शिवसैनिक ओर ठाकरे परिवार न देखे🙏 क्यो के इसलिए आदरणीय बालासाहेब जी ने अपने जीते जी कभी भी कोंग्रेस से समझौता नही किया था। आज उनका पुत्र उसी कोंग्रेस के साथ महज कुर्सी के लिए बिक गया है।
शनिवार, 1 मई 2021
रविवार, 18 अप्रैल 2021
हरामी नेहरू ओर देशभक्त डालमिया :-इतिहास के पन्नो से
डालडा और नेहरू
आप सोच रहे होंगे डालडा और नेहरू का क्या सम्बन्ध है? उत्तर है, बहुत गहरा। डालडा हिन्दुस्तान लिवर का देश का पहला वनस्पति घी था जिसके मालिक थे स्वतन्त्र भारत के उस समय के सबसे धनी सेठ रामकृष्ण डालमिया और यह लेख आपको अवगत कराता है कि नेहरू कितना दम्भी, कमीना , हिन्दू विरोधी और बदले के दुर्भाव और मनोविकार से ग्रसित इन्सान था।
#टाटा #बिड़ला और #डालमिया ये तीन नाम बचपन से सुनते आए है। मगर डालमिया घराना अब न कही व्यापार में नजर आया और न ही कहीं इसका नाम सुनाई देता है।
#डालमिया घराने के बारे में जानने की बहुत इच्छा थी -
लीजिए आप भी पढ़िए की #नेहरू के जमाने मे भी १ लाख करोड़ के मालिक डालमिया को साजिशो में फंसा के #नेहरू ने कैसे बर्बाद कर दिया।
ये तस्वीर है राष्ट्रवादी खरबपति सेठ रामकृष्ण डालमिया की , जिसे नेहरू ने झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया तथा कौड़ी-कौड़ी का मोहताज़ बना दिया।
वास्तव में डालमिया जी ने स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ मिलकर गौहत्या एवम हिंदू कोड बिल पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर नेहरू से कड़ी टक्कर ले ली थी। लेकिन नेहरू ने हिन्दू भावनाओं का दमन करते हुए गौहत्या पर प्रतिबंध भी नही लगाई तथा हिन्दू कोड बिल भी पास कर दिया और प्रतिशोध स्वरूप हिंदूवादी सेठ डालमिया को जेल में भी डाल दिया तथा उनके उद्योग धंधों को बर्बाद कर दिया।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस व्यक्ति ने नेहरू के सामने सिर उठाया उसी को नेहरू ने मिट्टी में मिला दिया।
देशवासी प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और सुभाष बाबू के साथ उनके निर्मम व्यवहार के बारे में वाकिफ होंगे मगर इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने अपनी ज़िद के कारण देश के उस समय के सबसे बड़े उद्योगपति सेठ रामकृष्ण डालमिया को बड़ी बेरहमी से मुकदमों में फंसाकर न केवल कई वर्षों तक जेल में सड़ा दिया बल्कि उन्हें कौड़ी-कौड़ी का मोहताज कर दिया।
जहां तक रामकृष्ण डालमिया का संबंध है, वे राजस्थान के एक कस्बा चिड़ावा में एक गरीब अग्रवाल घर में पैदा हुए थे और मामूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने मामा के पास कोलकाता चले गए थे।
वहां पर बुलियन मार्केट में एक salesman के रूप में उन्होंने अपने व्यापारिक जीवन का शुरुआत किया था। भाग्य ने डटकर डालमिया का साथ दिया और कुछ ही वर्षों के बाद वे देश के सबसे बड़े उद्योगपति बन गए।
उनका औद्योगिक साम्राज्य देशभर में फैला हुआ था जिसमें समाचारपत्र, बैंक, बीमा कम्पनियां, विमान सेवाएं, सीमेंट, वस्त्र उद्योग, खाद्य पदार्थ आदि सैकड़ों उद्योग शामिल थे।
डालमिया सेठ के दोस्ताना रिश्ते देश के सभी बड़े-बड़े नेताओं से थी और वे उनकी खुले हाथ से आर्थिक सहायता किया करते थे।
इसके बाद एक घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया। कहा जाता है कि डालमिया एक कट्टर सनातनी हिन्दू थे और उनके विख्यात हिन्दू संत स्वामी करपात्री जी महाराज से घनिष्ट संबंध थे।
करपात्री जी महाराज ने १९४८ में एक राजनीतिक पार्टी 'राम राज्य परिषद' स्थापित की थी। १९५२ के चुनाव में यह पार्टी लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी और उसने १८ सीटों पर विजय प्राप्त की।
हिन्दू कोड बिल और गोवध पर प्रतिबंध लगाने के प्रश्न पर डालमिया से नेहरू की ठन गई. पंडित नेहरू हिन्दू कोड बिल पारित करवाना चाहते थे जबकि स्वामी करपात्री जी महाराज और डालमिया सेठ इसके खिलाफ थे।
हिन्दू कोड बिल और गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए स्वामी करपात्रीजी महाराज ने देशव्यापी आंदोलन चलाया जिसे डालमिया जी ने डटकर आर्थिक सहायता दी।
नेहरू के दबाव पर लोकसभा में हिन्दू कोड बिल पारित हुआ जिसमें हिन्दू महिलाओं के लिए तलाक की व्यवस्था की गई थी। कहा जाता है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद हिन्दू कोड बिल के सख्त खिलाफ थे इसलिए उन्होंने इसे स्वीकृति देने से इनकार कर दिया।
ज़िद्दी नेहरू ने इसे अपना अपमान समझा और इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पुनः पारित करवाकर राष्ट्रपति के पास भिजवाया। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति को इसकी स्वीकृति देनी पड़ी।
इस घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया। कहा जाता है कि नेहरू ने अपने विरोधी सेठ राम कृष्ण डालमिया को निपटाने की एक योजना बनाई।
नेहरू के इशारे पर डालमिया के खिलाफ कंपनियों में घोटाले के आरोपों को लोकसभा में जोरदार ढंग से उछाला गया। इन आरोपों के जांच के लिए एक विविन आयोग बना। बाद में यह मामला स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिसमेंट (जिसे आज सी बी आई कहा जाता है) को जांच के लिए सौंप दिया गया।
नेहरू ने अपनी पूरी सरकार को डालमिया के खिलाफ लगा दिया। उन्हें हर सरकारी विभाग में प्रधानमंत्री के इशारे पर परेशान और प्रताड़ित करना शुरू किया। उन्हें अनेक बेबुनियाद मामलों में फंसाया गया।
नेहरू की कोप दृष्टि ने एक लाख करोड़ के मालिक डालमिया को दिवालिया बनाकर रख दिया। उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिन्दुस्तान लिवर और अनेक उद्योगों को औने-पौने दामों पर बेचना पड़ा। अदालत में मुकदमा चला और डालमिया को तीन वर्ष कैद की सज़ा सुनाई गई।
तबाह हाल और अपने समय के सबसे धनवान व्यक्ति डालमिया को नेहरू की वक्र दृष्टि के कारण जेल की कालकोठरी में दिन व्यतीत करने पड़े।
व्यक्तिगत जीवन में डालमिया बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उन्होंने अच्छे दिनों में करोड़ों रुपये धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए दान में दिये। इसके अतिरिक्त उन्होंने यह संकल्प भी लिया था कि जबतक इस देश में गोवध पर कानूनन प्रतिबंध नहीं लगेगा वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। उन्होंने इस संकल्प को अंतिम सांस तक निभाया। गौवंश हत्या विरोध में १९७८ में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
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जागो हिन्दू जागो
धर्म की जय हो अधर्म का नाश हों ,नेहरु गाँधी परिवार का नाश हों।
शनिवार, 17 अप्रैल 2021
दो दिनार
नीलाम_ए_दो_दीनार 👆👆
“नीलाम ए दो दीनार”
हिन्दू महिलाओं का दुखद कङवा इतिहास!
जबरदस्ती की धर्मनिरपेक्षता, भाईचारे को ढोते अक्लमंद हिंदुओं के लिये (इतिहास)
समय!
ग्यारहवीं सदी (ईसा बाद)
भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर अभी-अभी राजा जयपाल की पराजय हुई।
पराजय के पश्चात अफगानिस्तान के एक शहर ‘गजनी’ का एक बाज़ार,
ऊँचे से एक चबूतरे पर खड़ी कम उम्र की सैंकड़ों हिन्दू स्त्रियों की भीङ,
जिनके सामने वहशी से दीखते, हज़ारों बदसूरत किस्म के लोगों की भीड़,
जिसमें अधिकतर अधेड़ या उम्र के उससे अगले दौर में थे।
कम उम्र की उन स्त्रियों की स्थिति देखने से ही अत्यंत दयनीय प्रतीत हो रही थी।
उनमें अधिकाँश के गालों पर आंसुओं की सूखी लकीरें खिंची हुई थी।
मानों आंसुओं को स्याही बनाकर हाल ही में उनके द्वारा झेले गए भीषण यातनाओं के दौर की दास्तान को प्रारब्ध ने उनके कोमल गालों पर लिखने का प्रयास किया हो।
एक बात जो उन सबमें समान थी।
किसी के भी शरीर पर, वस्त्र का एक छोटा सा टुकड़ा, नाममात्र को भी नहीं था।
सभी सम्पूर्ण निर्वसना थी।
सभी के पैरों में छाले थे, मानो सैंकड़ों मील की दूरी पैदल तय की हो।
सामने खङी वहशियों की भीड़, वासनामयी आँखों से उनके अंगों की नाप-जोख कर रही थी।
कुछ मनबढ़ आंखों के स्थान पर हाथों का प्रयोग भी कर रहे थे।
सूनी आँखों से अजनबी शहर, और अनजान लोगों की भीड़, को निहारती उन स्त्रियों के समक्ष हाथ में चाबुक लिए, क्रूर चेहरे वाला, घिनौने व्यक्तित्व का, एक गंजा व्यक्ति खड़ा था।
सफाचट मूंछ, बेतरतीब दाढ़ी, उसकी प्रकृतिजन्य कुटिलता को चार चाँद लगा रही थी।
दो दीनार, दो दीनार, दो दीनार...
हिन्दुओं की खूबसूरत औरतें, शाही लडकियां, कीमत सिर्फ दो दीनार,
ले जाओ, ले जाओ, बांदी बनाओ,
एक लौंडी, सिर्फ दो दीनार,
दुख्तरे हिन्दोस्तां, दो दीनार,
भारत की बेटी का मोल, सिर्फ दो दीनार..
उस स्थान पर आज एक मीनार है।
जिस पर लिखे शब्द आज भी मौजूद हैं - दुख्तरे हिन्दोस्तान, नीलामे दो दीनार
अर्थात वो स्थान - जहाँ हिन्दू औरतें दो-दो दीनार में नीलाम हुईं।
महमूद गजनवी हिन्दुओं के मुँह पर अफगानी जूता मारने, उनको अपमानित करने के लिये अपने सत्रह हमलों में लगभग चार लाख हिन्दू स्त्रियों को पकड़ कर घोड़ों के पीछे, रस्सी से बांध कर गजनी उठा ले गया।
महमूद गजनवी जब इन औरतों को गजनी ले जा रहा था।
वे अपने पिता, भाई, पतियों को निरीह, कातर, दारुण स्वर में पुकार कर बिलख-बिलख कर रो रही थीं। अपनी रक्षा के लिए पुकार रही थीं। लेकिन करोङों हिन्दुओं के बीच से उनकी आँखों के सामने वो निरीह असहाय स्त्रियाँ मुठ्ठी भर निर्दयी कामांध मुसलमान सैनिकों द्वारा घसीट कर भेड़ बकरियों की तरह ले जाई गईं।
रोती बिलखती इन लाखों हिन्दू नारियों को बचाने न उनके पिता बढ़े, न पति उठे, न भाई।
और न ही इस विशाल भारत के करोड़ों जन-सामान्य लोगों का विशाल हिन्दू समाज।
महमूद गजनी ने इन हिन्दू लड़कियों, औरतों को ले जाकर गजनवी के बाजार में भेङ बकरियों के समान बेच ड़ाला।
विश्व के किसी भी धर्म के साथ ऐसा अपमानजनक व्यवहार नही हुआ।
जैसा हिन्दुओं के साथ हुआ।
और ऐसा इसलिये हुआ, क्योंकि इन्होंने तलवार को हाथ से छोड़ दिया।
इनको बताया गया कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ेगा।
तब भगवान स्वयं उन्हें बचाने आयेंगे, अवतरित होंगे।
हिन्दुओं! भारत के गद्दार सेकुलर आपको मिटाने की साजिश रच रहे हैं।
आजादी के बाद यह षङयंत्र धर्म-परिवर्तन कराने के नाम पर हुआ।
आज भारत में, आठ राज्यों में, हिन्दुओं की संख्या 2-5% बची है।
हिन्दुओं को समझना चाहिये कि,
भगवान भी अव्यवहारिक अहिंसा व अतिसहिष्णुता को नपुसंकता करार देते हैं।
भगवान भी उन्हीं की मदद करते हैं।
जो अपनी मदद खुद करते हैं।
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रविवार, 4 अप्रैल 2021
जागो पुलिस वालों एक होजाओ ओर 170 दुष्टों का संहार करो:-महाराष्ट्रा
नेता और पुलिस
महारष्ट्र की राजनीति में आज जो भी चल रहा है, ओ केवल दो समुदाय के बीच की लड़ाई है।
एक समुदाय मात्र 288 लोगो का है,ओर दूसरा समुदाय हजारो में है। पर जीत 288 की ??? क्यो???
जबकि ये 288 सबसे कमजोर समुदाय है, इनकी उम्र भी केवल 5 साल की है। वही दूसरी तरफ हजारो की तादात वाला समुदाय जिसकी उम्र लगभग 33 साल । फिर भी ये कमजोर, जानते हो क्यो?
वही एकता का अभाव, 288 हर हाल में एक रहते है, ओर हजारो वाले बिखरे रहते है।और इन हजारो की तादात वाले समुदाय में से 90% तो इन 288 के पालतू कुते होने मेही अपनी शान समझते है।
ये इनके सामने दुम हिलाने में अपने आप को गौरव की बात समझते है। चंद बिस्कुट ये 288 वाले फेखे तो ये हजारो वाले में 90% उसको खाकर दुम हिलाने लग जाते है।
अगर ये हजारो वाला समुदाय एक हो जाये, ओर देश के प्रति ,जनता के प्रति अपने कर्तव्य के प्रति वफादार हो जाये ,,तो यकीन मानो 288 मिनिट में ये 288 को नंगा कर दे,,, ओर विदा कर दे।
ये हजारो वाले समुदाय को आदरणीय डॉ आंबेडकर जी ने इतनी शक्तियां प्रदान कर रखी है,, के पूछो मत। पर ये उन शक्तियों से अनजान है। ये 288 लोग इनका केवल तबादला कर सकते है, ओ भी केवल महाराष्ट्र के भीतर,,, या ज्यादा से ज्यादा 6 महीने के लिए निलंबन,, इसके खिलाफ अदालत भी है, जंहा ये जा कर अपनी जीत पक्की कर सकते है, बशर्ते कि ये खुद *सत्यमेव जयते हो*
वही दूसरी तरफ अगर ये हजारो वाले एक हो जाये तो ये 288 वालो का जीना हराम कर सकते है। 5 साल का जीवन तो दूर 5 दिन में इनको नानी याद दिला दे।
इन 288 के हर गलत काम का लेखा जोखा इन हजारो के समुदाय के पास होता ही होता है। अगर ये 30 मिनिट में हर पाकिट मार को पकड़ने की क्षमता रखते है,,, तो क्या इनके पास इन 288 की जन्मकुंडली नही होगी??
बस इन हजारो पुलिस वालों का ज़मीर एक बार जग जाए,,, तो इस राज्य में बदलाव 30 दिन में आजायेगा। भाई जनता की छोड़ो पर अपने ही पुलिस की भाई यो की तो सोचो,,, आपस मे ईमानदारी से एक होजाओ,, ओर रच डालो एक नया इतिहास। वरना ये 288 बड़े बड़े पदों वाले पुलिस अधिकारी झुका रहे,, तोड़ रहे,, बर्बाद कर रहे है,, तो बाकी की क्या ओकाद
एक वझे जैसा हरामी हजारो ईमानदार पुलिस की पहचान काभि नहीं हो सकता, न होना चाहिए,, ओर दरअसल ये वझे पुलिस वाला था ही नही,, ये इन्ही 288 की जात वाला था,,, ओर इन्ही 288 वालो ने इसे पुलिस की वर्दी में आपके बीच, आपको बदनांम करने के लिए छोड़ा था।
सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय’’ हे महाराष्ट्र पोलीसांचे ब्रीदवाक्य आहे. याचा अर्थ असा की, महाराष्ट्र पोलीस सज्जनांचे रक्षण करण्यास आणि दुर्जनांवर नियंत्रण ठेवून त्यांचा नायनाट करण्यास कटीबध्द आहेत
करो इसको सार्थक
सोमवार, 29 मार्च 2021
शरद पवार का डर?
*अहमदाबाद में मीटिंग*
ऐसी किसी मीटिंग या डील के अपने अधिकार को शरद पवार ने डेढ़ साल पहले अपनी करतूतों से अपने हाथ से जला कर रख कर दिया था....
अहमदाबाद में अमित शाह के साथ शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल की गुप्त भेंट की खबर परसों शाम तेजी से गर्म हुई और सोशल मीडिया में जंगल की आग की तरह फैल गयी। इसी के साथ "कउव्वा कान ले गया" वाली शैली में "डील हो गयी... डील हो गयी..." का हंगामा हुड़दंग शुरू हो गया है।
यद्यपि खबर की पुष्टि या खंडन किसी ने नहीं किया है। सच क्या है, यह भी किसी को ज्ञात नहीं है। लेकिन मैं इस खबर को सच ही मान कर यह पोस्ट लिख रहा हूं।
यदि ऐसी कोई मीटिंग और उसमें कोई तथाकथित डील हुई भी है तब भी मेरे अनुसार उस मीटिंग और उस तथाकथित डील का महत्व कचरे की टोकरी से अधिक नहीं है। क्योंकि,,
ऐसी किसी मीटिंग या डील के अपने अधिकार को शरद पवार ने डेढ़ साल पहले अपनी घिनोनी करतूतों से अपने हाथ से जला कर रख कर दिया था। आज शरद पवार की बात और वायदे की औकात दो कौड़ी की भी नहीं रह गयी है। विशेषकर प्रधानमंत्री मोदीं के दरबार में। सम्भवतः यही कारण है कि उस तथाकथित मीटिंग से लौटने के कुछ घंटों बाद ही शरद पवार की तबियत खराब होने और ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती होने की खबर गर्म हो गयी है।
20 नवम्बर 2019 की दोपहर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से शरद पवार ने लगभग एक घण्टे की मुलाकात अकेले की थी। एनसीपी के किसी भी छोटे या बड़े नेता को वो अपने साथ लेकर नहीं गया था। उस मुलाकात के बाद बाहर निकले शरद पवार ने कहा था कि उसने महाराष्ट्र के किसानों की समस्या पर बात करने के लिए बंद कमरे में प्रधानमंत्री मोदी से एक घण्टे लम्बी मुलाकात की है। ,
शरद पवार की इस बात पर उन्हीं राजनीतिक विश्लेषकों ने विश्वास कर लिया था जिनकी बुद्धि वास्तव में घास चरने गई थी। इस मुलाकात के बाद शरद पवार 22 की सुबह मुम्बई लौटा था और 22 की रात को ही अजित पवार एनसीपी के समर्थन की चिट्ठी लेकर फणनवीस के पास पहुंच गया था। उसकी इस बात पर ज्यादा सोच विचार किए बिना उसको साथ ले जाकर देवेन्द्र फडणवीस ने वो चिट्ठी गवर्नर को सौंप दी थी। परिणामस्वरूप रात में ही कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन हटाने की संस्तुति की थी और राष्ट्रपति ने सवेरे के सूर्योदय के साथ ही उस संस्तुति को स्वीकार कर लिया था। अपने पेशाब से डैम भर देने की गाली देकर किसानों को भगा देने के लिए जग कुख्यात हुए भ्रष्टाचार के पुतले अजित पवार का राजनीतिक कद क्या इतना बड़ा और भारी है कि वो अचानक रंग बदल कर कुछ कहे और उसके कहे पर महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र का राज्यपाल, देश का प्रधानमंत्री, देश का राष्ट्रपति इतना विश्वास कर लें कि उसके कहे पर तत्काल फैसला लेकर त्वरित कार्रवाई कर डालें.?
इस बात पर भी वही राजनीतिक विश्लेषक विश्वास कर सकते हैं जिनकी बुद्धि वास्तव में घास चरने गई हो।
दरअसल इस पूरे घटनाक्रम में अजित पवार और देवेन्द्र फडणवीस की भूमिका मात्र एक डाकिए की ही थी।
इस सनसनीखेज राजनीतिक थ्रिलर की पटकथा 20 नवम्बर की दोपहर प्रधानमंत्री से अकेले मिलने पहुंचे शरद पवार ने उस एक घण्टे की मुलाक़ात में लिख दी थी। राजनीति की दुनिया में शरद पवार सरीखे राजनीतिक कद और पद वाले व्यक्ति द्वारा एकांत में कही गयी बात को बहुत वजनदार माना जाता है। विशेषकर यह वजन तब और ज्यादा बढ़ जाता है जब ऐसा व्यक्ति देश के प्रधानमंत्री से बंद कमरे में अकेले में कोई बात कहता करता है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी शरद पवार की बातों पर विश्वास कर लिया था।
यही वह बिंदु था जहां प्रधानमंत्री मोदी बुरी तरह मात खा गए थे। वह यह समझ ही नहीं पाए कि उनके सामने बैठा एक कद्दावर राष्ट्रीय नेता उनके साथ सड़कछाप राजनीतिक मक्कारी का खेल खेलने आया है।
यही कारण है कि उन्होंने देवेन्द्र फणनवीस को शपथ लेने के कुछ क्षणों बाद ही बधाई देने में कोई संकोच नहीं किया था। जबकि येदियुरप्पा ने जब जबरिया सरकार बनाई थी तो प्रधानमंत्री ने उस समय बधाई देने के बजाय मौन साधे रखा था।
जहां तक मैंने देखा जाना समझा है, उस हिसाब से नरेन्द्र मोदी से सम्भवतः पहली बार इतनी बड़ी राजनीतिक चूक हुई है। इसका कारण भी सम्भवतः यही है कि दो कद्दावर राष्ट्रीय नेताओं के मध्य हुई वार्ता और विश्वास का उपयोग दोनों में से एक नेता द्वारा इतने निम्न स्तर की राजनीतिक नंगई के लिए किया जाए, ऐसा घृणित राजनीतिक उदाहरण देश ने इससे पहले कभी देखा सुना नहीं था।
इसीलिए कल मैंने लिखा था कि महाराष्ट्र का घटनाक्रम देवेन्द्र फणनवीस का राजनीतिक नौसिखियापन या उनकी अनुभवहीनता का परिणाम नहीं है। यह घटनाक्रम अजित पवार की भी किसी धूर्तता का परिणाम नहीं है। वह तो मात्र एक मोहरा था जिसे शरद पवार ने आगे बढ़ाया था। यह पूरा घटनाक्रम राजनीति के उच्चतम स्तर पर निम्नतम स्तर की सड़कछाप राजनीति के घटिया हथकंडे आजमाने अपनाने की शरद पवार की घिनौनी करतूत का ही परिणाम था। अपनी इस करतूत से शरद पवार ने राजनीति की दुनिया मे व्यक्तिगत सम्बन्धों पर विश्वास की कितनी अनमोल पूंजी गंवा दी है। इसका अनुभव जब शरद पवार को होगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री मोदी ऐसे सबक कभी भूलते नहीं हैं। प्रतीक्षा करिये, शरद पवार द्वारा सिखाए गए इस सबक को प्रधानमंत्री मोदी चक्रवृद्धि ब्याज के साथ वापस शरद पवार को लौटाएंगे। अपनी करतूतों से शरद पवार प्रधानमंत्री मोदी को वह अवसर शीघ्र ही प्रदान करेगा।"
मेरी पोस्ट का उपरोक्त अंश मेरे विचार से उन दुःखी आत्माओं को शांति प्रदान करेगा जो पिछले 2 दिनों से "डील हो गयी... डील हो गयी..." का हंगामा हुड़दंग कर रही हैं।
शरद पवार को अब मोदी डर सता रहा है, ओ जानते है,, अब मोदी छोड़ने वाला नही है। अब पहले लोगो के सामने पूरे कपड़े उतार देगा, ओर अगले 15-20 साल तक पवार के खानदान का कोई भी नेता फिर न तो राजनीति ठीक ढंग से कर पायेगा, न काभि किसी के साथ इस तरह की नीच ,हरामी राजनीति कर पायेगा।
बस यही डर अस्पताल ले गया शायद उन्हें अब।