानी आज से 500 साल पहले अली वंश बहुत मजबूती से स्थापित हो गया
 फिर क्या था... बिलकुल ठीक हिंदुस्तान की तरह कट्टर शरीयत को लागू किया गया और ईसाइयों का जबरदस्त दमन शुरू कर दिया गया । इस तरह ईसाई आबादी परेशान होकर इस्लाम स्वीकार करने पर मजबूर होने लगी 

- लेकिन समय बदला... कुछ समय के लिए ईसाइयों को थोड़ी राहत तब मिल गई .. जब 19वीं सदी में यानी आज से लगभग डेढ सौ साल पहले अंग्रजों ने सूडान पर अपना कब्जा जमा लिया । सूडान धीरे धीरे एक इस्लामिक मुल्क में तब्दील हो रहा था लेकिन साउथ सूडान में दोबारा ईसाई मिशिनरियों को ईसाइत ये प्रचार का मौका मिल गया 

- लेकिन 1956 में सूडान से अंग्रेज चले गए । 1989 में सूडान के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ आ गया । तब यहां कर्नल उमर बशीर ने शासन अपने हाथ में ले लिया ।

- तानाशाह बनते ही उमर बशीर ने पूरे तीस साल के लिए सूडान में शरीयत लागू कर दी । तब तो सूडान में ईसाइयों पर अत्याचार की इंतहां हो गई

- महिलाओं का खतना शुरू हो गया... इस्लाम त्यागने की सजा मौत हो गई.. पूरा शरीयत कोड लागू हो गया... काफिरो को चुन चुन कर मार दिया गया

- हालत ये हो गई कि 2010 में सूडान में 80 प्रतिशत मुसलमान थे... 2015 में यहां 85 प्रतिशत मुसलमान हो गए और आज की तारीख में यहां 97 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है 

- सूडान ईसाइयों के हाथ से निकल गया... अब आज ईसाई काफिरों का जीवन वहां काफी ज्यादा नरक जैसा हो गया है 

- तानाशाह बशीर के राज के खात्मे के बाद 2019 में सूडान में दोबारा सेक्यूलरिज्म की वापसी की बात कही गई है लेकिन अब वहां 97 प्रतिशत मुस्लिम आबादी होने के बाद सेक्युलरिज्म की बात करना ही बेमानी है

शुक्रवार, 5 मार्च 2021

विश्वगुरु भारत

चीन ने सोचा था सबसे पहले वैक्सीन बना कर दुनिया पर बादशाहत करेगा लेकिन मोदी जी ने थाली ताली बजवाते बजवाते ही आपदा में अवसर तलाशा और आज देश विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है........ 
भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में है जहां करोड़ों कोविड वैक्सीन लगने को तैयार हैं। दुनिया का इकलौता देश होगा जहां दो कम्पनियों की वैक्सीन तैयार है और चार लाइन में हैं। दुनिया का इकलौता देश है जहां पाँच करोड़ वैक्सीन तैयार रखी हैं गोदाम में, दस करोड़ अब हर महीने बनने वाली है। और मार्च से हर महीने तीस करोड़ वैक्सीन बननी आरम्भ हो जाएगी।  ब्राज़ील, अरब, साउथ अफ़्रीका समेत दसियों देश भारत की कम्पनियों को ऑर्डर दे चुके हैं वैक्सीन सप्लाई का।जर्मनी जैसे ढेरों देश कह रहे  हैं कि हमें ना भूलो हम भी हैं लाइन में। संक्षेप में कोविड वैक्सीन के मामले में भारत दुनिया का सबसे अग्रणी देश है।

आपदाएँ पहले भी आई हैं, दिल पर हाथ रख कर बताइए कभी सोच भी सकते थे कि हेल्थ केयर की आपदा में भारत विश्व का सबसे अग्रणी राष्ट्र होगा समाधान दिखाने में? यह वही भारत है जहां के हेल्थ सिस्टम की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं। यह वही भारत है जो कोविड आने के पूर्व तक एक N95 मास्क तक ना बना पाता था, देश में एक भी PPE किट नहीं बना पाता था, आज पूरी दुनिया को मास्क और PPE किट ही नहीं वैक्सीन भी सप्लाई कर रहा है। चीन की अरिजिनल योजना थी कि कोविड की वैक्सीन पूरे विश्व को उससे ख़रीदनी पड़ेगी। आज हालत यह है कि पाकिस्तान तक चीन की वैक्सीन मुफ़्त लेने को तैयार नहीं।

दुश्मन देश पाकिस्तान के अख़बार पढ़िए। वह अभिभूत हैं भारत की सफलता से। उनके अख़बार लिखते हैं कि जब हम करोना से अचंभित थे तो भारत R&D कर रहा था। आज हमें बस दस लाख वैक्सीन ख़रीदने की औक़ात है और हम इंतज़ार कर रहे हैं कि कब WHO मुफ़्त बाँटना चालू करे, जो दो साल बाद होगा। उसमें भी जो वादा है उतने से केवल बीस प्रतिशत लोगों को वैक्सीन लग पाएगी। वह लिख रहे हैं कि कभी भारत भी हमारी तरह ही मुफ़्त की वैक्सीन का इंतज़ार करता था,आज देखो..👀
वैसे यह बात पूरी दुनिया देख रही है, सराह रही है, सिवाय कुछ  घटिया और दुश्मन देशों के हाथों बिके नेताओं के और उन नेताओं के गुलाम चमचों, जिहादियों, वामपंथी लिब्रान्डुओं के।

यक़ीन मानिए इस कोविड  में भारत वाक़ई विश्व गुरु बन सामने आया है, एक दमदार सरकार कैसे काया पलट सकती  है, हमारे भारत का कोविड रेस्पॉन्स इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है....

वरना देश भूला नहीं है कि कैसे मोदी सरकार से पहले देश अमरीका से क़र्ज़ माँगने पर मजबूर रहता था। चीन हमेशा आँखे दिखाता था, पाकिस्तान गुर्राता था, देश की गर्दन को झुका रखा था कांग्रेसी सरकार ने। 
मोदी जी ने कहा मैं देश नही झुकने दूँगा और वो करके दिखाया वो भी तब ज़ब पूरा विपक्ष लगातार एकजुट होके उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्र करता रहा है, उनकी सरकार को गिराने की हर घृणित कोशिश कर रहा है।


मंगलवार, 2 मार्च 2021

1971को92000 को छोड़ दिया पर भारत के कई यो को पाकिस्तान में मरने के लिए छोड़ दिया?

#मोदी_है_तभी_मुमकिन_हुआ!!!

विंग कमांडर अभिनंदन का नाम तो आप निश्चय ही नहीं भूले होंगे....... शायद उनकी मूछें भी याद ही होंगी....
लेकिन इसी भारतीय सेना के कुछ अन्य जांबाज़ पायलेट के नाम नीचे मैंने लिखे हैं...... इनकी तस्वीरें देखना तो दूर हममें से कोई एकाध ही होगा जिसने ये नाम सुन रखे होंगे........ लेकिन इनका रिश्ता अभिनंदन से बड़ा ही गहरा है.... पढ़िए ये नाम....

विंग कमांडर हरसरण सिंह डंडोस
स्क्वाड्रन लीडर मोहिंदर कुमार जैन
स्क्वाड्रन लीडर जे. एम. मिस्त्री
स्क्वाड्रन लीडर जे. डी. कुमार
स्क्वाड्रन लीडर देव प्रसाद चटर्जी
फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुधीर गोस्वामी
फ्लाइट लेफ्टिनेंट वी. वी. तांबे
फ्लाइट लेफ्टिनेंट नागास्वामी शंकर
फ्लाइट लेफ्टिनेंट राम एम. आडवाणी
फ्लाइट लेफ्टिनेंट मनोहर पुरोहित
फ्लाइट लेफ्टिनेंट तन्मय सिंह डंडोस
फ्लाइट लेफ्टिनेंट बाबुल गुहा
फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुरेश चंद्र संदल
फ्लाइट लेफ्टिनेंट हरविंदर सिंह
फ्लाइट लेफ्टिनेंट  एल एम सासून
फ्लाइट लेफ्टिनेंट के. पी. एस. नंदा
फ्लाइट लेफ्टिनेंट  अशोक धवले
फ्लाइट लेफ्टिनेंट  श्रीकांत महाजन
फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुरदेव सिंह राय
फ्लाइट लेफ्टिनेंट रमेश कदम
फ्लाइट लेफ्टिनेंट प्रदीप वी आपटे
फ्लाइंग ऑफिसर कृष्ण मलकानी
फ्लाइंग ऑफिसर  के पी मुरलीधरन
फ्लाइंग ऑफिसर  सुधीर त्यागी
फ्लाइंग ऑफिसर  तेजिंदर सेठी

ये सभी नाम अनजाने लगे होंगे...... ये भी भारतीय वायुसेना के योद्धा थे जो 1971 की जंग में पाकिस्तान में बंदी बना लिए गए........और फिर कभी वापस नहीं आये इनकी चिट्ठियां घर वालों तक आयी पर भारत सरकार ने कभी इनकी खोज खबर न ली 
1972 में शिमला में #एक_कथित_लोह_महिला भुट्टो के साथ डॉक्टर डॉक्टर खेलकर 90 हज़ार पाकिस्तानियों को छोड़ने का समझौता तो कर आयी..... पर इन्हे भूल गयी...

ये विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान जितने खुशकिस्मत न थे के इनके लिए इनकी सरकार ने मिसाइलें नहीं तानी, न देश के लोगों ने इनकी खबर ली, न अखवारों ने फोटो छापे..... इन्ह मरने को, पाकिस्तानी जेलों में सड़ने को छोड़ दिया गया...... इनके वजूद को नकार दिया गया....
और ये पहली बार नहीं हुआ था रेज़ांगला के वीर अहीरों को भी नेहरू ने भगोड़ा करार दिया था.... शैतान सिंह भाटी को कायर मान लिया था..... अगर चीन ने इनकी जांबाजी को न स्वीकारा होता, एक लद्दाखी गडरिये को इनकी लाशें न मिलती..... ये वीर अहीर न कहलाते, शैतान सिंह भाटी परम वीर चक्र का सम्मान न पाते.....

यही रवैया रहा गांधी-नेहरू कुनबे का देश के वीर सपूतों के प्रति...... और यही फ़र्क़ है मोदी के होने और न होने का...
आप कल्पना भी नहीं कर सकते अगर मोदी की जगह उनका गूंगा पूर्ववर्ती होता अभिनंदन का नाम भी शायद इसी लिस्ट में लिखा होता......

वो मोदी है, देश के सम्मान की रक्षा को दृढ़प्रतिज्ञ और रक्षक योद्धाओं के लिए भी पूर्ण समर्पित.......
और यही वजह है के हम उसके भक्त हैं..... किसी बेगैरत छिनाल के गुण गाने वाले चमचे नहीं!!!

रविवार, 28 फ़रवरी 2021

मौलाना अब्दुल कलाम भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री: कुछ तथ्य, इतिहास के पन्नो से।

क्या आप जानते हैं कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी आखिर कौन था.?
कृपया ध्यान से पढ़िये, पूरा पढ़िये।
सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी कांग्रेस का बहुत बड़ा नेता था। कांग्रेस ने उसे हिन्दू मुस्लिम एकता का पोस्टर बॉय और सेक्युलरिज्म का सबसे बड़ा ठेकेदार बना दिया था। 1947 में आजादी मिलने के तत्काल बाद सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी देश के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल से भिड़ गया था। उस समय दिल्ली में हो रहे भयानक दंगे के दंगाइयों से सख्ती से निपट रहे दिल्ली पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर जो कि एक सिक्ख थे, को उनके पद से हटा कर उन्हें दण्डित करने की मांग सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी ने देश के गृहमंत्री सरदार पटेल से की थी। सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी ने सरदार पटेल से कहा था कि दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से मुसलमान नाराज हैं और उसके खिलाफ आरोप लगा रहे हैं इसलिए उस पुलिस कमिश्नर को तत्काल हटा कर दण्डित किया जाए। लेकिन सरदार पटेल ने उसकी उस बेहूदी मांग को मानने से इनकार कर दिया था क्योंकि दिल्ली के दंगों को नियंत्रित करने के सफल प्रयासों के कारण उस सिक्ख पुलिस कमिश्नर की प्रशंसा पूरे देश में हो रही थी। इसके कुछ दिनों बाद सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी देश के गृहमंत्री सरदार पटेल के पास अपनी एक और मांग लेकर पहुंच गया था। उसने मांग की थी कि विभाजन के कारण पाकिस्तान चले गए मुसलमानों की जमीनों और घरों को हिन्दूस्तान में रह गए मुसलमानों को ही दे दिया जाए। 
सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी की उस मांग का सीधा सा अर्थ यही था कि पाकिस्तान भाग गए गद्दारों की जमीन मकान भी सरकार कब्जा नहीं करे और मुसलमानों को ही दे दे। उसकी इस बेतुकी बेहूदी मांग पर सरदार पटेल ने उसे जमकर डपटा था। अब आप यह भी जानिए कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी आखिर था कौन.?
उपरोक्त सवाल का जवाब यह है कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी नाम का नौजवान सऊदी अरब में जन्मा था और भारत में 1919 में शुरू हुए खिलाफत आंदोलन के सबसे बड़े नेताओं में से एक था। सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी की शिक्षा दीक्षा मदरसे में ही हुई थी। ज्ञान विज्ञान इतिहास भूगोल आदि औपचारिक शिक्षा देने वाले किसी स्कूल में वो नहीं पढ़ा था। लेकिन जब देश स्वतन्त्र हुआ उस समय देश में कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी और डॉक्टर राधाकृष्णन सरीखे महान विद्वानों के होते हुए भी जवाहरलाल नेहरू ने देश के पहले शिक्षा मंत्री की कुर्सी पर सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी को ही बैठा दिया था। 1958 में हुई उसकी मौत तक सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी देश की शिक्षा व्यवस्था का कर्ताधर्ता बना रहा। जरा कल्पना करिए कि जिस व्यक्ति ने ज्ञान विज्ञान इतिहास भूगोल आदि की औपचारिक शिक्षा देने वाले किसी स्कूल तक का मुंह नहीं देखा था उसे कांग्रेस ने देश की शिक्षा नीति की कमान सौंप दी थी।

सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी जिस खिलाफत आंदोलन के सबसे बड़े नेताओं में से एक रहा था। उस आंदोलन का एकमात्र मूल उद्देश्य तत्कालीन तुर्की में इस्लाम के खलीफा सुल्तान की गद्दी और उसके कट्टर इस्लामिक साम्राज्य को बचाना था। हास्यास्पद और शर्मनाक तथ्य यह है कि खुद तुर्की में ही उस इस्लाम के खलीफा सुल्तान की कट्टरपंथी रूढ़िवादी मजहबी सोच के खिलाफ भयंकर जनाक्रोश की आग भड़की हुई थी। परिणाम स्वरूप 1923 में इस्लाम के उस खलीफा और उसकी कट्टरपंथी रूढ़िवादी मजहबी नीतियों वाले शासन का हमेशा के लिए अंत हो गया था। कमाल अतातुर्क पाशा ने तुर्की की सत्ता सम्भाल ली थी।
लेकिन 1919 से 1923 तक सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी भारत के मुसलमानों को संगठित कर के तुर्की के उस इस्लामी खलीफा के इस्लामिक राज्य को बचाने के लिए हंगामा हुड़दंग कर रहा था।

सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी, नाम उसकी असलियत को उजागर कर देता इसलिए वामी हरामी इतिहासकारों ने उसे मौलाना अबुल कलाम आजाद ही लिखा। उसे महान शिक्षाविद, हिन्दू मुस्लिम एकता का पोस्टर बॉय और सेक्युलरिज्म का सबसे बड़ा ठेकेदार शिक्षाविद बना डाला।
लेकिन अब आप स्वयं ही यह तय करें कि सैयद गुलाम मोहियुद्दीन अहमद बिन खैरूद्दीन अल हुसैनी, आखिर क्या था, कौन था.? वो महान शिक्षाविद था या मदरसा छाप था.? वो सेक्युलरिज्म का सबसे बड़ा ठेकेदार था या घोर कट्टर साम्प्रदायिक तुर्की के खलीफा का भारतीय गुर्गा था।

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

गाँधी खानदान शरद पवार 22/02/1994 को खायी कसम भी काभि काभि जनता को बता दिया करो।

आआपको कोंग्रेस का कोई पप्पु या शरद पवार जैसा राजनेता 22 फरवरी 1994 में किया गया संकल्प काभि नही बताएगा, क्यो?

               22 फर. 1994 को भारतीय संसद में कश्मीर सम्बन्ध में एक संकल्प प्रस्तावित किया गया था जो कि सर्वसम्मति से पारित भी किया गया था. इस प्रस्ताव में कहा गया था कि कश्मीर के जो क्षेत्र चीन द्वारा 1962 में और पाकिस्तान द्वारा 1947 में कब्जा लिए गए थे उन क्षेत्रों को हम वापिस लेकर रहेंगे और इस बारे में किसी समझौते को स्वीकार नहीं करेंगे. इस संकल्प में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान को यह चेतावनी दी कि वह अवैध रूप से अतिक्रमण किये गए इस क्षेत्र को तुरंत खाली कर दे. वर्ष 1994 में लिए गए इस संकल्प का उद्देश्य जम्मू कश्मीर के साथ पूरे विश्व को यह सन्देश देना था कि प्रत्येक स्थिति में भारतीय सरकार जम्मू कश्मीर के साथ है. 22 फरवरी 1994 को पी वी नरसिम्हाराव के प्रधानमंत्रित्व काल में संसद नें जिस संकल्प को पारित किया था बाद के वर्षों में अन्य प्रधानमंत्रियों के काल में यह प्रस्ताव धूल तले दबता जा रहा है. बाद की सरकारों ने इस प्रस्ताव के सन्दर्भ में प्रतिवर्ष इसका स्मरण तक करनें का प्रयास नहीं किया. नरसिम्हाराव के बाद की कांग्रेस की सरकारों की अब्दुल्ला परिवार के साथ जिस प्रकार की संदेहास्पद और रहस्यमयी आपसी समझ बूझ है उसके कारण से इस कथित प्रस्ताव पर चर्चा-स्मरण न होना स्वाभाविक लगता है. कांग्रेस की सतत चली आ रही कश्मीर पर तदर्थवाद की नीति में तो यह ठीक लगता है किन्तु अन्य अटलजी की सरकार के समय भी इस प्रस्ताव पर गंभीर राजनयिक कदम नहीं बढ़ा पाई थी. आज आवश्यकता है कि देश इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव के सन्दर्भ में जानें और भारतीय संसद और सम्पूर्ण भारतीय राजनीति भी अपनें द्वारा पारित इस प्रस्ताव की आत्मा को समझकर इस अनुरूप आचरण करें. इस प्रस्ताव में निम्नानुसार तथ्य कहे गए थे –

यह सदन पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंकियों के शिविरों पर गंभीर चिंता जताता है.  इसका मानना है कि पाकिस्तान की तरफ से आतंकियों को हथियारों और धन की आपूर्ति के साथ-साथ भारत में घुसपैठ करने में मदद दी जा रही है. सदन भारत की जनता की ओर से घोषणा करता है-
(1) पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भारतीय गणराज्य का अभिन्न अंग है और रहेगा. भारत अपने इस भाग को पुनः भारत में विलय का हरसंभव प्रयास करेगा.
(2) भारत में इस बात की पर्याप्त क्षमता और संकल्प है कि वह उन अलगाववादी और आतंकवादी शक्तियों का मुंहतोड़ जवाब दे, जो देश की एकता, प्रभुसत्ता और क्षेत्रिय अखंडता के खिलाफ हों और मांग करता है कि –
(3) पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के उन क्षेत्रों को खाली करे, जिन्हें उसने कब्जाया और अतिक्रमण किया हुआ है.
(4) भारत के आंतरिक मामलों में किसी भी हस्तक्षेप का कठोर जवाब दिया जाएगा.
जम्मू कश्मीर से हमारा तात्पर्य केवल जम्मू, कश्मीर या लदाख तक सीमित नहीं है. जम्मू कश्मीर में इन तीनो क्षेत्रो के साथ वह क्षेत्र भी आता है जिस पर पाकिस्तान से अवैध रूप से कब्ज़ा किया हुआ है. यह क्षेत्र है मीरपुर मुजफराबाद और गिलगित बल्तिस्तान. गिलगित बल्तिस्तान इन दो क्षेत्रों के विषय में हमें जान लेना चाहिए कि विश्वविख्यात प्राचीन सिल्क रूट इस गिलगित बल्तिस्तान में ही पड़ता है. इसी सिल्क रूट के माध्यम से भारत शेष एशिया एवं यूरोप में व्यापार किया करता था. वर्तमान में यह क्षेत्र गिलगित बल्तिस्तान पाकिस्तान के अतिक्रमण किये हुए कब्जे में है और यहां के निवासी अब तक भी भी पाकिस्तानी शासन को नहीं मानते हैं. पिछले दशकों में इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की नागरिक सुविधाओं का विस्तार नहीं हुआ. यहां के नागरिक पाकिस्तानी सेना के द्वारा निरंतर नारकीय यातनाएं भोग रहें हैं और मनावाधिकारों की धज्जियां उड़ रही है. हत्याएं, अपहरण संपत्ति पर कब्जा इन क्षेत्रों में ठीक इसी प्रकार हो जाता है जैसे किसी कबीले में होता है.

              भारत की कश्मीर नीति में शिमला समझौते को पाकिस्तान और विश्व समुदाय एक मील पत्थर के रूप में लेता है और यही वह कोण है जहां आकर भारत फंस जाता है. राजनयिक दृष्टि से अति कुशाग्रता और हावी होते हुए यदि शिमला समझौते को व्यक्त किया जाए तब तो इस समझौते से भारत को लाभ मिल सकता है अन्यथा जिस प्रकार इस समझौते की ढूलमूल व्याख्या होती रही है उससे तो यह कश्मीर मुद्दा कण मात्र भी आगे नहीं बढ़ने वाला है. आवश्यकता है कश्मीर पर संकल्पशील और आक्रामक भारतीय नेतृत्व की और प्रतिबद्ध केंद्र सरकार की. भारत-पाकिस्तान ने 1972 में हुए शिमला समझौते में एलओसी को दोनों देशों के बीच सीमा के रूप में स्वीकार करनें की एतिहासिक भूल कर ली थी. इस समझौते में जब हमारी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के जुल्फिकार अली भट्टो ने शिमला समझौते पर हस्ताक्षर करके एलओसी को दोनों देशों की सीमा के रूप में स्वीकार कर लिया था. पाकिस्तान पक्ष के कश्मीर विशेषज्ञ प्रश्न करते हैं कि अब हम पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का भारत में विलय किस तरह से कर सकते हैं? पाकिस्तानी कश्मीरी विशेषज्ञ भारत-पाक के बीच कश्मीर के मुद्दे के सुलझ जानें का दावा करते हैं और भौगोलिक नक्शों के अपरिवर्तनीय होनें का दम भरते हैं.  भारतीय पक्ष से यहां यह स्मरणीय भी है और महत्वपूर्ण भी कि जिसे हम पीओके कहतें हैं एवं पाकिस्तान जिसे  आजाद कश्मीर कहता है, वह क्षेत्र जम्मू का हिस्सा था न कि कश्मीर का; अतः उसे कश्मीर कहा ही नहीं जा सकता. न तो वह कश्मीर का अंश था और न ही इस रूप में उसका समझौता हो सकता था. वहां की लोक भाषा भी कश्मीरी न होकर डोगरी और मीरपुरी का मिश्रण है. इतिहास को यदि हम क्रमवार देखें और इन तकनीकी भूलों को आलोकित करें तो शिमला समझौते की भी समीक्षा के उजले अवसर आभास होतें हैं. और यदि हम महाराजा हरिसिंग के विलय प्रस्ताव को और उसकी भारतीय गणराज्य की ओर से की गई स्वीकृति के दस्तावेज को देखें तो इनकें शब्दों में कही कोई विरोधाभास नहीं है. विलय के दस्तावेज कश्मीर के पूर्ण विलय के तथ्य को सुस्पष्ट घोषणा की स्थिति में दिखते  हैं. अब इन सब परिस्थितियों में से कौन सा भारतीय प्रधानमन्त्री और कौन सी सरकार राह बनाकर आगे बढ़ पाती है यही एक प्रश्न भी है और प्रतीक्षा भी !!

            दुखद यह तथ्य भी है कि भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर परिस्थितियां जो सहज कभी नहीं रही उनकी असहजता जस की तस नहीं है. परिस्थितियां निरंतर उलझ रही हैं और भारतीय पक्ष को कमजोर कर रही हैं. भारत कश्मीर में उस स्थिति में खड़ा है जहाँ उसके पास खोनें को बहुत कुछ है और तथ्य यह है कि हम निरंतर कश्मीर में कुछ न कुछ खो रहे हैं. पिछले दशकों की घटनाओं की समीक्षा करें तो यह दुखद तथ्य ही और पछतावा ही हमारें हाथ लग रहा है कोई उपलब्धि नहीं. पाक कब्जे वाले कश्मीर में चीन की नई उपस्थिति इस कड़ी में एक बड़ी और कठिन गाँठ के रूप में हम भारतीयों के समक्ष है. पाक और चीन के बीच पीओके में निर्माण कार्यों को लेकर आठ समझौते हो चुकें हैं जिन्हें न रोक पाना भारतीय राजनयिक विफलता की एक बड़ी कहानी है. चीन और पाकिस्तान पीओके से होते हुए एक 200 किमी लम्बी सुरंग का निर्माण कर रही है जिस पर 18 अरब डालर का भारी भरकम खर्च होना है. अब इस महत्वपूर्ण गलियारे में इस सुरंग के माध्यम से चीन की उपस्थिति भारत के लिए एक नई समस्या के रूप में है. इस सुरंग से चीन के कई दीर्घकालिक सैन्य,आर्थिक, और सामरिक लक्ष्य सिद्ध होंगे और इन सभी मोर्चों पर उसके हित भारतीय हितों की कीमत पर फलित होंगे यह भी सत्य है. चीन पहले से ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से इस क्षेत्र में हावी था, अब यह सुरंग अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन में काशगर से जोड़ेगी. इस सुरंग से चीन पश्चिम एशिया और स्टेट आफ हरमुज तक सहजता और सरलता से पहुंचेगा. यही वह मार्ग है जहाँ से जहां से दुनिया के एक तिहाई तेल उत्पादन का परिवहन होता है. केवल यही नहीं अपितु और भी दसियों चिंताएं हैं जो पिछले वर्षों में भारत-पाक के बीच पीओके को लेकर बढ़ गई हैं. अब इन चिंताओं का निवारण कैसे हो और नई चिंताओं का जन्म लेना किस प्रकार रुके यह एक यक्षप्रश्न है वर्तमान केंद्र सरकार के सामनें.

बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

जामुन की लकड़ी का महत्व

#जामुन_की_लकड़ी_का_महत्त्व
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अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल या हरी काई नहीं जमती और पानी सड़ता नहीं । टंकी को लम्बे समय तक साफ़ नहीं करना पड़ता ।

जामुन की एक खासियत है कि इसकी लकड़ी पानी में काफी समय तक सड़ता नही है।जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़ा पैमाने पर होता है।नाव का निचला सतह जो हमेशा पानी में रहता है वह जामून की लकड़ी होती है।

गांव देहात में जब कुंए की खुदाई होती तो उसके तलहटी में जामून की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जिसे जमोट कहते है। आजकल लोग जामुन का उपयोग घर बनाने में भी करने लगे है।
जामून के छाल का उपयोग श्वसन गलादर्द रक्तशुद्धि और अल्सर में किया जाता है।

दिल्ली के महरौली स्थित निजामुद्दीन बावड़ी का हाल ही में जीर्णोद्धार हुआ है । 700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहाँ पानी के सोते बंद नहीं हुए हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के.एन. श्रीवास्तव के अनुसार इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहाँ लकड़ी की वो तख्ती साबुत है जिसके ऊपर यह बावड़ी बनी थी। श्रीवास्तव जी के अनुसार उत्तर भारत के अधिकतर कुँओं व बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल आधार के रूप में किया जाता था।

इस बावड़ी में भी जामुन की लकड़ी इस्तेमाल की गई थी जो 700 साल बाद भी नहीं गली है। बावड़ी की सफाई करते समय बारीक से बारीक बातों का भी खयाल रखा गया। यहाँ तक कि सफाई के लिए पानी निकालते समय इस बात का खास खयाल रखा गया कि इसकी एक भी मछली न मरे। इस बावड़ी में 10 किलो से अधिक वजनी मछलियाँ भी मौजूद हैं।

इन सोतों का पानी अब भी काफी मीठा और शुद्ध है। इतना कि इसके संरक्षण के कार्य से जुड़े रतीश नंदा का कहना है कि इन सोतों का पानी आज भी इतना शुद्ध है कि इसे आप सीधे पी सकते हैं। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि पेट के कई रोगों में यह पानी फायदा करता है।

पर्वतीय क्षेत्र में आटा पीसने की पनचक्की का उपयोग अत्यन्त प्राचीन है। पानी से चलने के कारण इसे "घट' या "घराट' कहते हैं।घराट की गूलों से सिंचाई का कार्य भी होता है। यह एक प्रदूषण से रहित परम्परागत प्रौद्यौगिकी है। इसे जल संसाधन का एक प्राचीन एवं समुन्नत उपयोग कहा जा सकता है। आजकल बिजली या डीजल से चलने वाली चक्कियों के कारण कई घराट बंद हो गए हैं और कुछ बंद होने के कगार पर हैं।

पनचक्कियाँ प्राय: हमेशा बहते रहने वाली नदियों के तट पर बनाई जाती हैं। गूल द्वारा नदी से पानी लेकर उसे लकड़ी के पनाले में प्रवाहित किया जाता है जिससे पानी में तेज प्रवाह उत्पन्न हो जाता है। इस प्रवाह के नीचे पंखेदार चक्र (फितौड़ा) रखकर उसके ऊपर चक्की के दो पाट रखे जाते हैं। निचला चक्का भारी एवं स्थिर होता है। पंखे के चक्र का बीच का ऊपर उठा नुकीला भाग (बी) ऊपरी चक्के के खांचे में निहित लोहे की खपच्ची (क्वेलार) में फँसाया जाता है। पानी के वेग से ज्यों ही पंखेदार चक्र घूमने लगता है, चक्की का ऊपरी चक्का घूमने लगता है।पनाले में प्रायः जामुन की लकड़ी का भी इस्तेमाल होता है |फितौडा भी जामुन की लकड़ी से बनाया जाता है ।

जामुन की लकड़ी एक अच्छी दातुन है।

जलसुंघा ( ऐसे विशिष्ट प्रतिभा संपन्न व्यक्ति जो भूमिगत जल के स्त्रोत का पता लगाते है ) भी पानी सूंघने के लिए जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल करते । 

मुस्लिम और पारसी में क्या फर्क है?

हम भारतीयों को आप पारसियों पर बहुत गर्व है 

कोविड  वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम पारसी की है जिसका नाम है आदार पूनावाला 

आदार पूनावाला ने बॉम्बे पारसी पंचायत 60000 वैक्सीन ऑफर किया था कि पारसी लोगों को पहले वैक्सीन  लग जाए लेकिन बॉम्बे पारसी पंचायत के अध्यक्ष और उसके अलावा प्रख्यात उद्योगपति रतन टाटा ने यह कहा कि हम पहले भारतीय हैं बाद में पारसी हैं हमें वैक्सीन तभी चाहिए जब सभी भारतीयों को वैक्सीन मिलेगी

फैक्ट्री  से शुरू हो रही वैक्सीन   आगे कैसे बढ़ती है वह देखिए

 वैक्सीन जिस कांच की शीशी में यानी व्हाईल में पैक होती है उसे भी एक पारसी की कंपनी बनाती है इसका नाम स्कॉट्सलाइस है जिसके मालिक रीशाद दादाचन्दजी  हैं

वैक्सीन को पूरे भारत में ट्रांसपोर्टेशन के लिए रतन टाटा ने अपनी कंपनी की रेफ्रिजरेटेड वाहन मुफ्त में दिया है

यदि वैक्सीन को हवाई मार्ग द्वारा जेट से भेजना होता है तो उसके लिए एक दूसरे पारसी श्री जाल वाडिया ने अपने 5 जेट को दिया है

वैक्सीन को रखने के लिए जिस ड्राई आइस यानि लिक्विड कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग किया जा रहा है उसे भी एक पारसी फ़रोक दादाभोई दे रहे है

भारत में 25 जगहों पर वैक्सीनेशन के स्टोर के लिए एक दूसरे पारसी आदि गोदरेज ने अपने रेफ्रिजरेटेड यूनिट को सौंप दिया है

सोचिए इन पारसियों  को भारत की कोई सुविधा नहीं चाहिए यह खुद को कभी अल्पसंख्यक मानते ही नहीं और आज तक एक भी पारसी  अल्पसंख्यक कल्याण योजना का फायदा नहीं लेता बल्कि पारसी  खुद को अल्पसंख्यक नही बल्कि  भारतीय समझते हैं भारत के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं भारत की जीडीपी में सबसे ज्यादा योगदान दे रहे हैं भारत को सबसे ज्यादा टैक्स दे रहे हैं और जब भी भारत की मदद करनी होती है तो सबसे आगे पारसी आते हैं 

जबकि भारत में एक और कौम (मुस्लिम) भी हैं जिनका टैक्स में योगदान नगण्य के बराबर है। लेकिन उसे भारत की हर सुविधाएं मुफ्त में चाहिए हर सरकारी अस्पताल में उसे मुफ्त में इलाज चाहिए हर सरकारी योजना का उसे फायदा चाहिए।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

रोना नही।संतोष आनंद मशहूर गीतकार का जीवन।

नाम, पैसा, शोहरत, इबरत ... लेकिन किस्मत का पहिया ऐसा चला कि न पैसे बचे और न इब्राहत ... सबसे खास बात यह है कि बेटा नहीं बचा और न बहू ! .. बहुत अकेला जीवन उनके नसीब में आया। उन का पोता भगवान की एक छोटी सी कृपा के रूप में उसके साथ है! संतोष आनंद एक दुर्भाग्यशाली कलाकार हैं! इक प्यार का नगमा है ... मेघा रे मेघा रे ... मुझे क्या कमी है तुम्हारे पास ... प्रेम क्या है ... इतने सारे सार्थक और सुपरहिट गाने लिखना जैसे ... उस समय के प्रसिद्ध ... दो फिल्मफेयर और प्रतिष्ठित यश भारती पुरस्कार जीतना ... एक गीतकार जो कभी प्रसिद्ध और करीबी दोस्तों के घेरे में रहते थे ..! सब कुछ ठीक था .. केवल एक बेटा, बहू और एक प्यारी पोती .. लेकिन लड़का किसी तरह की धोखाधड़ी में फंस गया ... और उसने एक दिन उसने निर्णय लिया और अपनी पत्नी और केवल 4 वर्षीय बेटी के साथ, मैं एक चलती हुई ट्रेन के नीचे चला गया। वह और उसकी पत्नी का निधन हो गया, लेकिन बेटी, जो गंभीर रूप से घायल थी, बच गई। शायद संतोष आनंद की देखभाल के लिये। लड़के ने अपनी मौत से पहले 10 पेज का सुसाइड नोट लिखा .. बड़े पदाधिकारियों पर आरोप लगाया लेकिन उस पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है .. अगर ऐसा होता है, तो भी बेटे और बहू को वापस नहीं आएंगे। जो समय बीत चुका है वह फिर नहीं आएगा। तुम्हारे सिवा मेरे दिल में कोई नहीं आएगा,,,, हमने घर जला दिया, अब हमें राख चुननी है,,, ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है ... ये गीत उनकी ही देन है। लेकिन दुर्भाग्य का सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है .. गीतकार संतोष जआनंद विकलांग हो गए .. उन्होंने 3-4 बार पैर की सर्जरी कराई। व्हीलचेयर पे आगए अब। अंग बहुत कांपते हैं ... आवाज़ कट जाती है .. भले ही उनके पास रहने के लिए पैसे नहीं हैं, लेकिन लेखन सांस उतनी ही दिखाई देती है ..! कुछ हासिल करना है और कुछ खोना है,,,, जीवन का अर्थ है आना-जाना,,,, दो क्षणों के जीवन से,,,, एक उम्र चोरी करना है,,, ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है ... कल इंडियन आइडल पर संतोष आनंद की कहानी सुनकर मैं दर्द हुआ। नेहा कक्कर की सराहना। उन्हें देखकर वह फूट-फूट कर रोने लगीं .. उनके गले से लिपट गईं और रो पड़ीं .. प्यार से उनके सिर पर हाथ रखा .. उन्हें भावुक आश्वासन दिया .. मुख्य बात 5 लाख रुपये की आर्थिक मदद थी! .. स्वाभिमानी संतोष आनंद ने विनम्रता से! उस स्थिति में भी इसका खंडन किया .. 'मैं अभी भी काम कर रहा हूँ .. मैं यहाँ और वहाँ जाता हूँ ..' यह कहते हुए, उनकी आवाज़ भर गई और हमारी आँखें सुन रही थीं! नेहा ने उन्हें समान स्नेह के साथ उपहार स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। नेहा ने पहले भी फुटपाथ पर एक हारमोनियम बजाने वाले को 1 लाख रुपये का दान देने की घोषणा की थी। मैंने उसे रोते हुए नाटकीय नहीं पाया। वह 10 साल पहले इंडियन आइडल से आई है। गरीबी देखी गई है। वह उम्र में युवा है ... लेकिन उदार होने के लिए, किसी को सामाजिक जागरूकता होनी चाहिए, यह उसके अंदर है। किसी की समस्या सुनकर, उसका हाथ तुरंत मदद के लिए आगे आता है .. भले ही पैसा हो, कोई दान नहीं है! यह दूसरा संवेदनशील वाकया है। ईश्वर उसे बहुत खुशहाल जीवन और पूर्ण सफलता दे !! कल की इंडियन आइडल घटना बहुत खूबसूरत थी .. दिल को छू लेने वाली थी ... आइए इसे फिर से देखें! .. संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के एवीट गाने .. टोडी के प्रतियोगी .. सबसे महत्वपूर्ण बात एक असामान्य गीतकार की पहचान है जो ग .. फिर भी हम गाने सुनते हैं लेकिन उनके पीछे गीतकार संगीतकार के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं! संतोष आनंद को दुनिया के सामने लाने के लिए इंडियन आइडल का बहुत-बहुत धन्यवाद! .. उनके शब्दों 'किसी ने उन्हें याद किया ..' ने मुझे दुखी किया! इस शो को देखने वाले हर कोई रोया होगा ... आंखों में सागर है, आशा के आंसू हैं,,,, ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है ... भगवान संतोष आनंद को एक स्वस्थ जीवन दे सकते हैं, जो असामान्य शब्दों में समृद्ध है!

स्वतंत्रता संग्राम में दलितों का बलिदान जो आपको काभि बताया नही गया।

एक सोची-समझी साजिश के तहत बहुजनों के इतिहास को या तो नजर अंदाज कर दिया गया या फिर उसे मिटाने की कोशिश की गई. आजादी के आंदोलन में भी यही हुआ. लेखनी पर जिनका एकाधिकार रहा उन्होंने मनचाहे तरीके से इतिहास को दर्ज किया. लेकिन अब इतिहास की परतों में से तमाम बहुजन नायक बाहर आने लगे हैं. देश की आजादी की लड़ाई के दौरान तमाम बहुजन नायक ऐसे रहें जो अंग्रेजों के सामने चट्टान की तरह खड़े रहे. दलित दस्तक ऐसे दर्जन भर नायकों को सामने लेकर आया है।

वैसे तो देश की आजादी का पहला स्वतंत्रता संग्राम 1857 का माना जाता है लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल 1780-84 में ही बिहार के संथाल परगना में तिलका मांझी की अगुवाई में शुरू हो गया था. तिलका मांझी युद्ध कला में निपुण और एक अच्छे निशानेबाज थे. इस वीर सपूत ने ताड़ के पेड़ पर चढ़कर तीर से कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था. इसके बाद महाराष्ट्र, बंगाल और उड़ीसा प्रांत में दलित-आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू कर दी. इस विद्रोह में अंग्रेजों से कड़ा संघर्ष हुआ जिसमें अंग्रेजों को मुंह की खानी पड़ी. सिद्धु संथाल और गोची मांझी के साहस और वीरता से भी अंग्रेज कांपते थे. बाद में अंग्रेजों ने इन वीर सेनानियों को पकड़कर फांसी पर चढ़ा दिया.

इसके बाद अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल 1804 में बजा. छतारी के नवाब नाहर खां अंग्रेजी शासन के कट्टर विरोधी थे. 1804 और 1807 में उनके बेटों ने अंग्रेजों से घमासान युद्ध किया. इस युद्ध में जिस व्यक्ति ने उनका भरपूर साथ दिया वह उनका परम मित्र उदईया था, जिसने अकेले ही सैकड़ों अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा. बाद में उदईया पकड़ा गया और उसे फांसी दे दी गई. उदईया की गौरव गाथा आज भी क्षेत्र के लोगों में प्रचलित हैं.

चेतराम जाटव और बल्लू मेहतर
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाले दो प्रमुख नाम चेतराम जाटव और बल्लू मेहतर के भी थे। उन्होंने आजादी के लिए न केवल फिरंगियों से टक्कर ली बल्कि देश की आन-बान और शान के लिए कुर्बान हो गए. क्रांति का बिगुल बजते ही देश भक्त चेतराम जाटव और बल्लू मेहतर भी 26 मई 1857 को सोरों (एटा) की क्रांति की ज्वाला में कूद पड़े. वे इस क्रांति की अगली कतार में खड़े रहे. फिरंगियों ने दोनों दलित क्रांतिकारियों को पेड़ में बांधकर गोलियों से उड़ा दिया और बाकी लोगों को कासगंज में फांसी दे दी गई.

बांके चमार
इसी तरह 1857 की जौनपुर क्रांति के दौरान जिन 18 क्रांतिकारियों को बागी घोषित किया गया उनमें सबसे प्रमुख बांके चमार थे। बांके चमार को जिंदा या मुर्दा पकडऩे के लिए ब्रिटिश सरकार ने उस जमाने में 50 हजार का इनाम घोषित किया था. बांके को गिरफ्तार कर मृत्यु दंड दे दिया गया.

वीरा पासी

जलियांवाला बाग के बाद दूसरे सबसे बड़े सामूहिक नरसंहार की गवाह बनी थी रायबरेली की माटी, जहां अंग्रेजों ने सैकड़ों किसानों को घेरकर बर्बरतापूर्वक गोलियों से भून दिया था. उसी रायबरेली की धरती ने स्वाधीनता की लड़ाई में वीरा पासी जैसा नायक दिया. इस नायक ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए. इस योद्धा से खौफजदा अंग्रेजी सरकार ने वीरा पासी को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था. वीरा पासी रायबरेली क्षेत्र के राणा बेनी माधव के मुख्य सिपहसालार और अंगरक्षक थे. अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में उन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.

बुद्धु भगत
गुमनामी में खो गए जिन शहीदों का नाम आता है, उनमें वीर बुद्धु भगत भी थे। छोटा नागपुर के वे ऐसे जननायक थे, जिन्होंने न केवल अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए बल्कि उन्हें उरांव आदिवासी इलाका छोड़ने को मजबूर भी कर दिया। इस युद्ध में उनकी बेटियां रुनिया और झुनिया ने भी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में हि्स्सा लिया और शहीद हो गईं।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने भी न केवल बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया बल्कि प्राणों की आहुति भी दी.

वीरांगना झलकारी बाई
वीरांगना झलकारी बाई ऐसी ही एक वीरांगना थीं। यह चर्चित बात है कि झलकारी बाई और लक्ष्मीबाई की सकल-सूरत एक दूसरे से काफी मिलती जुलती थी, इसलिए अंग्रेज झलकारीबाई को ही रानी लक्ष्मीबाई समझकर काफी देर तक लड़ते रहे. बाद में झलकारीबाई शहीद हो गईं लेकिन इतिहासकारों ने झलकारीबाई के योगदान को हाशिए पर रखकर रानी लक्ष्मीबाई को ही वीरांगना का ताज दे दिया.

वीरांगना ऊदादेवी
वीरांगना ऊदादेवी का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। 16 नवम्बर 1857 को लखनऊ के सिकन्दरबाग चौराहे पर घटित इस अपने ढंग के अकेले बलिदान को इतिहास के पन्नों से दूर ही रखा गया. ऊदादेवी नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल की महिला सैनिक दस्ते की कप्तान थीं. इनके पति का नाम मक्का पासी था. जो लखनऊ के गांव उजरियांव के रहने वाले थे. अंग्रेजों ने लखनऊ के चिनहट में हुए संघर्ष में मक्का पासी और उनके तमाम साथियों को मौत के घाट उतार दिया था. पति की मौत का बदला लेने के लिए वीरांगना ऊदादेवी 16 नवंबर 1857 सिकंदर बाग (लखनऊ) में एक पीपल के पेड़ पर चढ़कर 36 अंग्रेज फौजियों को गोलियों से भून दिया था और बाद में खुद भी शहीद हो गईं थीं.

महाबीरी देवी वाल्मीकि
दलित समाज की महाबीरी देवी वाल्मीकि को तो आज भी बहुत कम लोग जानते हैं. मुजफ्फरपुर की रहने वाली महाबीरी को अंग्रेजों की नाइंसाफी बिलकुल पसंद नहीं थी. अपने अधिकारों के लिए लडऩे के लिए महाबीरी ने 22 महिलाओं की टोली बनाकर अंग्रेज सैनिकों पर हमला कर दिया. अंग्रेजों को गांव देहात में रहने वाली दलित महिलाओं की इस टोली से ऐसी उम्मीद नहीं थी. अंग्रेज महाबीरी के साहस को देखकर घबरा गए थे. महाबीरी ने दर्जनों अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया और उनसे घिरने के बाद खुद को भी शहीद कर लिया था.

उधमसिंह

भारत के स्वाधीनता संग्राम में उधमसिंह एक ऐसा नाम है, जिसने अपने देश और समाज के लोगों की मौत का बदला लंडन जाकर लिया. उन्होंने जालियांवाला बाग के वक्त पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ डायर को गोलियों से भून डाला. लेकिन इस पराक्रमी नायक को भी दलित होने की वजह से इतिहास के पन्नों में जो जगह मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिल सकी और महज खानपूर्ति की गई.

रामपति चमार
चौरी-चौरा का इतिहास खंगालने पर यह साफ हो जाता है कि स्वतंत्रता आंदोलन में रामपति चमार और उनके अन्य साथियों का भी उल्लेखनीय योगदान है.

सुभाष चंद्र बोस
जब सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश सरकार को खदेडऩे के लिए 26 जनवरी 1942 को आजाद हिन्द फौज बनाई और “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दुंगा” की अपील की तो कैप्टन मोहन लाल कुरील की अगुवाई में हजारों दलित भी फौज में शामिल हो गए. यहां तक की चमार रेजीमेंट पूरी तरह आजाद हिन्द फौज में विलीन हो गई.

इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए. उन तमाम बहुजन नायकों को दलित दस्तक की श्रद्धांजलि.

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

भारत मे पहली बार महिला को होगी फांसी।

भारत मे पहली बार महिला को फाँसी पर लटकाया जाएगा??


  क्या है ये मामला जानते है।
 बात है एप्रैल 2008 कि। यूपी के अमरोहा में एक ही परिवार के 8 सदस्यों की हत्या बड़े ही निर्ममता से के गयी थी। और हत्यारा निकली घर की  अकेली बेटी *शबनम*
 शबनम अपने माँ - बाप की लाडली बेटी थी। पिता प्रोफेसर, शबनम को बड़े लाड प्यार से पाला गया था। और उसने MA तक कि पढ़ाई भी की थी।
 बस शबनम को अपने प्यार में फसाया था एक अनपढ़ पंक्चर छाप लड़के मझहबी सोच वाले लड़के सलीम ने।
शबनम उसके बातो में इतनी आगयी के, जब उसके मा बाप ने इस प्यार का विरोध किया तो ओ पूरे परिवार को नींद की गोलियां खिलाकर अपने आशीष सलीम  के साथ, रंगरेलियां करती थी।
 एक दिन सलीम ने उसे कँहा तेरा परिवार हमारा दुश्मन है, सब को मार डाल, तो शबनम ने अपने घर आकर नींद में बेहोश सोए  अपने परिवार के 7 सदस्य को कुल्हाड़ी से बड़े निर्मार्ता से मार डाला। और शोर मचाया के घर मे किसी ने आकर हमला कर दिया। 
  पुलिस को भी पहले लगा कि इतनी निर्ममता से हत्य्या तो कोई हरामी ही कर सकता है। पर जब जाँच आगे बढ़ी तो, शबनम को गर्भवती पाया गया, जब के न तो उसकी शादी हुयी थी न निकाह। तब पुलिस ने जब डंडा चलाया तो, शबनम ने सब उगल दिया।
 हर कोर्ट ने शबनम की फांसी  को फाँसी की सजा ही सुनाई
 ओर अब राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका भी खारिज कर दी।
 अब एप्रैल 2021 को शबनम को फाँसी पर लटकाया जाएगा।
 ये भारत के स्वतंत्रता के इतिहास में किसी महिला को फाँसी पर लटकाने का पहला केस होगा
 यँहा ये याद रहे, के शबनम ने अपने माँ- बाप, दो सगे भाई, उनकी पत्नियां उनके बेटे, सबको एक मझहबी सलीम के चक्कर मे मौत के घाट उतार दिया था।

 शबनम में जेल के अंदर उसी सलीम का एक बेटा भी जना है।

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

पृथ्वीराज चौहान और उसका कवि:- इतिहास के पन्नो से

चौहान को याद करो…। 

 आज बसंत पंचमी का प्रेरक अवसर है।  यह मां सरस्वती के ज्ञान के साथ हमारे राष्ट्र की रक्षा   का चमकता प्रमाण है।

 अफगानिस्तान के काबुल में एक अंधेरे सेल में, एक नर शेर गुस्से में घूम रहा था।  जिन तलवारों से दुश्मन के टिड्डों का पीछा किया गया था, वे तलवारें जंजीरों से बंधी हुई थीं।  प्रतिशोध की लपटे अभी भी उसकी छीली हुई आँख के छेद में जल रही थी। ऐसे वीर सपूत का नाम "हिंदु शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" था!

 अजयमेरु (अजमेर) के राजपूत नायक ने विदेशी इस्लामी आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को सोलह बार हराया था और हर बार उदारता दिखाते हुए उसे जिंदा छोड़ दिया, लेकिन जब वह सत्रहवीं बार हार गया, तो मोहम्मद गौरी ने उसे जाने नहीं दिया।  वह उन्हें पकड़कर काबुल-अफगानिस्तान ले गया।  वही गौरी जो सोलह बार पराजित होने के बाद भीख मांगने वाले के रूप में दया की भीख माँगता था, ओ अब उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए लगातार प्रताड़ित कर रहा था।  
पृथ्वीराज ने कहा था, "मर जाना बेहतर है लेकिन इस्लाम कबूल नहीं करना"!

 पृथ्वीराज के वफादार शाही कवि "चाँद बरदाई" अपने राजा पृथ्वीराज से मिलने सीधे काबुल पहुँचे!  चंद बरदाई पृथ्वीराज की दयनीय स्थिति को देखकर हैरान रह गए, जबकि वह वहां एक कैदी थे। उन्होंने गौरी से बदला लेने का फैसला किया, जिन्होंने अपने राजा के साथ ऐसा किया था। उसने अपने राजाओं को अपनी योजना बताई और अनुरोध किया, उस  समय उसे मार दिया जाए।  ”

 चंद बरदाई गौरी के दरबार में आए।  उन्होंने गौरी से कहा, "हमारा राजा एक राजसी सम्राट है ... वह एक महान योद्धा है, लेकिन मेरे राजा की एक विशेषता यह है कि आप इस बात से अवगत नहीं हैं कि हमारे राजा ध्वनि-ध्यान-प्रवेश में पारंगत हैं!"  वे केवल एक ध्वनि अवरोध के साथ तीरों की शूटिंग करके सही निशाना चुनने में अच्छे हैं!  यदि आप चाहें, तो आप अपने लिए उसके भेदी तीरों का अद्भुत प्रदर्शन देख सकते हैं!

 इस पर विश्वास न करते हुए, गौरी ने कहा, "ओह, मैंने आपके राजा की दोनों आँखें तोड़ दी हैं ... तो एक अंधा आदमी धनुष कैसे मार सकता है?"
 
 चंद बरदाई ने विनम्रता से जवाब दिया, "खविंद, अगर आपको सच्चाई पर विश्वास नहीं है, तो आप वास्तव में इस विद्या को देख सकते हैं। ... मेरे राजाओं को यहाँ दरबार में बुलाएँ। यहाँ से कुछ दूरी पर सात लोहे के फ्राइंग पैन रखें ...!"

 गौरी ने धृष्टतापूर्वक मुस्कुराते हुए कहा, "आप अपने राजा के बहुत बड़े प्रशंसक हैं! लेकिन याद रखें ... यदि आपका राजा इस कला को नहीं दिखा सका, तो मैं आपके और आपके राजा के सिर को उसी दरबार में फूँक दूंगा!"

 चंद बरदाई गौरी की शर्त पर सहमत हो गए और जेल में अपने प्यारे राजा से मिलने आए।  वहाँ उन्होंने पृथ्वीराज से गौरी के साथ बातचीत के बारे में बताया, अदालत के विस्तृत लेआउट के बारे में बताया और उन दोनों ने मिलकर अपनी योजना बनाई ...

 जैसा कि योजना बनाई गई थी, गौरी ने अदालत को भर दिया और अपने राज्य के सभी शीर्ष अधिकारियों को इस कार्यक्रम को देखने के लिए आमंत्रित किया।  भल्लर चोपदार ने वर्दी दी कि मोहम्मद गौरी अदालत में आ रहा था।  और गौरी अपनी ऊँची सीट पर बैठ गया!

 चंद बरदाई के निर्देश के अनुसार, सात बड़े लोहे के तवों को एक निश्चित दिशा और दूरी में रखा गया था।  पृथ्वीराज की आंखें निकाली गईं थी और उन्हें अंधा कर दिया गया था, उन्हें चंद बरदाई की मदद से अदालत में लाया गया।  अपने उच्च स्थान के सामने खुले स्थान में, पृथ्वी  राजा को बैठाया गया था ताकि गौरी "भेदी तीर का शब्द" देख सकें।

 चंद बरदाई ने गौरी से कहा, "खविंद, मेरे राजाओं की जंजीरों और हथकड़ी को हटा दिया जाना चाहिए, ताकि वे उनकी इस अद्भुत कला को प्रदर्शित कर सकें।"
 गौरी को इसमें कोई ख़तरा महसूस नहीं हुआ, क्योंकि एक ओर, पृथ्वीराज को  अंधा कर दिया गया था, ओर चाँद बरदाई को छोड़ दिया, तो उसके पास कोई सैनिक नहीं है ... और मेरी सारी सेना मेरे साथ अदालत में मौजूद है  उन्होंने तुरंत पृथ्वीराज को रिहा करने का फरमान जारी किया।

 चंद बरदाई ने अपने प्यारे राजा के पैर छूकर सावधान रहने का अनुरोध किया ... उन्होंने कहा कि उपाधियां उनके राजा की प्रशंसा करती हैं ... और इसी पद के माध्यम से चंद बरदाई ने अपने राजा को संकेत दिया।

 * "चार बाँस, चौबीस गज, सबूत की आठ उंगलियाँ।"
 * ता ऊपर सुल्तान है, याद राखे चौहान। "*

  सुल्तान चार बांस, चौबीस गज और आठ फीट… की ऊंचाई पर बैठा है।  तो राजा चौहान कोई गलती न करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करें!

 इस प्रतीकात्मक डिग्री से, पृथ्वीराज को मोहम्मद गौरी के बैठने की दूरी का सटीक अनुमान लगा।
 
 चंद बरदाई ने फिर से गौरी से निवेदन किया, "सर, मेरे राजा आपके बंदी हैं, इसलिए वे  तब तक  तीर। नहीं चलाएंगे जब तक आप उन्हें आज्ञा नहीं देते, इसलिए आप मेरे राजाओं को इतनी जोर से तीर चलाने की आज्ञा दें कि ओ उन्हें स्वयं सुन सकें।"

 गौरी प्रशंसा से अभिभूत था और वह जोर से चिल्लाया, * "चौहान चललो तीर ... चौहान चालो तीर!!"

 जैसे ही पृथ्वीराज चौहान ने गौरी की आवाज़ सुनी, उन्होंने अपने धनुष पर तीर चढ़ाया और गौरी की आवाज़ की दिशा में तीर चलाया और तीर ने गौरी की छाती में छेद कर दिया!

 मोहम्मद गौरी का शरीर सिंहासन से नीचे गिर गया, और चिल्लाया "या अल्लाह! दाग हो गया"!

 कोर्ट में एक ही हंगामा शुरू हो गया।  सभी प्रमुख कांप उठे, उसी अवसर को लेते हुए, चंद बरदाई अपने प्यारे राजा के पास भागे ... उन्होंने अपने राजा को बताया कि गौरी की मृत्यु हो गई और उनका पतन हो गया ... उनके बहादुर राजा को प्रणाम किया ... वे दोनों एक दूसरे से गले मिले .उन्हें ये मालूम था के गौरी की सेना  अब अत्याचार करेगी और हमे मार डालेगी... इसलिए, जैसा कि योजना बनाई गई थी, दोनों ने एक-दूसरे पर हमला किया और वसंत पंचमी के शुभ दिन पर, उन्होंने मां सरस्वती के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया!

 पृथ्वीराज चौहान और कवि चंद बरदाई के आत्म-बलिदान की यह वीर गाथा हमारे भारतीय बच्चों को गर्व के साथ सुनाई जानी चाहिए, और उन तक पहुँचना आवश्यक है, इसलिए हम आज आपके सामने इसे लेकर आए हैं।

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

सैनिक की मृत्यु पर गाये जाने वाले द लास्ट पोस्ट गाने का इतिहास।

यदि आप में से कोई भी कभी एक सैन्य अंतिम संस्कार में गया है जिसमें द लास्ट पोस्ट खेला गया था;
 इससे इसका एक नया अर्थ निकलता है।

 यहां कुछ ऐसा है जो सभी को जानना चाहिए।

 जब तक मैंने इसे पढ़ा, मुझे नहीं पता था,
 

 हम सभी ने भूतिया गाना 'द लास्ट पोस्ट' सुना है।
 यह गीत है जो हमें हमारे गले में गांठ देता है और आमतौर पर हमारी आँखों में आँसू होता है।

 लेकिन, क्या आप गाने के पीछे की कहानी जानते हैं?
 यदि नहीं, तो मुझे लगता है कि आप इसकी विनम्र शुरुआत के बारे में जानने के लिए इच्छुक होंगे।

 कथित तौर पर, यह सब 1862 में अमेरिकी नागरिक युद्ध के दौरान शुरू हुआ, जब यूनियन आर्मी के कप्तान रॉबर्ट एलिकॉम्बे वर्जीनिया में हैरिसन की लैंडिंग के पास अपने लोगों के साथ थे ... कॉन्फेडरेट आर्मी जमीन की संकीर्ण पट्टी के दूसरी तरफ थी।

 रात के दौरान, कप्तान एलिकॉम्बे ने एक सैनिक के विलाप को सुना, जो मैदान पर गंभीर रूप से घायल था।  यह जानते हुए भी कि यह एक संघ या संघि सिपाही था, कैप्टन ने अपने जीवन को खतरे में डालने और घायल व्यक्ति को चिकित्सा के लिए वापस लाने का फैसला किया।  बन्दूक के जरिये उसके पेट  के बल रेंगते रेंगते  हुए, कैप्टन भटके हुए सिपाही के पास पहुँच गया और उसे अपने डेरा की ओर खींचने लगा।

 जब कैप्टन आखिरकार अपनी ही पंक्तियों में पहुँच गया, तो उसने पाया कि यह वास्तव में एक कॉन्फेडरेट सैनिक था, लेकिन सैनिक मर चुका था।

 कैप्टन ने एक लालटेन जलाई और अचानक उसकी सांस पकड़ी और झटके के साथ सुन्न हो गया।  मंद रोशनी में, उसने सिपाही का चेहरा देखा .. यह उसका अपना बेटा था।  युद्ध शुरू होने पर लड़का दक्षिण में संगीत का अध्ययन कर रहा था।  अपने पिता को बताए बिना, लड़का कॉन्फेडरेट आर्मी में भर्ती हो गया।

 अगली सुबह, दिल टूट गया, पिता ने अपने दुश्मनों की स्थिति के बावजूद, अपने वरिष्ठों को अपने बेटे को पूर्ण सैन्य दफनाने की अनुमति देने के लिए कहा।  उनका अनुरोध केवल आंशिक रूप से प्रदान किया गया था।

 कैप्टन ने पूछा था कि क्या वह आर्मी बैंड के सदस्यों के एक समूह के अंतिम संस्कार में अपने बेटे के लिए अंतिम संस्कार कर सकते हैं।

 सिपाही के कन्फेडरेट होने के बाद से अनुरोध ठुकरा दिया गया था।

 लेकिन, पिता के सम्मान से, उन्होंने कहा कि वे उन्हें केवल एक संगीतकार दे सकते हैं।

 कैप्टन ने एक बगलर को चुना।  उन्होंने मृतक युवक की वर्दी की जेब में कागज के एक टुकड़े पर पाए जाने वाले संगीत नोट्स की एक श्रृंखला खेलने के लिए बगलर से पूछा।

 यह इच्छा दी गई।

 भूतिया राग, जिसे अब हम सैन्य अंत्येष्टि में प्रयुक्त 'द लास्ट पोस्ट' के रूप में जानते हैं।

 शब्द हैं:

 दिन हो गया।
 सूरज हो गया ।।
 झीलों से
 पहाड़ियों से।
 आसमान से।
 सब ठीक हैं।
 आराम से।
 परमात्मा nigh है।

 धूंधली प्रकाश।
 दृष्टि को गिराता है।
 और एक तारा।
 आकाश देता है।
 चमचमाता हुआ चमकीला।
 दूर से..
 आह भरते हुए।
 रात गुजारो ।।

 धन्यवाद और प्रशंसा।
 हमारे दिनों के लिए।
 सूरज के नीचे
 तारों के नीचे।
 आकाश के नीचे
 जैसे ही हम जाएं।
 यह हम जानते हैं।
 परमात्मा nigh है

 मुझे भी 'द लास्ट पोस्ट' सुनते हुए ठंड लग रही है
 लेकिन मैंने अब तक गीत के सभी शब्दों को कभी नहीं देखा है।
 मुझे पता भी नहीं था कि एक से अधिक कविताएँ हैं।
 मैं भी कभी गाने के पीछे की कहानी नहीं जानता था और मुझे पता नहीं था कि नहीं
 आपके पास या तो मैंने सोचा था कि मैं इसे पास कर दूंगा।

 मेरे पास पहले के मुकाबले अब गीत के लिए और भी गहरा सम्मान है।

 अपने देश की सेवा करते हुए उन खोए और नुकसान को याद करें।

 उन लोगों को भी याद रखें जिन्होंने सेवा की है और लौट आए हैं;
 और वर्तमान में सशस्त्र बलों में सेवारत हैं।

 कृपया इसे भेजें।

 हमारे सैनिकों के लिए ... कृपया इसे न तोड़े।

English

If any of you have ever been to a military funeral in which The Last Post was played;
This brings out a new meaning of it.

Here is something everyone should know.

Until I read this, I didn't know,
 

We have all heard the haunting song, 'The Last Post.'
It's the song that gives us the lump in our throats and usually tears in our eyes.

But, do you know the story behind the song?
If not, I think you will be interested to find out about its humble beginnings.

Reportedly, it all began in 1862 during the American Civil War, when Union Army Captain Robert Ellicombe was with his men near Harrison's Landing in   Virginia   ...  The Confederate Army was on the other side of the narrow strip of land.

During the night, Captain Ellicombe heard the moans of a soldier who lay severely wounded on the field.  Not knowing if it was a   Union   or Confederate soldier, the Captain decided to risk his life and bring the stricken man back for medical attention. Crawling on his stomach through the gunfire, the Captain reached the stricken soldier and began pulling him toward his encampment.

When the Captain finally reached his own lines, he discovered it was actually a Confederate soldier, but the soldier was dead..

The Captain lit a lantern and suddenly caught his breath and went numb with shock.  In the dim light, he saw the face of the soldier.. It was his own son. The boy had been studying music in the South when the war broke out.  Without telling his father, the boy enlisted in the Confederate Army.

The following morning, heartbroken, the father asked permission of his superiors to give his son a full military burial, despite his enemy status. His request was only partially granted.

The Captain had asked if he could have a group of Army band members play a funeral dirge for his son at the funeral.

The request was turned down since the soldier was a Confederate.

But, out of respect for the father, they did say they could give him only one musician.

The Captain chose a bugler.  He asked the bugler to play a series of musical notes he had found on a piece of paper in the pocket of the dead youth's uniform.

This wish was granted.

The haunting melody, we now know as 'The Last Post' used at military funerals was born.

The words are: 

Day is done. 
Gone the sun.. 
From the lakes  
From the hills.   
From the sky. 
All is well.   
Safely rest.   
God is nigh. 

Fading light. 
Dims the sight. 
And a star. 
Gems the sky. 
Gleaming bright.   
From afar..   
Drawing nigh.   
Falls the night.. 

Thanks and praise.   
For our days.   
Neath the sun   
Neath the stars.   
Neath the sky 
As we go. 
This we know.   
God is nigh

I too have felt the chills while listening to 'The Last Post'
But I have never seen all the words to the song until now.
I didn't even know there was more than one verse . 
I also never knew the story behind the song and I didn't know if
You had either so I thought I'd pass it along.

I now have an even deeper respect for the song than I did before.

Remember Those Lost and Harmed While Serving Their Country.

Also Remember Those Who Have Served And Returned;
And for those presently serving in the Armed Forces.

Please send this on.

For our soldiers...please don't break it .


आढ़तियों का आंदोलन और किसान उत्पादन का अर्थशास्र:- भारत

INR 30,000 करोड़ हर साल पंजाब से भारत से पश्चिमी देशों में भेजा जाता है।
 सच्चा पुत्र धन को अपनी मातृभूमि में लाता है, गद्दारी उसे निकाल लेती है।

 पुरानी कहावत है, शायद गॉडफादर फिल्म में, "विश्वासघात के बारे में सबसे दुखद बात यह है कि यह दुश्मन से नहीं आता है"।

 * कृषि की मान्यता -: - *

 * कल रिपब्लिक टीवी पर एक बहस में, भाजपा के संजू वर्मा ने कहा कि एमएसपी आवंटन का 70% सिर्फ दो राज्यों में जाता है *: - पंजाब और हरियाणा। *

 * इसके लिए, प्रो। डी। के। गिरि ने प्रतिवाद किया, 'लेकिन वे देश के खाद्य उत्पादन में 70% का योगदान देते हैं। *

 *क्या वे..???*

 *चलो पता करते हैं:*

 * वर्ष 2017-18 के आंकड़े निम्नानुसार हैं: *

 * व्हाईट: - *

 * सबसे बड़ा योगदानकर्ता यू.पी.  (31.98%) *
 * (पंजाब # 2 (17.9%), * द्वारा फ़ॉलो किया गया)
 *एमपी।  # ३ (१५.९ ६%), हरियाणा # ४ (११.१ ९%)। * * राजस्थान, बिहार और गुजरात # ५, ६, और # पर एक साथ २१.० ९% के हिसाब से चलते हैं। *
 * इससे पता चलता है कि पंजाब और हरियाणा ने 2017-18 में कुल गेहूं उत्पादन में 28.28% का योगदान दिया। *

 *चावल के धान)*

 * पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ा योगदानकर्ता 13.26% इसी अवधि ('17 -18) के साथ था। *
 * पंजाब द्वारा पीछा # 2 (11.85%), यू.पी.  # 3 (11.75%), आंध्र # 4 (7.24%), बिहार # 5 (7.01%), तमिलनाडु # 6 (6.45%), उड़ीसा # 7 (5.78%), तेलंगाना # 8 (5.54%), असम (  9 (4.57%), Ch'garh # 10 (4.19%), हरियाणा # 11 (4.0%), MP  # 12 (3.65%)।  अन्य 14.71%

 * पंजाब (@ # 2) और हरियाणा (@ # 11) ने मिलकर देश के कुल चावल उत्पादन का 15.85% योगदान दिया। *

 * तो, 70% मिथक उड़ गया। "
 * और यह न केवल असंगठित प्राध्यापक है, बल्कि हम में से अधिकांश लोगों के बीच सामान्य धारणा यह है कि पंजाब और हरियाणा एक विशेष सहायक आपूर्तिकर्ता हैं। *
 * बहस के दौरान आंध्र के एक प्रसिद्ध किसान नेता श्री चेंगल रेड्डी ने कहा कि चावल और गेहूं उत्पादक किसान ही हैं। * *
 * "नोट करने के लिए एक बिंदु"। *
 * फल और सब्जी उत्पादक, मिर्च और मसालों के उत्पादक, दालें, तेल के बीज, कंद, रबड़, कपास, गन्ना और अन्य हैं। *
 * वे किसान भी हैं!  इसलिए, पंजाब के किसान देश को फिर से पकड़ नहीं सकते, यह संदेश है कि चेंगल रेड्डी, साथ ही ऊपर दिए गए आंकड़े, * वितरित करते हैं।

 *अस्वीकरण-:*
 * मैं पहले एक पंजाबी BUT एक भारतीय हूं। "

 * तो इस किसान आंदोलन की आर्थिक स्थिति पर देखें: - *

 1. "पंजाबी किसान एमएसपी प्रोक्योरमेंट पर पूरे देश के बजट का लगभग 55% भाग लेते हैं। * * देश का खाद्य अनाज की खरीद का बजट एक असीमित राशि नहीं है, सरकार पीडीएस और बफर स्टॉक की उतनी ही खरीद कर सकती है जितनी उसे चाहिए।  *
 * इसलिए पंजाब अनाज खरीद के लिए पूरे देश के बजट का 55% भाग निकाल रहा है, जबकि देश की कुल खेती का केवल 6% पंजाब में रहता है। *
 * इस प्रकार सरकार द्वारा अन्य सभी राज्यों से एकत्र किए गए आयकर और जीएसटी को प्रभावी रूप से केवल पंजाब के किसानों द्वारा लिया जा रहा है। *
 * उन राज्यों के किसानों के बारे में क्या ।???* * केंद्र सरकार को बाकी राज्यों में रहने वाले 94% किसानों से खरीद क्यों नहीं करनी चाहिए। *
 * यदि कुछ 'अन्नदाता' / 'आई एम विथ फार्मर' यह कहना चाहता है कि सरकार को अन्य राज्यों से भी एमएसपी की खरीद बढ़ानी चाहिए, तो वह एक इडियट है क्योंकि सरकार पीडीएस, सरकार, के लिए आवश्यक बजट के अनुसार सीमित मात्रा में ही खरीद सकती है।  भारत में उत्पादित प्रत्येक अनाज की खरीद की उम्मीद नहीं की जा सकती है। *

 2. "फैशनेबल मैं किसान के साथ हूं" / 'अन्नदता' प्रकार भी सरकार द्वारा एमएसपी के लिए किसान की खरीद के लिए असीमित खरीद करने के लिए आयकर और जीएसटी बढ़ाने के क्रम में आंदोलन शुरू करने के लिए आगे आना चाहिए, क्योंकि आप हैं  मंडियों में निजी क्षेत्र के प्रवेश के खिलाफ ... *
 * तो पंजाब के इन सभी उद्योग संघों जो बहुत ही फैशनेबल ढंग से कहते हैं कि मैं किसान के साथ हूं, इन फैशन स्टेटमेंट को निधि देने के लिए कर में भारी वृद्धि का प्रस्ताव देना चाहिए। *

 4. "पंजाबी किसान को गेहूं और धान चक्र के आदी होने के परिणामस्वरूप, ये वस्तुएं ग्लूट में हैं ..... *
 * करदाताओं के करोड़ों रुपए का पैसा हर साल बर्बाद हो जाता है क्योंकि पंजाबी किसानों से अत्यधिक खरीद के बाद जो कि सड़ने और चूहों द्वारा खाए जाने के लिए छोड़ दिया जाता है। *
 * इसलिए नहीं कि हमारे पास गोदाम नहीं हैं, बल्कि इसलिए कि पंजाबी किसान गेहूं और धान के आदी हैं और यह अधिक से अधिक उत्पादन करता है क्योंकि वह जानता है कि वह सरकार को एमएसपी खरीदने के लिए मजबूर करेगा। *

 4. * इस अत्यधिक उत्पादन को करने में, पंजाबी किसान न केवल खरीद के लिए पूरे देश का 55% (लगभग 75000 करोड़ रुपये) नकद निकाल रहा है, बल्कि रुपये के साथ राज्य सरकार पर भी बोझ डाल रहा है।  10000 बिजली सब्सिडी के करोड़ और इसके शीर्ष पर उर्वरक सब्सिडी लगभग।  रु।  40000 करोड़ और राज्य के शीर्ष पर 90% भू जल है। *
 * यही 'अन्नदाता' हमसे छीन रहा है। "
 * इस बारे में स्पष्ट रहें। *

 5. "पंजाबी किसान को इतनी बड़ी नकदी इनाम ने उसे पूरे देश में सबसे आलसी किसान बना दिया है। * * पंजाबी किसान फल और सब्जी की खेती में क्यों नहीं जाता है ..... क्योंकि उसे खेत पर डेली हार्डवर्क की आवश्यकता होती है, जहां  चूंकि गेहूं और धान की बुवाई के समय एक बार प्रयास करने की आवश्यकता होती है और फिर कीटनाशक / यूरिया की बौछार के लिए कुछ दौरे और इसे पूरा करना पड़ता है ..... अपने जिला परिषद / मंडी समिति की राजनीति 3 महीने के लिए मुफ्त में बैठे और आपकी फसल होगी  कप्तान के गन पॉइंट में CASH में परिवर्तित होने के लिए 4 महीने के बाद तैयार। "
 * मैं कप्तान के गनपॉइंट को बाद में समझाऊंगा। *

 6. "क्योंकि आपने राज्य के संसाधनों (10000 करोड़ रुपये की बिजली सब्सिडी) को भी छीन लिया है, राज्य और उद्योग की अन्य आबादी को रु।  9-रु।  10 प्रति यूनिट जो पूरे देश में सबसे महंगा है। ”
 * परिणामस्वरूप, उद्योग फलने-फूलने और बड़े पैमाने पर या राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने में असमर्थ है। *
 * इस राज्य के कितने उद्योग राष्ट्रीय खिलाड़ी बन गए हैं?

 7. "और इसलिए भी क्योंकि पंजाबी किसान पूरे देश के खाद्य खरीद बजट का 55% से कम करने में सक्षम है, पंजाब में भूमि की कीमतें देश में सबसे अधिक हैं। *
 * यह फिर से नए उद्योग की स्थापना करता है क्योंकि भूमि बहुत महंगी है। *

 8. "नो वंडर कि खालिस्तानी सिम्पेथाइज़र जस्टिन ट्रूडो को पंजाबी किसान विरोध के बारे में भौंकना होगा क्योंकि भारत का करदाता पैसा कनाडा की अर्थव्यवस्था वाया पंजाब रूट में बह रहा है। *
 * ऊपर सूचीबद्ध के रूप में भारी सब्सिडी को भुनाए जाने के बाद, पंजाबी किसान अपनी भूमि को घेरता है और पैसे को कनाडा ले जाता है। *
 * हर साल लाखो लोग पंजाब की यात्रा करते हैं।  रु।  विदेशों में आव्रजन के माध्यम से 30000 करोड़। *
 * जस्टिन डॉग ट्रूडो इन पंजाबियों से पैसा कमा रहे हैं, उन्हें उनके लिए भौंकना होगा। "

 9. "इस नकली किसान आंदोलन के बारे में ये सभी एनआरआई पंजाबी गीत और नृत्य बना रहे हैं।
 * कनाडा में एक भी पैसा योगदान किए बिना कनाडा में अपनी आरामदायक जीवन शैली से दूर रहना जहां से यह एमएसपी खरीद या मुफ्त बिजली होती है, और फिर अपने सोशल मीडिया हैंडल पर भारत के बारे में बकवास बात करते हैं। *

 10. "अंत में, मैं कैप्टन गनपॉइंट के लिए आता हूं .... जो वास्तव में एक अद्भुत विशेषता है .... *
 * तो मुद्दा यह है कि कैप्टन के अनुसार, अगर केंद्र सरकार किसानों की ILLEGAL मांगों के आगे नहीं झुकती है, तो पंजाबी सिख खालिस्तान विचारधारा की ओर रुख करेंगे। *
 * बंदूक तुम्हें इशारा करती है, समझ गया।

 11. "संक्षेप में, यह नकली किसान आंदोलन पिछले 40 वर्षों में स्थापित किए गए अपने निशुल्क लंच की रक्षा करने वाले लॉर्ड्स के बारे में है।"

 * मैं कम से कम 5 किसानों के साथ छोटे किसानों के लिए एक गारंटीकृत एमएसपी सौदा का समर्थन करता हूं।  बाकी सभी एक मुक्त सुरक्षा कार्यक्रम है, जो अन्य स्थानों के चुनावों के राजनीतिक समर्थन के साथ आता है। *
 * अगर यह पूरी तरह से 'ANNADATA' के बारे में है, जो कि PUNJABI किसानों को 55% साझा करने का प्रस्ताव देता है, तो वे अन्य राज्य के किसानों के MSP PROCUREMENTIN FAVOR पर राष्ट्रीय बॉडगेज से मिल रहे हैं। *

 * * ANNADATA ’TAGLINE ..... का प्रचार करें। *
 * मैं पैसे, हनी के बारे में सब कुछ !!

Engilsh:-

INR 30,000 crore every year is siphoned off from Punjab out of India to western countries.
The true son brings wealth into his motherland, the betrayer takes it out.

The old saying goes, probably in the Godfather movie, " the saddest thing about betrayal is that it doesn't come from the enemy".

*FARMER'S AGITATION-:-*

*In a debate on Republic TV yesterday, Sanju Varma of BJP said 70% of the MSP allocation goes to just two states *:-- Punjab and Haryana.* 

*To this, Prof. D K Giri retorted, 'but they also contribute 70% of the country's food production'.*

*DO THEY..???*

*Let's find out:*

*Statistics for the year 2017-18 show as follows:*

*WHEAT:-*

*The largest contributor was U.P. (31.98%).*
*(Followed by Punjab #2 (17.9%),*
*M.P. #3 (15.96%), Haryana #4 (11.19%).* *Rajasthan, Bihar and Gujarat follow at #5, 6 and 7 together accounting for 21.09%.*
*This shows that Punjab and Haryana together contributed  28.28% of the total wheat production in 2017-18.*

*RICE (PADDY)*

*The largest contributor was West Bengal, with 13.26% for the same period ('17-18).*
*Followed by Punjab #2 (11.85%), U.P. #3 (11.75%), Andhra #4 (7.24%), Bihar #5 (7.01%), Tamil Nadu #6 (6.45%), Orissa #7 (5.78%), Telengana #8 (5.54%), Assam #9 (4.57%), Ch'garh #10 (4.19%), Haryana #11 (4.0%), M.P. #12 (3.65%). Others 14.71%.*

*Punjab (@#2) and Haryana (@#11) together contributed 15.85% of the country's total rice production.*

*So, the 70% myth gets blown away.*
*And it is not only the uninformed professor, but the general impression among most of us is that Punjab and Haryana are our exclusive food suppliers.*
*During the debate, Shri, Chengal Reddy, a renowned farmer's leader from Andhra said that rice and wheat producers are not the only farmers.!* 
*"A POINT TO NOTE".*
*There are fruits and vegetable producers,  producers of chilli and spices, pulses, oil seeds, tubers, rubber, cotton, sugarcane and others.*
*They are farmers, too! Therefore, Punjab farmers cannot hold the country to ransom is the message that Chengal Reddy, as well as the statistics given above, delivers.*

*DISCLAIMER-:*
*I am a Punjabi BUT an Indian first.*

*SO LETS LOOK AT THE ECONOMICS OF THIS FAKE FARMER AGITATION:--*

1. *Punjabi Farmers take away approx, 55% of the Whole Country's Budget on MSP Procurement.* *Country's budget on Food Grain procurement is not an UNLIMITED amount, the Government can procure only as much as it needs for PDS and buffer stock.*
*So Punjab is cashing away 55% of the entire country's budget meant for grain procurement, while only 6% of the country's total farming population lives in Punjab.*
*Thus Income Tax & GST collected by Government from all other States is effectively being taken away by Punjab Farmers only.*
*What about Farmers of those states.???* *Why should the central government not purchase from rest of the 94% Farmers living in the other states.*
*If some 'Annadata' / 'I m with Farmer' wants to say that Govt should increase MSP procurement from other states also, then he is an Idiot because Govt can procure only a limited quantity within its budget as required for PDS, Govt, cannot be expected to procure each and every grain produced in India.*

2. *The fashionable 'I am with farmer'/ 'Annadata' types must also come forward to launch agitation asking Govt, to hugely increase Income Taxes and GST in order to raise money for making UNLIMITED purchases of farmer produce at MSP because you are against the entry of Private Sector into Mandis...*
*So all these Industry Associations of Punjab who very fashionably say I am with Farmer must offer to pay huge increase in Taxes also to fund these fashion statements.*

3. *As a result of Punjabi Farmer getting addicted to Wheat & Paddy cycle, these commodities are in glut.....*
*Lacs of Crores of TaxPayer money goes waste every year because of excessive procurement from Punjabi Farmers which is then left to rot and to be eaten by rats.*
*Not because we don't have godowns, but because Punjabi farmer is addicted to Wheat and Paddy and it producing more and more because he knows that he will force govt to purchase at MSP.*

4. *In doing this excessive production, Punjabi farmer is not only cashing away 55% of entire country's money (about Rs. 75000 Crore) for procurement but also burdening the State Govt with Rs. 10000 Crore of Electricity Subsidy and on top of it the Fertilizer Subsidy of approx. Rs. 40000 Crore AND ON TOP OF IT 90% OF THE STATES GROUND WATER.*
*This is what the 'Annadata' is taking away from us.*
*Be clear about this.*

5. *Such huge cash bounty to Punjabi Farmer has made him most lazy farmer out of the entire country.* *Why does not Punjabi farmer move to Fruits & Vegetable farming.....because it requires Daily Hardwork on the farm, where as Wheat & Paddy require a one time effort at time of sowing and then a couple of visits for Pesticide/ Urea shower and thats it.....do your Zila Parishad/ Mandi Committee politics sitting free for 3 months and your crop will be ready after 4 months for converting into CASH at Captain's Gunpoint.*
*I will explain the Captain's Gunpoint later.*

6. *Also because you have taken away the State resources also (electricity subsidy of Rs. 10000 Crore), the other population of the State and Industry have to pay Rs. 9-Rs. 10 per Unit which is most expensive in the whole country.* 
*As a result, the Industry is unable to flourish and become Large Scale or Nationally competitive.* 
*How many Industries from this State have become National Players.???*

7. *And also because Punjabi Farmer is able to CASH OFF 55% of the whole country's food procurement budget, the Land Prices in Punjab are the highest in the country.*
*This again makes setting up of new Industry UNVIABLE as land is too expensive.*

8. *No Wonder that Khalistani Sympathizer Justin Trudeau has to bark about the Punjabi Farmer protest because INDIA's taxpayer money is flowing into Canadian Economy Via Punjab Route.*
*After Cashing Off the huge subsidies as listed above, the Punjabi Farmer encashes his land and moves the money to Canada.*
*Every year lacs of Punjabis take away approx. Rs. 30000 Crore through Immigration to foreign countries.*
*Justin Dog Trudeau is making money out of these Punjabis, he has to bark for them.*

9. *All these NRI Punjabis making song and dance about this Fake Farmer Agitation are all WOKES.*
*Living off their comfortable lifestyles in Canada without contributing a single penny to TAXES from which this MSP Purchase or Free Electricity happens, and then talking bullshit about India on their Social Media handles.*

10. *Lastly, I come to Captains Gunpoint....which is really a wonderful feature....*
*So the point is that as per Captain, if the Central Government does not succumb to the ILLEGAL demands of the farmers, then the Punjabi Sikhs will turn to Khalistan ideology.*
*Thats the gun pointing at you, got it.???*

11. *In summary, this Fake Farmer Agitation is all about the LARGE LANDHOLDERS protecting their FREE LUNCH set up over the last 40 years.*

*I SUPPORT A GUARANTEED MSP DEAL FOR SMALL FARMERS WITH LANDHOLDING UPTO 5 ACRE. REST ALL IS A FREE LUNCH PROTECTION PROGRAMME COMING WITH POLITICAL SUPPORT OF THOSE WHO OTHERWISE LOOSE ELECTIONS.*
*IF IT REALLY WAS ABOUT 'ANNADATA' THEN PUNJABI FARMERS SHOULD OFFER TO DECREASE THE 55% SHARE THEY ARE CAPTURING FROM THE NATIONAL BUDGET ON MSP PROCUREMENTIN FAVOUR OF OTHER STATES' FARMERS.*

*SPARE THE 'ANNADATA' TAGLINE.....*
*ITS ALL ABOUT MONEY, HONEY!!*